अनर्पित: Difference between revisions
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<p | <p>= अर्पित से विपरीत अनर्पित है। अर्थात् प्रयोजन के अभाव में जिसकी प्रधानता नहीं रहती वह अनर्पित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि किसी वस्तु या धर्म के रहते हुए भी उसकी विवक्षा नहीं होती इसलिए जो गौण हो जाता है वह अनर्पित कहलाता है। </p> | ||
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Revision as of 16:54, 10 June 2020
सर्वार्थसिद्धि अध्याय /5/32/303 तद्विपरीतमनर्पितम्। प्रयोजनाभावात् सतोऽप्यविवक्षा भवतीत्युपसर्जनीभूतमनर्पितमित्युच्यते।
= अर्पित से विपरीत अनर्पित है। अर्थात् प्रयोजन के अभाव में जिसकी प्रधानता नहीं रहती वह अनर्पित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि किसी वस्तु या धर्म के रहते हुए भी उसकी विवक्षा नहीं होती इसलिए जो गौण हो जाता है वह अनर्पित कहलाता है।
(राजवार्तिक अध्याय 5/32,2/497/15)।