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| <p class="HindiText">केवलज्ञान होने के पश्चात् वह साधक केवली कहलाता है। इसी का नाम अर्हन्त या जीवन्मुक्त भी है। वह भी दो प्रकार के होते हैं–तीर्थंकर व सामान्य केवली। विशेष पुण्यशाली तथा साक्षात् उपदेशादि द्वारा धर्म की प्रभावना करने वाले तीर्थंकर होते हैं, और इनके अतिरिक्त अन्य सामान्य केवली होते हैं। वे भी दो प्रकार के होते हैं, कदाचित् उपदेश देने वाले और मूक केवली। मूक केवली बिलकुल भी उपदेश आदि नहीं देते। उपरोक्त सभी केवलियों की दो अवस्थाएँ होती हैं–सयोग और अयोग। जब तक विहार व उपदेश आदि क्रियाएँ करते हैं, तब तक सयोगी और आयु के अन्तिम कुछ क्षणों में जब इन क्रियाओं को त्याग सर्वथा योग निरोध कर देते हैं तब अयोगी कहलाते हैं।<br /> | | <p id="1"> (1) केवलज्ञान धारी मुनि-अर्हन्तदेव । पंचमकाल में भगवान् महावीर के बाद ऐसे तीन केवली मुनि हुए है― इन्द्रभूति (गौतम), सुधर्माचार्य और जम्बू ये त्रिकाल संबंधी समस्त पदार्थों के ज्ञाता और द्रष्टा होते हैं । सिद्धौ के दर्शन ज्ञान और सुख को सम्पूर्ण रूप से ये ही जानते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 2.61, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.197-199 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.58-60 </span></p> |
| </p>
| | <p id="2">(2) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.112 </span></p> |
| <ol>
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| <li><span class="HindiText"><strong>भेद व लक्षण</strong> <br />
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText">१,२ केवली सामान्य का लक्षण व भेद निर्देश<br />
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| </li>
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| </ol>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> सयोग व अयोगी दोनों अर्हन्त हैं— देखें - [[ अर्हन्त#2 | अर्हन्त / २ ]]।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> अर्हंत, सिद्ध व तीर्थंकर अंतकृत् व श्रुतकेवली—दे० वह वह नाम।<br />
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| </li>
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| </ul>
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| <ol start="3">
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| <li class="HindiText"> तद्भवस्थ व सिद्ध केवली के लक्षण।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> सयोग व अयोग केवली के लक्षण।<br />
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| </li>
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| </ol>
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| </li>
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| <li><span class="HindiText"><strong> केवली निर्देश</strong> <br />
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> केवली चैतन्यमात्र नहीं बल्कि सर्वज्ञ होता है।<br />
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| </li>
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| </ol>
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| <ul>
| |
| <li class="HindiText"> सर्वज्ञ व सर्वज्ञता तथा केवली का ज्ञान— देखें - [[ केवलज्ञान#4 | केवलज्ञान / ४ ]],५।<br />
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| </li>
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| </ul>
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| <ol start="2">
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| <li class="HindiText"> सयोग व अयोग केवली में अन्तर।<br />
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| </li>
| |
| </ol>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> सयोगी के चारित्र में कथंचित् मल का सद्भाव— देखें - [[ केवली#2.2 | केवली / २ / २ ]]।<br />
| |
| </li>
| |
| </ul>
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| <ol start="3">
| |
| <li class="HindiText"> सयोग व अयोग केवली में कर्म क्षय सम्बन्धी विशेष।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के एक क्षायिक भाव होता है।<br />
| |
| </li>
| |
| </ol>
| |
| <ul>
| |
| <li class="HindiText"> केवली के सुख दुःख सम्बन्धी—देखें - [[ सुख | सुख। ]]<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> छद्मस्थ व केवली के आत्मानुभव की समानता।— देखें - [[ अनुभव#5 | अनुभव / ५ ]]।<br />
| |
| </li>
| |
| </ul>
| |
| <ol start="5">
| |
| <li class="HindiText"> केवलियों के शरीर की विशेषताएँ।<br />
| |
| </li>
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| </ol>
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| <ul>
| |
| <li class="HindiText"> तीर्थंकरों के शरीर की विशेषताएँ— देखें - [[ तीर्थंकर#1 | तीर्थंकर / १ ]]।<br />
| |
| </li>
| |
| <li class="HindiText"> केवलज्ञान के अतिशय— देखें - [[ अर्हंत#6 | अर्हंत / ६ ]]।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवलीमरण— देखें - [[ मरण#1 | मरण / १ ]]।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> तीसरे व चौथे काल में ही केवली होने संभव है।— देखें - [[ मोक्ष#4.3 | मोक्ष / ४ / ३ ]]।<br />
| |
| </li>
| |
| <li class="HindiText"> प्रत्येक तीर्थंकर के तीर्थ में केवलियों का प्रमाण— देखें - [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर / ५ ]]।<br />
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| </li>
| |
| <li class="HindiText"> सभी मार्गणाओं में आय के अनुसार ही व्यय होने सम्बन्धी नियम—देखें - [[ मार्गणा | मार्गणा ]]/।<br />
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| </li>
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| </ul>
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| </li>
