अनिष्ट संयोगज: Difference between revisions
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<p> द्वितीय आर्त्तध्यान । इसमें अनिष्ट वस्तु के संयोग होने पर उत्पन्न भाव अथवा अनिष्ट वस्तु की अप्राप्ति के लिए चिन्तन होता है । महापुराण 21.32, 35-36 देखें [[ आर्त्तध्यान ]]</p> | <p> द्वितीय आर्त्तध्यान । इसमें अनिष्ट वस्तु के संयोग होने पर उत्पन्न भाव अथवा अनिष्ट वस्तु की अप्राप्ति के लिए चिन्तन होता है । <span class="GRef"> महापुराण 21.32, 35-36 </span>देखें [[ आर्त्तध्यान ]]</p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
द्वितीय आर्त्तध्यान । इसमें अनिष्ट वस्तु के संयोग होने पर उत्पन्न भाव अथवा अनिष्ट वस्तु की अप्राप्ति के लिए चिन्तन होता है । महापुराण 21.32, 35-36 देखें आर्त्तध्यान