गोतम: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1">(1) सिन्धु-तट निवासी तपस्वी मृगायण और उसकी पत्नी विशाला का पुत्र । इसने | <p id="1">(1) सिन्धु-तट निवासी तपस्वी मृगायण और उसकी पत्नी विशाला का पुत्र । इसने पंचाग्नि तप किया था और तप के प्रभाव से मरकर सुदर्शन नाम का ज्योतिषी देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70. 142-143 </span></p> | ||
<p id="2">(2) अन्धकवृष्टि के तीसरे पूर्वभव का जीव । यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्रस्थ कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर के राजा धनंजय के समकालीन कपिष्ठल ब्राह्मण और अनुन्धरी नाम की ब्राह्मणी का दरिद्र पुत्र था । इसने समुद्रसेन मुनिराज के पीछे-पीछे जाकर वैक्वण सेठ के यहाँ भोजन किया था तथा इसे विशेष सन्तोष प्राप्त हुआ था । मुनिचर्या से प्रभावित होकर यह संयमी हुआ और एक वर्ष के बाद इसने ऋद्धियां प्राप्त कर ली थीं । आयु के अन्त में समाधिमरण कर मध्यम ग्रैवेयक के सुविशाल विमान में अहमिन्द्र हुआ तथा वहाँ से च्युत होकर अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि नाम का राजा हुआ । महापुराण 70. 160-162 । 173-181 अपरनाम गौतम । हरिवंशपुराण 18.103-110 </p> | <p id="2">(2) अन्धकवृष्टि के तीसरे पूर्वभव का जीव । यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्रस्थ कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर के राजा धनंजय के समकालीन कपिष्ठल ब्राह्मण और अनुन्धरी नाम की ब्राह्मणी का दरिद्र पुत्र था । इसने समुद्रसेन मुनिराज के पीछे-पीछे जाकर वैक्वण सेठ के यहाँ भोजन किया था तथा इसे विशेष सन्तोष प्राप्त हुआ था । मुनिचर्या से प्रभावित होकर यह संयमी हुआ और एक वर्ष के बाद इसने ऋद्धियां प्राप्त कर ली थीं । आयु के अन्त में समाधिमरण कर मध्यम ग्रैवेयक के सुविशाल विमान में अहमिन्द्र हुआ तथा वहाँ से च्युत होकर अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि नाम का राजा हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70. 160-162 </span>। 173-181 अपरनाम गौतम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.103-110 </span></p> | ||
<p id="3">(3) लवणसमुद्र की पश्चिमोत्तर दिशा में बारह योजन दूर स्थित बारह योजन विस्तृत और चारों ओर से सम एक द्वीप । हरिवंशपुराण 5. 469-470</p> | <p id="3">(3) लवणसमुद्र की पश्चिमोत्तर दिशा में बारह योजन दूर स्थित बारह योजन विस्तृत और चारों ओर से सम एक द्वीप । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 469-470 </span></p> | ||
<p id="4">(4) लवणसमुद्र के पश्चिमोत्तर दिशावर्ती इस नाम के द्वीप का अधिष्ठाता देव । यह परिवार आदि की दृष्टि से कौस्तुभ देव के समान था । हरिवंशपुराण 5.469-470</p> | <p id="4">(4) लवणसमुद्र के पश्चिमोत्तर दिशावर्ती इस नाम के द्वीप का अधिष्ठाता देव । यह परिवार आदि की दृष्टि से कौस्तुभ देव के समान था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.469-470 </span></p> | ||
<p id="5">(5) सौधर्मेन्द्र का आज्ञाकारी एक देव । हरिवंशपुराण 41.17</p> | <p id="5">(5) सौधर्मेन्द्र का आज्ञाकारी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 41.17 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ गोणसेन | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ गोत्र कर्म | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ग]] | [[Category: ग]] |
Revision as of 21:40, 5 July 2020
(1) सिन्धु-तट निवासी तपस्वी मृगायण और उसकी पत्नी विशाला का पुत्र । इसने पंचाग्नि तप किया था और तप के प्रभाव से मरकर सुदर्शन नाम का ज्योतिषी देव हुआ । महापुराण 70. 142-143
(2) अन्धकवृष्टि के तीसरे पूर्वभव का जीव । यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्रस्थ कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर के राजा धनंजय के समकालीन कपिष्ठल ब्राह्मण और अनुन्धरी नाम की ब्राह्मणी का दरिद्र पुत्र था । इसने समुद्रसेन मुनिराज के पीछे-पीछे जाकर वैक्वण सेठ के यहाँ भोजन किया था तथा इसे विशेष सन्तोष प्राप्त हुआ था । मुनिचर्या से प्रभावित होकर यह संयमी हुआ और एक वर्ष के बाद इसने ऋद्धियां प्राप्त कर ली थीं । आयु के अन्त में समाधिमरण कर मध्यम ग्रैवेयक के सुविशाल विमान में अहमिन्द्र हुआ तथा वहाँ से च्युत होकर अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि नाम का राजा हुआ । महापुराण 70. 160-162 । 173-181 अपरनाम गौतम । हरिवंशपुराण 18.103-110
(3) लवणसमुद्र की पश्चिमोत्तर दिशा में बारह योजन दूर स्थित बारह योजन विस्तृत और चारों ओर से सम एक द्वीप । हरिवंशपुराण 5. 469-470
(4) लवणसमुद्र के पश्चिमोत्तर दिशावर्ती इस नाम के द्वीप का अधिष्ठाता देव । यह परिवार आदि की दृष्टि से कौस्तुभ देव के समान था । हरिवंशपुराण 5.469-470
(5) सौधर्मेन्द्र का आज्ञाकारी एक देव । हरिवंशपुराण 41.17