कर्मक्षपण (कर्मक्षयविधि): Difference between revisions
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<p> एक व्रत । इसकी साधना के लिए नामकर्म को (तेरानवें प्रकृतियों के साथ समस्त कर्मों की एक सौ अड़तालीस उत्तरप्रकृतियों को लक्ष्य करके एक सौ अड़तालीस उपवास किये जाते हैं) । एक उपवास और एक पारणा के क्रम से यह व्रत दो सौ छियानवे दिनों में पूर्ण होता है । महापुराण 7.18, हरिवंशपुराण 34.321</p> | <p> एक व्रत । इसकी साधना के लिए नामकर्म को (तेरानवें प्रकृतियों के साथ समस्त कर्मों की एक सौ अड़तालीस उत्तरप्रकृतियों को लक्ष्य करके एक सौ अड़तालीस उपवास किये जाते हैं) । एक उपवास और एक पारणा के क्रम से यह व्रत दो सौ छियानवे दिनों में पूर्ण होता है । <span class="GRef"> महापुराण 7.18, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.321 </span></p> | ||
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Revision as of 21:39, 5 July 2020
एक व्रत । इसकी साधना के लिए नामकर्म को (तेरानवें प्रकृतियों के साथ समस्त कर्मों की एक सौ अड़तालीस उत्तरप्रकृतियों को लक्ष्य करके एक सौ अड़तालीस उपवास किये जाते हैं) । एक उपवास और एक पारणा के क्रम से यह व्रत दो सौ छियानवे दिनों में पूर्ण होता है । महापुराण 7.18, हरिवंशपुराण 34.321