भावपाहुड गाथा 144: Difference between revisions
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जह | जह तारयाण चंदो मयराओ मयउलाण सव्वाणं ।<br> | ||
अहिओ तह सम्मत्तो रिसिसावयदुविहधम्माणं ।।१४४।।<br> | |||
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यथा | यथा तारकाणां चन्द्र: मृगराज: मृगकुलानां सर्वेषाम् ।<br> | ||
अधिक: तथा सम्यक्त्वं ऋषिश्रावकद्विविधधर्माणाम् ।।१४४।।<br> | |||
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चन्द्र | तारागणों में चन्द्र ज्यों अर मृगों में मृगराज ज्यों ।<br> | ||
श्रमण-श्रावक धर्म में त्यों एक समकित जानिये।।१४४।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> जैसे | <p><b> अर्थ - </b> जैसे तारकाओं के समूह में चन्द्रमा अधिक है और मृगकुल अर्थात् पशुओं के समूह में मृगराज (सिंह) अधिक है, वैसे ही ऋषि (मुनि) और श्रावक - इन दो प्रकार के धर्मो में सम्यक्त्व है, वह अधिक है । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> व्यवहार धर्म की जितनी प्रवृत्तियाँ हैं, उनमें सम्यक्त्व अधिक है, इसके बिना सब संसारमार्ग बंध का कारण है ।।१४४।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:46, 14 December 2008
आगे सम्यक्त्व का महान्पना (माहात्म्य) कहते हैं -
जह तारयाण चंदो मयराओ मयउलाण सव्वाणं ।
अहिओ तह सम्मत्तो रिसिसावयदुविहधम्माणं ।।१४४।।
यथा तारकाणां चन्द्र: मृगराज: मृगकुलानां सर्वेषाम् ।
अधिक: तथा सम्यक्त्वं ऋषिश्रावकद्विविधधर्माणाम् ।।१४४।।
तारागणों में चन्द्र ज्यों अर मृगों में मृगराज ज्यों ।
श्रमण-श्रावक धर्म में त्यों एक समकित जानिये।।१४४।।
अर्थ - जैसे तारकाओं के समूह में चन्द्रमा अधिक है और मृगकुल अर्थात् पशुओं के समूह में मृगराज (सिंह) अधिक है, वैसे ही ऋषि (मुनि) और श्रावक - इन दो प्रकार के धर्मो में सम्यक्त्व है, वह अधिक है ।
भावार्थ - व्यवहार धर्म की जितनी प्रवृत्तियाँ हैं, उनमें सम्यक्त्व अधिक है, इसके बिना सब संसारमार्ग बंध का कारण है ।।१४४।।