अभियोग (देव): Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p | <p>राजवार्तिक अध्याय 4/4/9/213/10 यथेह दासा वाहनादिव्यापारं कुर्वन्ति तथा तत्रा योग्या वाहनादिभावेनोपकुर्वन्ति।</p> | ||
<p | <p>= जिस प्रकार यहाँ दास जन वाहनादि व्यापार करते हैं, उसी प्रकार वहाँ (देवोंमें) अभियोग्य नामा देव वाहनादि रूपसे उपकार करते हैं।</p> | ||
( | <p>( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 4/4/14/239) ( तिलोयपण्णत्ति अधिकार 3/68) ( महापुराण सर्ग संख्या 22/29) ( त्रिलोकसार भाषा/224)।</p> | ||
<p | <p>राजवार्तिक अध्याय 4/13/6/220/17 कर्मणां हि फलं वैचित्र्येण पच्यते ततस्तेषां गतिपरिणतिमुखेनैव कर्मफलमवबोद्धव्यम्।</p> | ||
<p | <p>= कर्मोंका फल विचित्रता से पकता है। इसलिए गतिपरिणतिमुखेन ही उनके कर्मका फल जानना चाहिए।</p> | ||
< | <p>• देवोंके परिवारोंमें इन देवोंका निर्देशादि - देखें [[ भवनवासी आदि भेद ]]</p> | ||
< | <p>2. इन देवोंका गमनागमन अच्युत स्वर्ग पर्यन्त ही है</p> | ||
<p | <p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 1133 कंदप्पमाभिजोगा देवीओ चावि आरणचुदोति।</p> | ||
<p | <p>= कंदर्प और अभियोग्य जातिके देव आरण-अच्युत स्वर्ग पर्यन्त है।</p> | ||
[[ | |||
<noinclude> | |||
[[ | [[ अभिमान | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ अभियोगी भावना | अगला पृष्ठ ]] | |||
[[Category: | |||
</noinclude> | |||
[[Category: अ]] |
Revision as of 16:56, 10 June 2020
राजवार्तिक अध्याय 4/4/9/213/10 यथेह दासा वाहनादिव्यापारं कुर्वन्ति तथा तत्रा योग्या वाहनादिभावेनोपकुर्वन्ति।
= जिस प्रकार यहाँ दास जन वाहनादि व्यापार करते हैं, उसी प्रकार वहाँ (देवोंमें) अभियोग्य नामा देव वाहनादि रूपसे उपकार करते हैं।
( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 4/4/14/239) ( तिलोयपण्णत्ति अधिकार 3/68) ( महापुराण सर्ग संख्या 22/29) ( त्रिलोकसार भाषा/224)।
राजवार्तिक अध्याय 4/13/6/220/17 कर्मणां हि फलं वैचित्र्येण पच्यते ततस्तेषां गतिपरिणतिमुखेनैव कर्मफलमवबोद्धव्यम्।
= कर्मोंका फल विचित्रता से पकता है। इसलिए गतिपरिणतिमुखेन ही उनके कर्मका फल जानना चाहिए।
• देवोंके परिवारोंमें इन देवोंका निर्देशादि - देखें भवनवासी आदि भेद
2. इन देवोंका गमनागमन अच्युत स्वर्ग पर्यन्त ही है
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 1133 कंदप्पमाभिजोगा देवीओ चावि आरणचुदोति।
= कंदर्प और अभियोग्य जातिके देव आरण-अच्युत स्वर्ग पर्यन्त है।