भावपाहुड गाथा 116: Difference between revisions
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पापं भवति अशेषं पुण्यमशेषं च भवति परिणामात् ।<br> | |||
परिणामाद् बंध: मोक्ष: जिनशासने दृष्ट: ।।११६।।<br> | |||
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परिणाम से ही पाप सब अर पुण्य सब परिणाम से ।<br> | |||
यह जैनशासन में कहा बंधमोक्ष भी परिणाम से ।।११६।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> पाप-पुण्य, बंध-मोक्ष का कारण परिणाम ही को कहा है । जीव के मिथ्यात्व, विषय-कषाय, अशुभलेश्यारूप तीव्र परिणाम होते हैं, उनसे तो पापास्रव का बंध होता है । परमेष्ठी की भक्ति, जीवों पर दया इत्यादिक मंदकषाय शुभलेश्यारूप परिणाम होते हैं, इससे पुण्यास्रव का बंध होता है । शुद्धपरिणामरहित विभावरूप परिणाम से बंध होता है । शुद्धभाव के सन्मुख रहना, उसके अनुकूल शुभ परिणाम रखना, अशुभ परिणाम सर्वथा दूर करना, यह उपदेश है ।।११६।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:24, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि पाप-पुण्य और बन्ध-मोक्ष का कारण परिणाम ही है -
पावं हवइ असेसं पुण्णमसेसं च हवइ परिणामा ।
परिणामादो बंधो मुक्खो जिणसासणे दिट्ठो ।।११६।।
पापं भवति अशेषं पुण्यमशेषं च भवति परिणामात् ।
परिणामाद् बंध: मोक्ष: जिनशासने दृष्ट: ।।११६।।
परिणाम से ही पाप सब अर पुण्य सब परिणाम से ।
यह जैनशासन में कहा बंधमोक्ष भी परिणाम से ।।११६।।
अर्थ - पाप-पुण्य, बंध-मोक्ष का कारण परिणाम ही को कहा है । जीव के मिथ्यात्व, विषय-कषाय, अशुभलेश्यारूप तीव्र परिणाम होते हैं, उनसे तो पापास्रव का बंध होता है । परमेष्ठी की भक्ति, जीवों पर दया इत्यादिक मंदकषाय शुभलेश्यारूप परिणाम होते हैं, इससे पुण्यास्रव का बंध होता है । शुद्धपरिणामरहित विभावरूप परिणाम से बंध होता है । शुद्धभाव के सन्मुख रहना, उसके अनुकूल शुभ परिणाम रखना, अशुभ परिणाम सर्वथा दूर करना, यह उपदेश है ।।११६।।