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<p> सातवाँ गुणस्थान । इस गुणस्थान के जीव हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों से विरत होते हैं और उनकी भावनाएं विशुद्ध होती है । महापुराण 20.242, हरिवंशपुराण 3.81-89 देखें [[ गुणस्थान ]]</p> | <p> सातवाँ गुणस्थान । इस गुणस्थान के जीव हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों से विरत होते हैं और उनकी भावनाएं विशुद्ध होती है । <span class="GRef"> महापुराण 20.242, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.81-89 </span>देखें [[ गुणस्थान ]]</p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
सातवाँ गुणस्थान । इस गुणस्थान के जीव हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों से विरत होते हैं और उनकी भावनाएं विशुद्ध होती है । महापुराण 20.242, हरिवंशपुराण 3.81-89 देखें गुणस्थान