अभयकुमार: Difference between revisions
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<p>( महापुराण सर्ग संख्या 74/श्लो.सं.) पूर्व भव सं. 3 ब्राह्मका पुत्र तथा महामिथ्यात्वी था। एक श्रावकके उपदेशसे मूढताओंका त्याग करके फिर पूर्वके दूसरे भवमें सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वर्तमान भवमें राजा श्रेणिककी ब्राह्मणी रानीसे पुत्र उत्पन्न हुआ ॥429॥</p> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p>( <span class="GRef"> महापुराण </span>सर्ग संख्या 74/श्लो.सं.) पूर्व भव सं. 3 ब्राह्मका पुत्र तथा महामिथ्यात्वी था। एक श्रावकके उपदेशसे मूढताओंका त्याग करके फिर पूर्वके दूसरे भवमें सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वर्तमान भवमें राजा श्रेणिककी ब्राह्मणी रानीसे पुत्र उत्पन्न हुआ ॥429॥</p> | |||
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<p> राजा श्रेणिक का पुत्र, अक्रूर और वारिषेण का छोटा भाई । इसने अपने पिता एवं भाई वारिषेण तथा विमाता चेलना के साथ वीर जिनकी वन्दना की थी । चेटक की पुत्री चेलिनी और ज्येष्ठा में अपने पिता का प्रेम ज्ञातकर तथा वृद्धावस्था के कारण चेटक द्वारा उक्त कन्याएँ अपने पिता को न दिये जाने पर इसने पिता का चित्र बनाया और उसे इन कन्याओं को दिखाकर इन्हें पिता श्रेणिक में आकृष्ट किया तथा यह उन्हें सुरंगमार्ग से श्रेणिक के पास ले आया । चेलिनी नहीं चाहती थी कि उसकी बहिन ज्येष्ठा भी राजा श्रेणिक को प्राप्त हो अत: उसने ज्येष्ठा को आभूषण लाने का बहाना कर घर लौटा दिया और स्वयं उसके साथ आ गयी । उधर आभूषण लेकर जैसे ही ज्येष्ठा लौटकर आयी, उसने वहाँ चेलिनी बहिन को न देखकर सोचा कि वह उसके द्वारा ठगी गयी है । ऐसा विचारकर तथा उदास होकर ज्येष्ठा आर्यिका यशस्वती के पास दीक्षित हो गयी । उधर श्रेणिक चेलिनी को पाकर अभयकुमार की बुद्धिमत्ता पर अति प्रसन्न हुआ । इसके सम्बन्ध में निमित्तज्ञानियों ने कहा था कि यह तपश्चरण कर मोक्ष जायेगा । <span class="GRef"> महापुराण 25.20-34, 74.526-527, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.144-146, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.139, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.11-12 </span>दूसरे पूर्वभव में यह एक मिथ्यात्वी ब्राह्मण था । अर्हद्दास ने विभिन्न युक्तियों द्वारा इससे देवमूढ़ता, तीर्थमूढ़ता, जातिमूढ़ता और लोकमूढ़ता आदि का त्याग कराया था । किसी अटवी में मार्ग भूल जाने से संन्यास पूर्वक मरण कर यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और जहाँ से चयकर इस पर्याय में उत्पन्न हुआ, <span class="GRef"> महापुराण 74.464-526, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.170-203 </span>इसका पिता इसकी जन्मभूमि नन्दिग्राम के निवासियों से असन्तुष्ट हो गया था किन्तु इसने पिता का क्रोध शान्त कर दिया था और पण्डितों ने इसके बुद्धि कौशल को देखकर इसे पण्डित कहा था । <span class="GRef"> महापुराण 74.429-431 </span>।</p> | |||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
( महापुराण सर्ग संख्या 74/श्लो.सं.) पूर्व भव सं. 3 ब्राह्मका पुत्र तथा महामिथ्यात्वी था। एक श्रावकके उपदेशसे मूढताओंका त्याग करके फिर पूर्वके दूसरे भवमें सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वर्तमान भवमें राजा श्रेणिककी ब्राह्मणी रानीसे पुत्र उत्पन्न हुआ ॥429॥
पुराणकोष से
राजा श्रेणिक का पुत्र, अक्रूर और वारिषेण का छोटा भाई । इसने अपने पिता एवं भाई वारिषेण तथा विमाता चेलना के साथ वीर जिनकी वन्दना की थी । चेटक की पुत्री चेलिनी और ज्येष्ठा में अपने पिता का प्रेम ज्ञातकर तथा वृद्धावस्था के कारण चेटक द्वारा उक्त कन्याएँ अपने पिता को न दिये जाने पर इसने पिता का चित्र बनाया और उसे इन कन्याओं को दिखाकर इन्हें पिता श्रेणिक में आकृष्ट किया तथा यह उन्हें सुरंगमार्ग से श्रेणिक के पास ले आया । चेलिनी नहीं चाहती थी कि उसकी बहिन ज्येष्ठा भी राजा श्रेणिक को प्राप्त हो अत: उसने ज्येष्ठा को आभूषण लाने का बहाना कर घर लौटा दिया और स्वयं उसके साथ आ गयी । उधर आभूषण लेकर जैसे ही ज्येष्ठा लौटकर आयी, उसने वहाँ चेलिनी बहिन को न देखकर सोचा कि वह उसके द्वारा ठगी गयी है । ऐसा विचारकर तथा उदास होकर ज्येष्ठा आर्यिका यशस्वती के पास दीक्षित हो गयी । उधर श्रेणिक चेलिनी को पाकर अभयकुमार की बुद्धिमत्ता पर अति प्रसन्न हुआ । इसके सम्बन्ध में निमित्तज्ञानियों ने कहा था कि यह तपश्चरण कर मोक्ष जायेगा । महापुराण 25.20-34, 74.526-527, पद्मपुराण 2.144-146, हरिवंशपुराण 2.139, पांडवपुराण 2.11-12 दूसरे पूर्वभव में यह एक मिथ्यात्वी ब्राह्मण था । अर्हद्दास ने विभिन्न युक्तियों द्वारा इससे देवमूढ़ता, तीर्थमूढ़ता, जातिमूढ़ता और लोकमूढ़ता आदि का त्याग कराया था । किसी अटवी में मार्ग भूल जाने से संन्यास पूर्वक मरण कर यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और जहाँ से चयकर इस पर्याय में उत्पन्न हुआ, महापुराण 74.464-526, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.170-203 इसका पिता इसकी जन्मभूमि नन्दिग्राम के निवासियों से असन्तुष्ट हो गया था किन्तु इसने पिता का क्रोध शान्त कर दिया था और पण्डितों ने इसके बुद्धि कौशल को देखकर इसे पण्डित कहा था । महापुराण 74.429-431 ।