अशय्याराघिनी: Difference between revisions
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<p> परमकल्याण रूप और अनेक मंत्रों से परिष्कृत एक विद्या । धरणेन्द्र ने यह विद्या नमि और विनमि को दी थी । हरिवंशपुराण 22.70-73</p> | <p> परमकल्याण रूप और अनेक मंत्रों से परिष्कृत एक विद्या । धरणेन्द्र ने यह विद्या नमि और विनमि को दी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.70-73 </span></p> | ||
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
परमकल्याण रूप और अनेक मंत्रों से परिष्कृत एक विद्या । धरणेन्द्र ने यह विद्या नमि और विनमि को दी थी । हरिवंशपुराण 22.70-73