अशनिवेग: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) विजयार्ध पर्वत के किन्नरगीत नगर का राजा, | <p id="1"> (1) विजयार्ध पर्वत के किन्नरगीत नगर का राजा, आर्चिमाली और प्रभावती का पुत्र और ज्वलनवेग का अनुज । इसकी पवनवेगा नाम की रानी थी । शाल्मलिदत्ता इसी रानी की पुत्री थी जो वसुदेव से विवाही गयी थी । <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span>70.254-255, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 51.2, 19.81, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 11.21 </span></p> | ||
<p id="2">(2) महापुराण पर्वत पर किष्किंधपुर नगर का निर्माता, रथनूपुर नगर का निवासी, विजया पर्वत की दोनों श्रेणियों का स्वामी और विजयसिंह का पिता । अपने पुत्र विजय के मारे जाने पर इसने युद्ध में अन्धक को मारा था । अन्त मै यह शरद् ऋतु के मेघ को क्षणभर में विलीन होता देखकर राज्य सम्पदा से विरक्त हो गया और अपने पुत्र सहस्रार को राज्य देकर विष्णु-कुमार के साथ श्रमण हो गया । पद्मपुराण 1.58, 6.355-357, 461.464, 502-504</p> | <p id="2">(2) <span class="GRef"> महापुराण </span>पर्वत पर किष्किंधपुर नगर का निर्माता, रथनूपुर नगर का निवासी, विजया पर्वत की दोनों श्रेणियों का स्वामी और विजयसिंह का पिता । अपने पुत्र विजय के मारे जाने पर इसने युद्ध में अन्धक को मारा था । अन्त मै यह शरद् ऋतु के मेघ को क्षणभर में विलीन होता देखकर राज्य सम्पदा से विरक्त हो गया और अपने पुत्र सहस्रार को राज्य देकर विष्णु-कुमार के साथ श्रमण हो गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.58, 6.355-357, 461.464, 502-504 </span></p> | ||
<p id="3">(3) जीवन्धरकुमार के शत्रु काष्ठांगारिक का हाथी । महापुराण 75.664-667</p> | <p id="3">(3) जीवन्धरकुमार के शत्रु काष्ठांगारिक का हाथी । <span class="GRef"> महापुराण </span>75.664-667</p> | ||
<p id="4">(4) राजपुर नगर के राजा स्तनितवेग और उसकी रानी ज्योतिर्वेगा का पुत्र तथा विद्युद्वेगा विद्याधरी का अग्रज । श्रीपाल को इसने पर्णलघु विद्या से रत्नावर्त पर्वत के शिखर पर छोड़ा था । महापुराण 47.21-30</p> | <p id="4">(4) राजपुर नगर के राजा स्तनितवेग और उसकी रानी ज्योतिर्वेगा का पुत्र तथा विद्युद्वेगा विद्याधरी का अग्रज । श्रीपाल को इसने पर्णलघु विद्या से रत्नावर्त पर्वत के शिखर पर छोड़ा था । <span class="GRef"> महापुराण </span>47.21-30</p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ अशनिजव | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ अशय्याराघिनी | अगला पृष्ठ ]] | [[ अशय्याराघिनी | अगला पृष्ठ ]] |
Revision as of 21:38, 5 July 2020
(1) विजयार्ध पर्वत के किन्नरगीत नगर का राजा, आर्चिमाली और प्रभावती का पुत्र और ज्वलनवेग का अनुज । इसकी पवनवेगा नाम की रानी थी । शाल्मलिदत्ता इसी रानी की पुत्री थी जो वसुदेव से विवाही गयी थी । महापुराण 70.254-255, हरिवंशपुराण 51.2, 19.81, पांडवपुराण 11.21
(2) महापुराण पर्वत पर किष्किंधपुर नगर का निर्माता, रथनूपुर नगर का निवासी, विजया पर्वत की दोनों श्रेणियों का स्वामी और विजयसिंह का पिता । अपने पुत्र विजय के मारे जाने पर इसने युद्ध में अन्धक को मारा था । अन्त मै यह शरद् ऋतु के मेघ को क्षणभर में विलीन होता देखकर राज्य सम्पदा से विरक्त हो गया और अपने पुत्र सहस्रार को राज्य देकर विष्णु-कुमार के साथ श्रमण हो गया । पद्मपुराण 1.58, 6.355-357, 461.464, 502-504
(3) जीवन्धरकुमार के शत्रु काष्ठांगारिक का हाथी । महापुराण 75.664-667
(4) राजपुर नगर के राजा स्तनितवेग और उसकी रानी ज्योतिर्वेगा का पुत्र तथा विद्युद्वेगा विद्याधरी का अग्रज । श्रीपाल को इसने पर्णलघु विद्या से रत्नावर्त पर्वत के शिखर पर छोड़ा था । महापुराण 47.21-30