अणुमान: Difference between revisions
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<p> विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में विद्युत्कान्त नगर के स्वामी विद्याधर प्रभंजन और उनकी रानी अंजना का पुत्र । इसका मूल नाम अमिततेज था शरीर को सूक्ष्मरूप देने में समर्थ होने से विद्याधरों ने इसे यह नाम दिया था । यह सुग्रीव का मित्र था । रामनाम से अंकित एक मुद्रिका राम से लेकर यह सीता की खोज करने लंका गया था । वहाँ पहुंचकर इसने अपना रूप भ्रमर का बनाया था । शिशिपा वृक्ष के नीचे सीता को देखकर इसने वानरविद्या से अपना रूप वानर का बनाया था और वृक्ष पर बैठकर वही वह अंगूठी सीता के पास गिरायी थी । सीता को खोज करने के | <p> विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में विद्युत्कान्त नगर के स्वामी विद्याधर प्रभंजन और उनकी रानी अंजना का पुत्र । इसका मूल नाम अमिततेज था शरीर को सूक्ष्मरूप देने में समर्थ होने से विद्याधरों ने इसे यह नाम दिया था । यह सुग्रीव का मित्र था । रामनाम से अंकित एक मुद्रिका राम से लेकर यह सीता की खोज करने लंका गया था । वहाँ पहुंचकर इसने अपना रूप भ्रमर का बनाया था । शिशिपा वृक्ष के नीचे सीता को देखकर इसने वानरविद्या से अपना रूप वानर का बनाया था और वृक्ष पर बैठकर वही वह अंगूठी सीता के पास गिरायी थी । सीता को खोज करने के पश्चात् राम को सर्वप्रथम सीता की प्राप्ति का सन्देश इसी ने दिया था इस कार्य के फलस्वरूप राम ने इसे अपना सेनापति बनाया था । सुग्रीव और इसने गरुड़वाहिनी, सिंहवाहिनी, बन्धमोचिनी ओर हननावरणी विद्याएँ राम और लक्ष्मण को दी थी । अन्त में इसने राम के साथ दीक्षा धारण की थी और श्रुतकेवली होकर मुक्ति प्राप्त की थी । <span class="GRef"> महापुराण 68.275-280, 293-298, 311,363-370, 377,508-509, 521-522, 709-720 </span></p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में विद्युत्कान्त नगर के स्वामी विद्याधर प्रभंजन और उनकी रानी अंजना का पुत्र । इसका मूल नाम अमिततेज था शरीर को सूक्ष्मरूप देने में समर्थ होने से विद्याधरों ने इसे यह नाम दिया था । यह सुग्रीव का मित्र था । रामनाम से अंकित एक मुद्रिका राम से लेकर यह सीता की खोज करने लंका गया था । वहाँ पहुंचकर इसने अपना रूप भ्रमर का बनाया था । शिशिपा वृक्ष के नीचे सीता को देखकर इसने वानरविद्या से अपना रूप वानर का बनाया था और वृक्ष पर बैठकर वही वह अंगूठी सीता के पास गिरायी थी । सीता को खोज करने के पश्चात् राम को सर्वप्रथम सीता की प्राप्ति का सन्देश इसी ने दिया था इस कार्य के फलस्वरूप राम ने इसे अपना सेनापति बनाया था । सुग्रीव और इसने गरुड़वाहिनी, सिंहवाहिनी, बन्धमोचिनी ओर हननावरणी विद्याएँ राम और लक्ष्मण को दी थी । अन्त में इसने राम के साथ दीक्षा धारण की थी और श्रुतकेवली होकर मुक्ति प्राप्त की थी । महापुराण 68.275-280, 293-298, 311,363-370, 377,508-509, 521-522, 709-720