अग्रायणीयपूर्व: Difference between revisions
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<p> चौदह पूर्वों में दूसरा पूर्व । इसमें छियानवे लाख पद है जिनमें सात तत्त्व तथा नौ पदार्थों का वर्णन है । इसमें चौदह वस्तुओं का वर्णन है । इन वस्तुओं के नाम है― | <p> चौदह पूर्वों में दूसरा पूर्व । इसमें छियानवे लाख पद है जिनमें सात तत्त्व तथा नौ पदार्थों का वर्णन है । इसमें चौदह वस्तुओं का वर्णन है । इन वस्तुओं के नाम है― पूर्वान्त, अपरान्त, ध्रुव, अध्रुव, अच्यवनलब्धि, अध्रुवसम्प्रणधि, कल्प, अर्थ, भीमावय, सर्वार्थकल्पक, निर्वाण, अतीतानागत, सिद्ध और उपाध्याय । इन वस्तुओं में पांचवीं वस्तु के बीस प्राभृत है जिनमें कर्मप्रकृति नामक चौथे प्राभृत के चौबीस योगद्वार बताये हैं । उनके नाम हैं― कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति, बन्धन, निबन्धन, प्रक्रम, उपक्रम, उदय, मोक्ष, संक्रम, लेश्या, लेश्याकर्म, लेश्यापरिणाम, सातासात, दीर्घह्रस्व, भवधारण, पुद्गलात्मा, निधत्तानिधत्तक, सनिकाचित, अनिकाचित, कर्मस्थिति और स्कन्ध । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.96-100, 10.76-78 </span>देखें [[ पूर्व ]]</p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
चौदह पूर्वों में दूसरा पूर्व । इसमें छियानवे लाख पद है जिनमें सात तत्त्व तथा नौ पदार्थों का वर्णन है । इसमें चौदह वस्तुओं का वर्णन है । इन वस्तुओं के नाम है― पूर्वान्त, अपरान्त, ध्रुव, अध्रुव, अच्यवनलब्धि, अध्रुवसम्प्रणधि, कल्प, अर्थ, भीमावय, सर्वार्थकल्पक, निर्वाण, अतीतानागत, सिद्ध और उपाध्याय । इन वस्तुओं में पांचवीं वस्तु के बीस प्राभृत है जिनमें कर्मप्रकृति नामक चौथे प्राभृत के चौबीस योगद्वार बताये हैं । उनके नाम हैं― कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति, बन्धन, निबन्धन, प्रक्रम, उपक्रम, उदय, मोक्ष, संक्रम, लेश्या, लेश्याकर्म, लेश्यापरिणाम, सातासात, दीर्घह्रस्व, भवधारण, पुद्गलात्मा, निधत्तानिधत्तक, सनिकाचित, अनिकाचित, कर्मस्थिति और स्कन्ध । हरिवंशपुराण 2.96-100, 10.76-78 देखें पूर्व