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| <li><span class="HindiText"><strong> शंका–समाधान</strong> <br />
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> ईर्यापथ आस्रव सहित भी भगवान् कैसे हो सकते हैं।<br />
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| </li>
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| </ol>
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| </li>
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| <li><span class="HindiText"><strong> कवलाहार व परीषह सम्बन्धी निर्देश व शंका–समाधान</strong> <br />
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> केवली को नोकर्माहार होता है।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> समुद्घात अवस्था में नोकर्माहार भी नहीं होता।</li>
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| <li class="HindiText"> केवली को कवलाहार नहीं होता।</li>
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| <li class="HindiText"> मनुष्य होने के कारण केवली को भी कवलाहारी होना चाहिए।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> संयम की रक्षा के लिए भी केवली को कवलाहार की आवश्यकता थी।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> औदारिक शरीर होने से केवली को कवलाहारी होना चाहिए।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> आहारक होने से केवली को कवलाहारी होना चाहिए।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> परिषहों का सद्भाव होने से केवली को कवलाहारी होना चाहिए।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली भगवान् को क्षुधादि परिषह नहीं होती।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली को परीषह कहना उपचार है।<br />
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| </li>
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| <li><span class="HindiText"> असाता के उदय के कारण केवली को क्षुधादि परीषह होनी चाहिए।<br />
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> घाति व मोहनीय कर्म की सहायता के न होने से असाता अपना कार्य करने को समर्थ नहीं है।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> साता वेदनीय के सहवर्तीपने से असाता की शक्ति अनन्तगुणी क्षीण हो जाती है।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> असाता भी सातारूप परिणमन कर जाता है।<br />
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| </li>
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| </ol>
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| </li>
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| <li class="HindiText"> निष्फल होने के कारण असाता का उदय ही नहीं कहना चाहिए।</li>
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| </ol>
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| </li>
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| <li><span class="HindiText"><strong>इन्द्रिय व मन योग सम्बन्धी निर्देश व शंका-समाधान</strong><br />
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा पञ्चेन्द्रिय है, भावेन्द्रियों की अपेक्षा नहीं।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> जाति नामकर्मोदय की अपेक्षा पञ्चेन्द्रियत्व है।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> पञ्चेन्द्रिय कहना उपचार है।<br />
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| </li>
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| </ol>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> इन्द्रियों के अभाव में ज्ञान की सम्भावना सम्बन्धी शंका-समाधान– देखें - [[ प्रत्यक्ष#2 | प्रत्यक्ष / २ ]]।<br />
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| </li>
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| </ul>
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| <ol start="4">
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| <li class="HindiText"> भावेन्द्रियों के अभाव सम्बन्धी शंका-समाधान।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के मन उपचार से होता है।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के द्रव्यमन होता है, भाव मन नहीं।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> तहाँ मन का भावात्मक कार्य नहीं होता, पर परिस्पन्द रूप कार्य होता है।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> भावमन के अभाव में वचन की उत्पत्ति कैसे हो सकती है? <br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> मन सहित होते हुए भी केवली को संज्ञी क्यों नहीं कहते।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> योगों के सद्भाव सम्बन्धी समाधान।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के पर्याप्ति योग तथा प्राण विषयक प्ररुपणा।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा दश प्राण क्यों नहीं कहते ? <br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> समुद्घातगत केवली को चार प्राण कैसे कहते हो? <br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> अयोगी के एक आयु प्राण होने का क्या कारण है? <br />
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| </li>
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| </ol>
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| </li>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> योग प्राण तथा पर्याप्ति की प्ररुपणा–दे० वह वह नाम।<br />
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| </li>
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| </ul>
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| <li><span class="HindiText"><strong> ध्यान व लेश्या आदि सम्बन्धी निर्देश व शंका-समाधान</strong>
