तपस्वी: Difference between revisions
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Revision as of 16:29, 5 July 2020
र.क.श्रा./१० विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रह:। ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते।१०। =जो विषयों की आशा के वश से रहित हो, चौबीस प्रकार के परिग्रह से रहित और ज्ञान-ध्यान-तप में लवलीन हो, वह तपस्वी गुरु प्रशंसा के योग्य है। स.सि./९/२४/४४२/५ महोपवासाद्यनुष्ठायी तपस्वी। =महोपवासादि का अनुष्ठान करने वाला तपस्वी कहलाता है। (रा.वा./९/२४/५/६२३); (चा.सा./१५१/१)