उपाधि: Difference between revisions
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<p | <p> स्याद्वादमंजरी श्लोक 12/149/5 साधनाव्यापकः साध्येन समव्याप्तिश्च खलु उपाधिरधीयते। तत्पुत्रत्वादिना श्यामत्वे साध्ये शाकाद्याहारपरिणामवत्।</p> | ||
<p | <p>= साधनके साथ अव्यापक और साध्यके साथ व्यापक हेतुको उपाधि कहा जाता है। जैसे `गर्भमें स्थित मैत्रका पुत्र श्याम वर्णका है, क्योंकि यह मैत्रका पुत्र है, मैत्रके अन्य पुत्रोंकी तरह' यह अनुमान सोपाधिक है। क्योंकि यह `मैत्रतनयत्व' हेतु शाकपाकजत्व उपाधिके ऊपर अवलम्बित है।</p> | ||
<p> स्याद्वादमंजरी /रायचन्द ग्रन्थमाला/पृ. 184/1/5 विवक्षित किसी वस्तुमें स्वयं रहकर उसको अनेकों वस्तुओंसे जुदा करने वाला जो धर्म होता है, उसको उपाधि कहते हैं।</p> | |||
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Revision as of 16:58, 10 June 2020
स्याद्वादमंजरी श्लोक 12/149/5 साधनाव्यापकः साध्येन समव्याप्तिश्च खलु उपाधिरधीयते। तत्पुत्रत्वादिना श्यामत्वे साध्ये शाकाद्याहारपरिणामवत्।
= साधनके साथ अव्यापक और साध्यके साथ व्यापक हेतुको उपाधि कहा जाता है। जैसे `गर्भमें स्थित मैत्रका पुत्र श्याम वर्णका है, क्योंकि यह मैत्रका पुत्र है, मैत्रके अन्य पुत्रोंकी तरह' यह अनुमान सोपाधिक है। क्योंकि यह `मैत्रतनयत्व' हेतु शाकपाकजत्व उपाधिके ऊपर अवलम्बित है।
स्याद्वादमंजरी /रायचन्द ग्रन्थमाला/पृ. 184/1/5 विवक्षित किसी वस्तुमें स्वयं रहकर उसको अनेकों वस्तुओंसे जुदा करने वाला जो धर्म होता है, उसको उपाधि कहते हैं।