उपसंपदा: Difference between revisions
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
भगवती आराधना / मुल या टीका गाथा 509-514 तियरणसव्वावासयपडिपुण्णं तस्स किरिय किरियम्मं। विणएणमंजलिकदो वाइयवसमं इमं भणदि ।509। पुव्वज्जादी सव्वं कादूणालोयणं सुपरिसुद्धं। दंसणणाणचारित्ते णिसल्लो विहरिदुं इच्छे ।511। अच्छाहि ताम सुविदिद वीसत्थो मा य होहि उव्वादो। पडिचरएहिं समंता इणमट्ठं संपहारेमो ।514।
= मन वचन और शरीरके द्वारा सर्व सामायिक आदि छः आवश्यक कर्म जिसमें पूर्णताको प्राप्त हुए हैं ऐसा कृतिकर्म कर अर्थात् वन्दना करके विनयके साथ क्षपक हाथ जोड़कर श्रेष्ठ आचार्यको आगे लिखे हुए सूत्रके अनुसार विज्ञप्ति देता है ।509। दीक्षा ग्रहणकालसे आज तक जो जो व्रतादिकोंमें दोष उत्पन्न हुए हों उनकी मैं दश दोषोंसे रहित आलोचना कर दर्शन ज्ञान और चारित्रमें निःशल्य होकर प्रवृत्ति करनेकी इच्छा करता हूँ ।511। हे क्षपक, अब तुम निःशंक होकर हमारे संघमें ठहरो, अपने मनमेंसे खिन्नताको दूर भगाओ। हम प्रतिचारकोंके साथ तुम्हारे विषयमें अवश्य विचार करेंगे। (ऐसा आचार्य उत्तर देते हैं)। इस प्रकार उपसंपाधिकार समाप्त हुआ।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 509 की उत्थानिका 728 गुरुकुले आत्मनिसर्गः उपसंपा नाम समाचारः।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 68/196/6 उपसंपया आचार्यस्य ढौकनं
= गुरुकुलमें अपना आत्मसमर्पण करना यह उपसंपा शब्दका अभिप्राय है ।509। आचार्यके चरणमूलमें गमन करना उपसंपदा है ।68।