भावपाहुड गाथा 40: Difference between revisions
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दियसंगटि्ठयमसणं आहारिय मायभुत्तमण्णांते ।<br> | |||
छद्दिखरिसाण मज्झे जढरे वसिओ सि जणणीए ।।४०।।<br> | |||
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द्विजसंगस्थितमशनं आहृत्य मातृभुक्तमन्नान्ते ।<br> | |||
छर्दिखरिसर्योध्ये जठरे उषितोsसि जनन्या: ।।४०।।<br> | |||
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तू रहा जननी उदर में जो जननि ने खाया-पिया ।<br> | |||
उच्छिष्ट उस आहार को ही तू वहाँ खाता रहा ।।४०।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> हे | <p><b> अर्थ - </b> हे जीव ! तू जननी (माता) के उदर (गर्भ) में रहा, वहाँ माता के और पिता के भोग के अन्त छर्द्दि (वमन) का अन्न, खरिस (रुधिर से मिल हुआ अपक्व मल) के बीच में रहा, कैसा रहा ? माता के दाँतों से चबाया हुआ और उन दाँतों के लगा हुआ (रुका हुआ) झूठा भोजन माता के खाने के पीछे जो उदर में गया उसके रसरूपी आहार से रहा ।।४०।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:23, 14 December 2008
फिर इसी को कहते हैं -
दियसंगटि्ठयमसणं आहारिय मायभुत्तमण्णांते ।
छद्दिखरिसाण मज्झे जढरे वसिओ सि जणणीए ।।४०।।
द्विजसंगस्थितमशनं आहृत्य मातृभुक्तमन्नान्ते ।
छर्दिखरिसर्योध्ये जठरे उषितोsसि जनन्या: ।।४०।।
तू रहा जननी उदर में जो जननि ने खाया-पिया ।
उच्छिष्ट उस आहार को ही तू वहाँ खाता रहा ।।४०।।
अर्थ - हे जीव ! तू जननी (माता) के उदर (गर्भ) में रहा, वहाँ माता के और पिता के भोग के अन्त छर्द्दि (वमन) का अन्न, खरिस (रुधिर से मिल हुआ अपक्व मल) के बीच में रहा, कैसा रहा ? माता के दाँतों से चबाया हुआ और उन दाँतों के लगा हुआ (रुका हुआ) झूठा भोजन माता के खाने के पीछे जो उदर में गया उसके रसरूपी आहार से रहा ।।४०।।