चन्द्राभ: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) ग्यारहवें कुलकर । ये अभिचन्द्र कुलकर के पुत्र थे । इन्होंने पल्य के दस हजार करोड़ में भाग तक जीवित रहकर मरुदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था तथा एक मास तक उसका लालन-पालन कर स्वर्ग प्राप्त किया था । पद्मपुराण 3.87, हरिवंशपुराण 7.162-164, पांडवपुराण 2.106 ये नयुतप्रमितायु छ: सौ धनुष अवगाहना-प्राप्त और उदयकालीन सूर्य के समान दैदीप्यमान थे । | <p id="1"> (1) ग्यारहवें कुलकर । ये अभिचन्द्र कुलकर के पुत्र थे । इन्होंने पल्य के दस हजार करोड़ में भाग तक जीवित रहकर मरुदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था तथा एक मास तक उसका लालन-पालन कर स्वर्ग प्राप्त किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.87, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.162-164, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.106 </span>ये नयुतप्रमितायु छ: सौ धनुष अवगाहना-प्राप्त और उदयकालीन सूर्य के समान दैदीप्यमान थे । चन्द्रमा के समान जीवों के आह्लादिक होने से ये सार्थक नामधारी थे । इनके सदय में पुत्र के साथ रहने का भी समय मिलने लगा था । <span class="GRef"> महापुराण 3. 134-138 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । महापुराण 19.50, 53, 75.390</p> | <p id="2">(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19.50, 53, 75.390 </span></p> | ||
<p id="3">(3) रत्नप्रभा नगर के खरभाग का चौदहवाँ पटल । हरिवंशपुराण 4.54 देखें [[ खरभाग ]]</p> | <p id="3">(3) रत्नप्रभा नगर के खरभाग का चौदहवाँ पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.54 </span>देखें [[ खरभाग ]]</p> | ||
<p id="4">(4) विजयार्ध पर्वत के द्युतिलक नगर का राजा । यह विद्याधरों का स्वामी, सुभद्रा का पति और वायुवेगा का पिता था । महापुराण 62.36-37,74,134, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.73-74</p> | <p id="4">(4) विजयार्ध पर्वत के द्युतिलक नगर का राजा । यह विद्याधरों का स्वामी, सुभद्रा का पति और वायुवेगा का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.36-37,74,134, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.73-74 </span></p> | ||
<p id="5">(5) राम के पक्ष का एक विद्याधर योद्धा । बहुरूपिणी विद्या की साधना मे रत रावण को विचलित करने के उद्देश्य से यह लंका गया था । पद्मपुराण 58.3-7, 70. 12-16</p> | <p id="5">(5) राम के पक्ष का एक विद्याधर योद्धा । बहुरूपिणी विद्या की साधना मे रत रावण को विचलित करने के उद्देश्य से यह लंका गया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 58.3-7, 70. 12-16 </span></p> | ||
<p id="6">(6) वसुदेव के भाई अभिचन्द्र का तीसरा पुत्र । हरिवंशपुराण 48.52</p> | <p id="6">(6) वसुदेव के भाई अभिचन्द्र का तीसरा पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.52 </span></p> | ||
<p id="7">(7) ब्रह्म स्वर्ग का एक विमान । हरिवंशपुराण 27.117</p> | <p id="7">(7) ब्रह्म स्वर्ग का एक विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.117 </span></p> | ||
<p id="8">(8) एक विद्याधर । तापस मृगशृंग ने इसे देखकर ही विद्याधर होने का निदान किया था । हरिवंशपुराण 27.120-121</p> | <p id="8">(8) एक विद्याधर । तापस मृगशृंग ने इसे देखकर ही विद्याधर होने का निदान किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.120-121 </span></p> | ||
<p id="9">(9) रोहिणी के स्वयंवर में आया हुआ एक नृप । हरिवंशपुराण 31.28 </p> | <p id="9">(9) रोहिणी के स्वयंवर में आया हुआ एक नृप । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 31.28 </span></p> | ||
<p id="10">(10) राजपुर नगर-निवासी धनदत्त बौर नन्दिनी का पुत्र । महापुराण 75.527-529</p> | <p id="10">(10) राजपुर नगर-निवासी धनदत्त बौर नन्दिनी का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 75.527-529 </span></p> | ||
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Revision as of 21:40, 5 July 2020
(1) ग्यारहवें कुलकर । ये अभिचन्द्र कुलकर के पुत्र थे । इन्होंने पल्य के दस हजार करोड़ में भाग तक जीवित रहकर मरुदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था तथा एक मास तक उसका लालन-पालन कर स्वर्ग प्राप्त किया था । पद्मपुराण 3.87, हरिवंशपुराण 7.162-164, पांडवपुराण 2.106 ये नयुतप्रमितायु छ: सौ धनुष अवगाहना-प्राप्त और उदयकालीन सूर्य के समान दैदीप्यमान थे । चन्द्रमा के समान जीवों के आह्लादिक होने से ये सार्थक नामधारी थे । इनके सदय में पुत्र के साथ रहने का भी समय मिलने लगा था । महापुराण 3. 134-138
(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । महापुराण 19.50, 53, 75.390
(3) रत्नप्रभा नगर के खरभाग का चौदहवाँ पटल । हरिवंशपुराण 4.54 देखें खरभाग
(4) विजयार्ध पर्वत के द्युतिलक नगर का राजा । यह विद्याधरों का स्वामी, सुभद्रा का पति और वायुवेगा का पिता था । महापुराण 62.36-37,74,134, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.73-74
(5) राम के पक्ष का एक विद्याधर योद्धा । बहुरूपिणी विद्या की साधना मे रत रावण को विचलित करने के उद्देश्य से यह लंका गया था । पद्मपुराण 58.3-7, 70. 12-16
(6) वसुदेव के भाई अभिचन्द्र का तीसरा पुत्र । हरिवंशपुराण 48.52
(7) ब्रह्म स्वर्ग का एक विमान । हरिवंशपुराण 27.117
(8) एक विद्याधर । तापस मृगशृंग ने इसे देखकर ही विद्याधर होने का निदान किया था । हरिवंशपुराण 27.120-121
(9) रोहिणी के स्वयंवर में आया हुआ एक नृप । हरिवंशपुराण 31.28
(10) राजपुर नगर-निवासी धनदत्त बौर नन्दिनी का पुत्र । महापुराण 75.527-529