ऐरावत हाथी: Difference between revisions
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<p | <p> तिलोयपण्णत्ति अधिकार 8/278-284 सक्कदुगम्मि य वाहणदेवा एरावदणाम हत्थि कुव्वंति। विक्किरियाओ लक्खं उच्छेहं जोयणा दोहे ॥278॥ एदाणं बत्तीसं होंति मुहा दिव्वरयणदामजुदा। पुह रुणंति किंकिणिकोलाहलसद्दकयसोहा ॥279॥ एक्केक्कमुहे चंचलचंदुज्जलचमरचारुरूवम्मि। चत्तारि होंति दंता धवला वररयणभरखचिदा ॥280॥ एक्केक्कम्मि विसाणे एक्केक्कसरोवरो विमलवारी। एक्केक्कसरोवरम्मि य एक्केक्क कमलवणसंडा ॥281॥ एक्केक्ककमलसंडे बत्तीस विकस्सरा महापउमा। एक्केक्क महापउमं एक्केक्क जोयणं पमाणेणं ॥282॥ वरकंचणकयसोहा वरपउमा सुरविकुव्वणबलेणं। एक्केक्क महापउमे णाडयसाला य एक्केक्का ॥283॥ एक्केक्काए तीए बत्तीस वरच्छरा पणच्चंति। एवं सत्ताणीया णिद्दिट्ठा वारसिंदाणं ॥284॥</p> | ||
<p | <p>= सौधर्म और ईशान इन्द्रके वाहन देव विक्रियासे एक लाख उत्सेध योजन प्रमाण दीर्घ ऐरावत नामक हाथीको करते हैं ॥278॥ इनके दिव्य रत्नमालाओंसे युक्त बत्तीस मुख होते हैं जो घण्टिकाओंके कोलाहल शब्दसे शोभायमान होते हुए पृथक् पृथक् शब्द करते हैं ॥279॥ चञ्चल एवं चन्द्रके समान उज्ज्वल चमरोंसे सुन्दर रूपवाले एक-एक मुखमें रत्नोंके समूहसे खचित धवल चार दाँत होते हैं ॥280॥ एक-एक हाथी दाँतपर निर्मल जलसे युक्त एक-एक उत्तम सरोवर होता है। एक-एक सरोवरमें एक-एक उत्तम कमल वनखण्ड होता है ॥281॥</p> | ||
एक-एक कमलखण्डमें विकसित | <p>एक-एक कमलखण्डमें विकसित 32 महापद्म होते हैं। और एक-एक महापद्म एक-एक योजन प्रमाण होता है ॥282॥ देवोंके विक्रिया बलसे वे उत्तम कमल उत्तम सुवर्णसे शोभायमान होते हैं। एक-एक महापद्मपर एक-एक नाट्यशाला होती है ॥283॥ उस एक-एक नाट्यशालामें उत्तम बत्तीस-बत्तीस अप्सराए नृत्य करती हैं ॥284॥ </p> | ||
( | <p>( महापुराण सर्ग संख्या 12/32-56); ( जंबूदीव-पण्णत्तिसंगहो अधिकार 4/253-261)</p> | ||
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Revision as of 16:58, 10 June 2020
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 8/278-284 सक्कदुगम्मि य वाहणदेवा एरावदणाम हत्थि कुव्वंति। विक्किरियाओ लक्खं उच्छेहं जोयणा दोहे ॥278॥ एदाणं बत्तीसं होंति मुहा दिव्वरयणदामजुदा। पुह रुणंति किंकिणिकोलाहलसद्दकयसोहा ॥279॥ एक्केक्कमुहे चंचलचंदुज्जलचमरचारुरूवम्मि। चत्तारि होंति दंता धवला वररयणभरखचिदा ॥280॥ एक्केक्कम्मि विसाणे एक्केक्कसरोवरो विमलवारी। एक्केक्कसरोवरम्मि य एक्केक्क कमलवणसंडा ॥281॥ एक्केक्ककमलसंडे बत्तीस विकस्सरा महापउमा। एक्केक्क महापउमं एक्केक्क जोयणं पमाणेणं ॥282॥ वरकंचणकयसोहा वरपउमा सुरविकुव्वणबलेणं। एक्केक्क महापउमे णाडयसाला य एक्केक्का ॥283॥ एक्केक्काए तीए बत्तीस वरच्छरा पणच्चंति। एवं सत्ताणीया णिद्दिट्ठा वारसिंदाणं ॥284॥
= सौधर्म और ईशान इन्द्रके वाहन देव विक्रियासे एक लाख उत्सेध योजन प्रमाण दीर्घ ऐरावत नामक हाथीको करते हैं ॥278॥ इनके दिव्य रत्नमालाओंसे युक्त बत्तीस मुख होते हैं जो घण्टिकाओंके कोलाहल शब्दसे शोभायमान होते हुए पृथक् पृथक् शब्द करते हैं ॥279॥ चञ्चल एवं चन्द्रके समान उज्ज्वल चमरोंसे सुन्दर रूपवाले एक-एक मुखमें रत्नोंके समूहसे खचित धवल चार दाँत होते हैं ॥280॥ एक-एक हाथी दाँतपर निर्मल जलसे युक्त एक-एक उत्तम सरोवर होता है। एक-एक सरोवरमें एक-एक उत्तम कमल वनखण्ड होता है ॥281॥
एक-एक कमलखण्डमें विकसित 32 महापद्म होते हैं। और एक-एक महापद्म एक-एक योजन प्रमाण होता है ॥282॥ देवोंके विक्रिया बलसे वे उत्तम कमल उत्तम सुवर्णसे शोभायमान होते हैं। एक-एक महापद्मपर एक-एक नाट्यशाला होती है ॥283॥ उस एक-एक नाट्यशालामें उत्तम बत्तीस-बत्तीस अप्सराए नृत्य करती हैं ॥284॥
( महापुराण सर्ग संख्या 12/32-56); ( जंबूदीव-पण्णत्तिसंगहो अधिकार 4/253-261)