अश्वग्रीव: Difference between revisions
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<p> महापुराण सर्ग संख्या 57/श्लो.नं. दूरवर्ती पूर्व भवमें राजगृहीके राजा विश्वभूतिके छोटे भाई विशाखभूतिके पुत्र विशाखनन्दी था ॥73॥ चिरकाल पर्यन्त अनेक योनियोंमें भ्रमण करनेके पश्चात् पुण्यके प्रतापसे उत्तर विजयार्धके राजा मयूरग्रीवके यहाँ अश्वग्रीव नामका पुत्र हुआ ॥87-88॥ यह वर्तमान युगका प्रथम प्रतिनारायण था - देखें [[ शलाकापुरुष#5 | शलाकापुरुष - 5]]।</p> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p> <span class="GRef"> महापुराण </span>सर्ग संख्या 57/श्लो.नं. दूरवर्ती पूर्व भवमें राजगृहीके राजा विश्वभूतिके छोटे भाई विशाखभूतिके पुत्र विशाखनन्दी था ॥73॥ चिरकाल पर्यन्त अनेक योनियोंमें भ्रमण करनेके पश्चात् पुण्यके प्रतापसे उत्तर विजयार्धके राजा मयूरग्रीवके यहाँ अश्वग्रीव नामका पुत्र हुआ ॥87-88॥ यह वर्तमान युगका प्रथम प्रतिनारायण था - देखें [[ शलाकापुरुष#5 | शलाकापुरुष - 5]]।</p> | |||
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<p id="1"> (1) प्रथम प्रतिनारायण । यह विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित अलका नगरी के राजा मयूरग्रीव और उसकी रानी नीलांजना का प्रथम पुत्र था । इसकी स्त्री का नाम कनकचित्रा था । इन दोनों के रत्नग्रीव, रत्नांगद, रत्नचूड़, रत्नरथ आदि पांच सौ पुत्र थे । हरिश्मश्रु तथा शतबिन्दू इसके क्रमश: शास्त्र और निमित्तज्ञानी मंत्री थे । रथनूपुर के राजा ज्वलननजटी की पुत्री के प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ को प्राप्त होने से रुष्ट होकर इसने त्रिपृष्ठ मे संग्राम किया, उस पर चक्र चलाया किन्तु चक्र त्रिपृष्ठ की दाहिनी भुजा पर जा पहुँचा । बाद में इसी चक्र से वह त्रिपृष्ठ द्वारा मारा गया । बहु आरम्भ (परिग्रह) के द्वारा नरकायु के बन्ध से रौद्रपरिणामी होकर यह मरा और सातवें नरक गया । <span class="GRef"> महापुराण 62.58-61, 141-144, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 46.213, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.288-292, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.19-21, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.104-105 </span></p> | |||
<p id="2">(2) भविष्यत्कालीन सातवां पतिनारायण । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.568-570 </span></p> | |||
<p id="3">(3) एक अस्त्र । जरासन्ध द्वारा श्रीकृष्ण पर छोड़ें गये इस अस्त्र को कृष्ण ने ब्रह्मशिरस् अस्त्र से रोका था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.55 </span></p> | |||
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
महापुराण सर्ग संख्या 57/श्लो.नं. दूरवर्ती पूर्व भवमें राजगृहीके राजा विश्वभूतिके छोटे भाई विशाखभूतिके पुत्र विशाखनन्दी था ॥73॥ चिरकाल पर्यन्त अनेक योनियोंमें भ्रमण करनेके पश्चात् पुण्यके प्रतापसे उत्तर विजयार्धके राजा मयूरग्रीवके यहाँ अश्वग्रीव नामका पुत्र हुआ ॥87-88॥ यह वर्तमान युगका प्रथम प्रतिनारायण था - देखें शलाकापुरुष - 5।
पुराणकोष से
(1) प्रथम प्रतिनारायण । यह विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित अलका नगरी के राजा मयूरग्रीव और उसकी रानी नीलांजना का प्रथम पुत्र था । इसकी स्त्री का नाम कनकचित्रा था । इन दोनों के रत्नग्रीव, रत्नांगद, रत्नचूड़, रत्नरथ आदि पांच सौ पुत्र थे । हरिश्मश्रु तथा शतबिन्दू इसके क्रमश: शास्त्र और निमित्तज्ञानी मंत्री थे । रथनूपुर के राजा ज्वलननजटी की पुत्री के प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ को प्राप्त होने से रुष्ट होकर इसने त्रिपृष्ठ मे संग्राम किया, उस पर चक्र चलाया किन्तु चक्र त्रिपृष्ठ की दाहिनी भुजा पर जा पहुँचा । बाद में इसी चक्र से वह त्रिपृष्ठ द्वारा मारा गया । बहु आरम्भ (परिग्रह) के द्वारा नरकायु के बन्ध से रौद्रपरिणामी होकर यह मरा और सातवें नरक गया । महापुराण 62.58-61, 141-144, पद्मपुराण 46.213, हरिवंशपुराण 60.288-292, पांडवपुराण 4.19-21, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.104-105
(2) भविष्यत्कालीन सातवां पतिनारायण । हरिवंशपुराण 60.568-570
(3) एक अस्त्र । जरासन्ध द्वारा श्रीकृष्ण पर छोड़ें गये इस अस्त्र को कृष्ण ने ब्रह्मशिरस् अस्त्र से रोका था । हरिवंशपुराण 52.55