अरविंद: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) महाबल विद्याधर के वंश मे उत्पन्न एक विद्याधर । इसने अपने पिता से राज्य प्राप्त किया था । यह अलका नगरी का शासक था । हरिचन्द्र और कुरुविन्द इसके पुत्र थे । इसे दाहज्वर हो गया था । दैवयोग से लड़ती हुई हो छिपकलियों में एक की पूँछ कट जाने से निकला रुधिर इसके शरीर पर जा गिरा और इसका | <p id="1"> (1) महाबल विद्याधर के वंश मे उत्पन्न एक विद्याधर । इसने अपने पिता से राज्य प्राप्त किया था । यह अलका नगरी का शासक था । हरिचन्द्र और कुरुविन्द इसके पुत्र थे । इसे दाहज्वर हो गया था । दैवयोग से लड़ती हुई हो छिपकलियों में एक की पूँछ कट जाने से निकला रुधिर इसके शरीर पर जा गिरा और इसका दाहज्वर शान्त हो गया । फलस्वरूप आर्त्तध्यान इसने अपने पुत्र से रुधिर से भरी हुई एक वापी बनाने की इच्छा प्रकट की । मुनि से पिता का मरण अत्यन्त निकट जानकर पुत्र ने पापभय से वापी को रुधिर से न भरवाकर लाख के घोल से भरवा दिया । इसने वापी रुधिर भरी जानकर हर्ष मनाया किन्तु पुत्र का कपट ज्ञात होने पर वह पुत्र को मारने दौड़ा तथा गिरकर अपनी ही तलवार से मरण को प्राप्त हुआ, और नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 5.89-114 </span></p> | ||
<p id="2">(2) जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में स्थित सुरम्य देश के पोदनपुर नगर का राजा । इसी नगर के निवासी | <p id="2">(2) जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में स्थित सुरम्य देश के पोदनपुर नगर का राजा । इसी नगर के निवासी विश्वभूति ब्राह्मण के पुत्र कमठ और मरुभूति इसके मंत्री थे । मरुभूति को कमठ ने मार डाला था जो मरकर वज्रघोष नाम का हाथी हुआ । इसके संयम धारण करने पर किसी समय इस हाथी ने इसे वन में देखा और जैसे ही वह इसे मारने को उद्यत हुआ उसने इसके शरीर पर श्रीवत्स का चिन्ह देखा । उसे पूर्वभव का अपना सम्बन्धी जान लिया और मारने के अपने उद्यम से विरत हो गया । शान्त होकर इसने इसी से श्रावक के व्रत ग्रहण कर लिये तथा अन्त मे मरकर सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 73.6-24 </span></p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
(1) महाबल विद्याधर के वंश मे उत्पन्न एक विद्याधर । इसने अपने पिता से राज्य प्राप्त किया था । यह अलका नगरी का शासक था । हरिचन्द्र और कुरुविन्द इसके पुत्र थे । इसे दाहज्वर हो गया था । दैवयोग से लड़ती हुई हो छिपकलियों में एक की पूँछ कट जाने से निकला रुधिर इसके शरीर पर जा गिरा और इसका दाहज्वर शान्त हो गया । फलस्वरूप आर्त्तध्यान इसने अपने पुत्र से रुधिर से भरी हुई एक वापी बनाने की इच्छा प्रकट की । मुनि से पिता का मरण अत्यन्त निकट जानकर पुत्र ने पापभय से वापी को रुधिर से न भरवाकर लाख के घोल से भरवा दिया । इसने वापी रुधिर भरी जानकर हर्ष मनाया किन्तु पुत्र का कपट ज्ञात होने पर वह पुत्र को मारने दौड़ा तथा गिरकर अपनी ही तलवार से मरण को प्राप्त हुआ, और नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण 5.89-114
(2) जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में स्थित सुरम्य देश के पोदनपुर नगर का राजा । इसी नगर के निवासी विश्वभूति ब्राह्मण के पुत्र कमठ और मरुभूति इसके मंत्री थे । मरुभूति को कमठ ने मार डाला था जो मरकर वज्रघोष नाम का हाथी हुआ । इसके संयम धारण करने पर किसी समय इस हाथी ने इसे वन में देखा और जैसे ही वह इसे मारने को उद्यत हुआ उसने इसके शरीर पर श्रीवत्स का चिन्ह देखा । उसे पूर्वभव का अपना सम्बन्धी जान लिया और मारने के अपने उद्यम से विरत हो गया । शान्त होकर इसने इसी से श्रावक के व्रत ग्रहण कर लिये तथा अन्त मे मरकर सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 73.6-24