पुण्यबंध: Difference between revisions
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Revision as of 16:29, 5 July 2020
शुभ की प्राप्ति का साधन । यह सरागियों को उपादेय तथा मुमुक्षुओं को हेय है । इसका बन्ध अविरत सम्यग्दृष्टि, देशवती गृहस्थ और सकलव्रती सराग संयमी के होता है । ऐसे ही जन पुण्यास्रव और पुण्यबन्ध से तीर्थंकरों की विभूति भी प्राप्त करते हैं मिथ्यादृष्टि जीव भी पापकर्मों का मन्द उदय होने पर भोगों की प्राप्ति के लिए शारीरिक क्लेश आदि सहकर पुण्यास्रव और पुण्यबन्ध दोनों करते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 17. 50-55, 61