कोटिकशिला: Difference between revisions
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<p> निर्वाणशिला । अनेक कोटि मुनियों के इस शिला पर ध्यान करते हुए सिद्ध अवस्था को प्राप्त होने से यह इस नाम से विख्यात हो गयी । एक योजन ऊँची इतनी ही लम्बी और चौड़ी देवों द्वारा सुरक्षित इस शिला को नौ नारायणों ने अपनी शक्ति के अनुसार ऊँचा उठाया था प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ ने जहाँ तक भुजाएं ऊपर पहुँचती है वहाँ तक दूसरे नारायण द्विपृष्ट ने मस्तक तक, तीसरे | <p> निर्वाणशिला । अनेक कोटि मुनियों के इस शिला पर ध्यान करते हुए सिद्ध अवस्था को प्राप्त होने से यह इस नाम से विख्यात हो गयी । एक योजन ऊँची इतनी ही लम्बी और चौड़ी देवों द्वारा सुरक्षित इस शिला को नौ नारायणों ने अपनी शक्ति के अनुसार ऊँचा उठाया था प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ ने जहाँ तक भुजाएं ऊपर पहुँचती है वहाँ तक दूसरे नारायण द्विपृष्ट ने मस्तक तक, तीसरे स्वयंभू ने कण्ठ तक, चौथे पुरुषोत्तम ने वक्ष-स्थल तक, पाँचवें नृसिंह ने हृदय तक, छठे पुण्डरीक ने कमर तक, सातवें दत्तक ने जाँघों तक, आठवें लक्ष्मण ने घुटनों तक और नये श्रीकृष्ण ने इसे चार अंगुल ऊपर उठाया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 53.32-38 </span>इसी शिला के सम्बन्ध में योगीन्द्र अनन्तवीर्य ने भविष्यवाणी की थी कि जो इसे उठायेगा वही रावण की मृत्यु का निमित्त होगा । लक्ष्मण ने इसे उठाया और वही रावण का हन्ता हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 68. 643-645, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 48.185-186, 213-214 </span></p> | ||
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Revision as of 21:39, 5 July 2020
निर्वाणशिला । अनेक कोटि मुनियों के इस शिला पर ध्यान करते हुए सिद्ध अवस्था को प्राप्त होने से यह इस नाम से विख्यात हो गयी । एक योजन ऊँची इतनी ही लम्बी और चौड़ी देवों द्वारा सुरक्षित इस शिला को नौ नारायणों ने अपनी शक्ति के अनुसार ऊँचा उठाया था प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ ने जहाँ तक भुजाएं ऊपर पहुँचती है वहाँ तक दूसरे नारायण द्विपृष्ट ने मस्तक तक, तीसरे स्वयंभू ने कण्ठ तक, चौथे पुरुषोत्तम ने वक्ष-स्थल तक, पाँचवें नृसिंह ने हृदय तक, छठे पुण्डरीक ने कमर तक, सातवें दत्तक ने जाँघों तक, आठवें लक्ष्मण ने घुटनों तक और नये श्रीकृष्ण ने इसे चार अंगुल ऊपर उठाया था । हरिवंशपुराण 53.32-38 इसी शिला के सम्बन्ध में योगीन्द्र अनन्तवीर्य ने भविष्यवाणी की थी कि जो इसे उठायेगा वही रावण की मृत्यु का निमित्त होगा । लक्ष्मण ने इसे उठाया और वही रावण का हन्ता हुआ । महापुराण 68. 643-645, पद्मपुराण 48.185-186, 213-214