अवधिज्ञान: Difference between revisions
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<p> ज्ञान के पांच भेदों में तीसरा भेद । इसके तीन भेद होते है― देशावधि, सर्वावधि और परमावधि । ये तीनों अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोमशम से उत्पन्न होते हैं । महापुराण 2.66, हरिवंशपुराण 8.197, 10.152 अनुगामी, अननुगामी वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित ये छ: भेद भी इसके होते हैं । इस ज्ञान से दूसरों की अन्तःप्रवृत्तियों का सहज ही बोध हो जाता है । इन्द्र इसी ज्ञान से तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म आदि को जानते हैं । महापुराण 6.147-149, 17.46, हरिवंशपुराण 2.26, 8.127 देखें [[ ज्ञान ]]</p> | <p> ज्ञान के पांच भेदों में तीसरा भेद । इसके तीन भेद होते है― देशावधि, सर्वावधि और परमावधि । ये तीनों अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोमशम से उत्पन्न होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 2.66, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 8.197, 10.152 </span>अनुगामी, अननुगामी वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित ये छ: भेद भी इसके होते हैं । इस ज्ञान से दूसरों की अन्तःप्रवृत्तियों का सहज ही बोध हो जाता है । इन्द्र इसी ज्ञान से तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म आदि को जानते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 6.147-149, 17.46, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.26, 8.127 </span>देखें [[ ज्ञान ]]</p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
ज्ञान के पांच भेदों में तीसरा भेद । इसके तीन भेद होते है― देशावधि, सर्वावधि और परमावधि । ये तीनों अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोमशम से उत्पन्न होते हैं । महापुराण 2.66, हरिवंशपुराण 8.197, 10.152 अनुगामी, अननुगामी वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित ये छ: भेद भी इसके होते हैं । इस ज्ञान से दूसरों की अन्तःप्रवृत्तियों का सहज ही बोध हो जाता है । इन्द्र इसी ज्ञान से तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म आदि को जानते हैं । महापुराण 6.147-149, 17.46, हरिवंशपुराण 2.26, 8.127 देखें ज्ञान