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| <b>देखे </b>[[प्रोषधोपवास]] /१; २. साधुका मूल गुण-दे. साधु।<br>[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या ३५ उदयत्थमणे काले णालीतिय वज्जियम्मि मज्झम्हि। एकम्हि दुअ तिए वा मुहुत्तकालेयभत्तं तु ।३५।<br>= सूर्यके उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर, वा मध्यकालमें एक मुहूर्त, दो मुहुर्त, तीन मुहुर्त कालमें एक बार भोजन करना एकभक्त है।<br>([[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या ४९२), (विशेष <b>देखे </b>[[आहार]] II/१)<br>एकरात्रि प्रतिमा – [[भगवती आराधना]] / [[विजयोदयी टीका]]/ गाथा संख्या ४०३/५९५/७ एकरात्रिभवा भिक्षुप्रतिमा निरूप्यते। उपवासत्रयं कृत्वा चतुर्थ्यां रात्रौ ग्रामनगरादेर्बहिर्देशे श्मशाने वा प्राङ्मुखः उदङ्मुखश्चैत्याभिमुखो वा भूत्वा चतुरङ्गुलमात्रपदान्तरो नासिकाग्रदृष्टिस्त्यक्तस्तिष्ठेत्। सुष्ठु प्रणिहित चित्तः चतुर्विधोपसर्गसहः न चलेन्न पतेत् यावत्सूर्य उदेति।<br>= तीन उपवास करनेके अनन्तर चौथी रात्रिमें ग्राम-नगरादिकके बाह्य प्रदेशमें अथवा श्मशानमें, पूर्वदिशा, उत्तर दिशा अथवा चैत्य (प्रतिमा) के सन्मुख मुख करके दोनों चरणोंमें चार अंगुल प्रमाणका अन्तर रखकर नासिकाके अग्रभागपर वह यति अपनी दृष्टि निश्चल करता है। शरीरपर का ममत्व छोड़ देता है, अर्थात् कायोत्सर्ग करता हुआ मनको एकाग्र करता है। देव, मनुष्य, तिर्यञ्च व अचेतन इन द्वारा किया हुआ चार प्रकार उपसर्ग सहन करता है। वह मुनि भयसे आगे गमन करता नहीं और नीचे गिरता भी नहीं। सूर्योदय होने तक वहाँ ही स्थित रहता है। यह एकरात्रि प्रतिमा कुशल है।<br>[[Category:ए]] [[Category:मूलाचार]] [[Category:भगवती आराधना]] | | <p>देखें [[ प्रोषधोपवास#1 | प्रोषधोपवास - 1]]; 2. साधुका मूल गुण-देखें [[ साधु ]]।</p> |
| | <p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 35 उदयत्थमणे काले णालीतिय वज्जियम्मि मज्झम्हि। एकम्हि दुअ तिए वा मुहुत्तकालेयभत्तं तु ।35।</p> |
| | <p>= सूर्यके उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर, वा मध्यकालमें एक मुहूर्त, दो मुहुर्त, तीन मुहुर्त कालमें एक बार भोजन करना एकभक्त है।</p> |
| | <p>( मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 492), (विशेष देखें [[ आहार#II.1 | आहार - II.1]])</p> |
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Revision as of 16:58, 10 June 2020
देखें प्रोषधोपवास - 1; 2. साधुका मूल गुण-देखें साधु ।
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 35 उदयत्थमणे काले णालीतिय वज्जियम्मि मज्झम्हि। एकम्हि दुअ तिए वा मुहुत्तकालेयभत्तं तु ।35।
= सूर्यके उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर, वा मध्यकालमें एक मुहूर्त, दो मुहुर्त, तीन मुहुर्त कालमें एक बार भोजन करना एकभक्त है।
( मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 492), (विशेष देखें आहार - II.1)
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