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| </span>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> केवली के समुद्घात अवस्था में भी भाव से शुक्ललेश्या है; तथा द्रव्य से कापोत लेश्या होती है।— देखें - [[ लेश्या#3 | लेश्या / ३ ]]।<br />
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| </li>
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| </ul>
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| </li>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> केवली के लेश्या कहना उपचार है तथा उसका कारण।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के संयम कहना उपचार है तथा उसका कारण।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के ध्यान कहना उपचार है तथा उसका कारण।<br />
| |
| </li>
| |
| <li class="HindiText"> केवली के एकत्व वितर्क विचार ध्यान क्यों नहीं कहते।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> तो फिर केवली क्या ध्याते हैं।<br />
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| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली को इच्छा का अभाव तथा उसका कारण।<br />
| |
| </li>
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| <li class="HindiText"> केवली के उपयोग कहना उपचार है।</li>
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| </ol>
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| <li><span class="HindiText"><strong> केवली समुद्घात निर्देश</strong>
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| </span>
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| <ol>
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| <li class="HindiText"> केवली समुद्घात सामान्य का लक्षण। </li>
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| <li class="HindiText"> भेद-प्रभेद।</li>
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| <li class="HindiText"> दण्डादि भेदों के लक्षण। </li>
| |
| <li class="HindiText"> सभी केवलियों के होने न होने विषयक दो मत।</li>
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| </ol>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> केवली समुद्घात के स्वामित्व की ओघादेश प्ररूपणा।–देखें - [[ समुद्घात | समुद्घात ]]</li>
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| </ul>
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| <ol start="5">
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| <li class="HindiText"> आयु के छ: माह शेष रहने पर होने न होने विषयक दो मत।</li>
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| <li class="HindiText"> कदाचित् आयु के अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर होता है। </li>
| |
| <li class="HindiText"> आत्म प्रदेशों का विस्तार प्रमाण।</li>
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| <li class="HindiText"> कुल आठ समय पर्यन्त रहता है। </li>
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| <li class="HindiText"> प्रतिष्ठापन व निष्ठापन विधिक्रम।</li>
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| <li class="HindiText"> दण्ड समुद्घात में औदारिक काययोग होता है शेष में नहीं। </li>
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| </ol>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> कपाट समुद्घात में औदारिक मिश्र काययोग होता है शेष में नहीं।– देखें - [[ औदारिक#2 | औदारिक / २ ]]।</li>
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| <li class="HindiText"> लोकपूरण समुद्घात में कार्माण काययोग होता है शेष में नहीं– देखें - [[ कार्माण#2 | कार्माण / २ ]]। </li>
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| </ul>
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| <ol start="11">
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| <li class="HindiText"> प्रतर व लोक में आहारक शेष में अनाहारक होता है।</li>
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| <li class="HindiText"> केवली समुद्घात में पर्याप्तापर्याप्त सम्बन्धी नियम। </li>
| |
| </ol>
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| <ul>
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| <li class="HindiText"> केवली के पर्याप्तापर्याप्तपने सम्बन्धी विषय।– देखें - [[ पर्याप्ति#3 | पर्याप्ति / ३ ]]।</li>
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| </ul>
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| <ol start="13">
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| <li class="HindiText"> पर्याप्तापर्याप्त सम्बन्धी शंका-समाधान। </li>
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| <li class="HindiText"> समुद्घात करने का प्रयोजन।</li>
| |
| <li class="HindiText"> इसके द्वारा शुभ प्रकृतियों का अनुभाग घात नहीं होता। </li>
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| <li class="HindiText"> जब शेष कर्मों की स्थिति आयु के समान न हो। तब उनका समीकरण करने के लिए होता है।</li>
| |
| <li class="HindiText"> कर्मों की स्थिति बराबर करने का विधि क्रम। </li>
| |
| <li class="HindiText"> स्थिति बराबर करने के लिए इसकी आवश्यकता क्यों?</li>
| |
| <li class="HindiText"> समुद्घात रहित जीव की स्थिति कैसे समान होती है? </li>
| |
| <li class="HindiText"> ९वें गुणस्थान में ही परिणामों की समानता होने पर स्थिति की असमानता क्यों?</li>
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| </ol>
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| </li>
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| </ol>
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