कल्पतरु: Difference between revisions
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<p> इच्छाओं के पूरक भोगभूमि के वृक्ष । ये दस प्रकार के होते है— 1. मद्यांग 2. तूर्यांग 3. विभूषांग 4. स्रजांग 5. ज्योतिरंग 6. दीपांग 7. गृहांग 8. भोजनांग 9. पात्रांग 10. | <p> इच्छाओं के पूरक भोगभूमि के वृक्ष । ये दस प्रकार के होते है— 1. मद्यांग 2. तूर्यांग 3. विभूषांग 4. स्रजांग 5. ज्योतिरंग 6. दीपांग 7. गृहांग 8. भोजनांग 9. पात्रांग 10. वस्त्रांग । भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में अवसर्पिणी काल के प्रथम सुषमा-सुषमा नामक काल में सभी जातियों के कल्पवृक्ष विद्यमान थे । ये न तो वनस्पतिकायिक होते हैं और न देवों द्वारा अधिष्ठित । वृक्षाकार रूप में पृथ्वी के सार स्वरूप सामान्य वृक्षों की भाँति इष्ट फल प्रदान कर लोक का उपकार करते हैं । इन वृक्षों को कल्पपादप और कल्पद्रुम भी कहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 3.35-40, 9.49-51 </span></p> | ||
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Revision as of 21:39, 5 July 2020
इच्छाओं के पूरक भोगभूमि के वृक्ष । ये दस प्रकार के होते है— 1. मद्यांग 2. तूर्यांग 3. विभूषांग 4. स्रजांग 5. ज्योतिरंग 6. दीपांग 7. गृहांग 8. भोजनांग 9. पात्रांग 10. वस्त्रांग । भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में अवसर्पिणी काल के प्रथम सुषमा-सुषमा नामक काल में सभी जातियों के कल्पवृक्ष विद्यमान थे । ये न तो वनस्पतिकायिक होते हैं और न देवों द्वारा अधिष्ठित । वृक्षाकार रूप में पृथ्वी के सार स्वरूप सामान्य वृक्षों की भाँति इष्ट फल प्रदान कर लोक का उपकार करते हैं । इन वृक्षों को कल्पपादप और कल्पद्रुम भी कहते हैं । महापुराण 3.35-40, 9.49-51