योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 90: Difference between revisions
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कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना - | |||
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सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला:<br> | |||
कर्माण्याश्रित्य जीवोsपि सरागत्वं प्रपद्यते ।।९०।।<br> | |||
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<p><b> सरलार्थ </b>:- | <p><b> सरलार्थ </b>:- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मो का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है । </p> | ||
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Revision as of 23:07, 19 January 2009
कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना -
सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला:
कर्माण्याश्रित्य जीवोsपि सरागत्वं प्रपद्यते ।।९०।।
अन्वय :- पुद्गला: सरागं जीवं आश्रित्य कर्मत्वं यान्ति (तथा एव) जीव: अपि कर्माणि आश्रित्य सरागत्वं प्रपद्यते ।
सरलार्थ :- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मो का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है ।