उपादान: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 11: | Line 11: | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ उपात्त | [[ उपात्त | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ उपादान कारण की मुख्यता गौणता | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: उ]] | [[Category: उ]] |
Revision as of 21:38, 5 July 2020
न्या.वि./वृ. 1/133/486/4 विविक्षतं वस्तु उपादानम् उत्तरस्य कार्यस्य सजातीयं कारणं प्रकल्पयेत्।
= विवक्षित उत्तर कार्यका सजातीय कारण कल्पित किया गया है।
अष्टसहस्री/पृ. 210 त्यक्तात्यक्तात्यरूपं यत्पूर्वापूर्वेण वर्तते। कालत्रयेऽपि तद् द्रव्यमुपादानमिति स्मृतम् ॥ यत् स्वरूपं त्यजत्येव यन्न त्यजति सर्वथा। तन्नोपादानमर्थस्य क्षणिकं शाश्वतं यथा।
= जो (द्रव्य) तीनों कालोंमें अपने रूपको छोड़ता हुआ और नहीं छोड़ता हुआ पूर्व रूपसे और अपूर्व रूपसे वर्त रहा है वह उपादान कारण है, ऐसा जानना चाहिए। जो अपने स्वरूपको छोड़ता ही है और जो उसे सर्वथा नहीं छोड़ता वह अर्थका उपादान नहीं होता जैसे क्षणिक और शाश्वत। भावार्थ-द्रव्यमें दो अंश हैं-एक शाश्वत और एक क्षणिक। गुण शाश्वत होनेके कारण अपने स्वरूपको त्रिकाल नहीं छोड़ते और पर्याय क्षणिक होनेके कारण अपने स्वरूपको प्रतिक्षण छोड़ती है। यह दोनों ही अंश उस द्रव्यसे पृथक् कोई अर्थान्तर रूप नहीं हैं। इन दोनोंसे समवेत द्रव्य ही कार्यका उपादान कारण है। अर्थान्तरभूत रूपसे स्वीकार किये गये शाश्वत-पदार्थ या क्षणिकपदार्थ कभी भी उपादान नहीं हो सकते हैं। क्योंकि सर्वथा शाश्वत पदार्थ में परिणमनका अभाव होनेके कारण कार्य ही नहीं तब कारण किसे कहें। और सर्वथा क्षणिक पदार्थ प्रतिक्षण विनष्ट ही हो जाता है तब उसे कारणपना कैसे बन सकता है।
(ज्ञानदर्पण 57-58)
अष्टसहस्री श्लो. 58 की टीका-"परिणाम क्षणिक उपादान है और गुण शाश्वत उपादान है।"
निमित्त, उपादान चिट्ठी पं. बनारसीदास-"उपादान वस्तुकी सहन शक्ति है।"
2. उपादानकी मुख्यता गौणता
- देखें कारण - II