जन्म: Difference between revisions
From जैनकोष
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<p class="HindiText">जीवों का | <p class="HindiText">जीवों का जन्म तीन प्रकार माना गया है, गर्भज, संमूर्च्छन व उपपादज। तहां गर्भज भी तीन प्रकार का है जरायुज, अण्डज, पोतज। तहां मनुष्य तिर्यंचों का जन्म गर्भज व संमूर्च्छन दो प्रकार से होता है और देव नारकियों का केवल उपपादज। माता के गर्भ से उत्पन्न होना गर्भज है, और जेर सहित या अण्डे में उत्पन्न होते हैं वे जरायुज व अण्डज है, तथा जो उत्पन्न होते ही दौड़ने लगते हैं वे पोतज हैं। इधर-उधर से कुछ परमाणुओं के मिश्रण से जो स्वत: उत्पन्न हो जाते हैं जैसे मेंढक, वे संमूर्च्छन हैं। देव नारकी अपने उत्पत्ति स्थान में इस प्रकार उत्पन्न होते हैं, मानो सोता हुआ व्यक्ति जाग गया हो, वह उपपादज जन्म है।<br /> | ||
सम्यग्दर्शन आदि गुण विशेषों का अथवा नारक, तिर्यंचादि पर्याय विशेषों में व्यक्ति का जन्म के साथ क्या सम्बन्ध है वह भी इस अधिकार में बताया गया है।<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong> | <li><span class="HindiText"><strong> जन्म सामान्य निर्देश</strong> <br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> जन्म का लक्षण।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> योनि व कुल तथा | <li class="HindiText"> योनि व कुल तथा जन्म व योनि में अन्तर–देखें [[ योनि ]], कुल।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> जन्म से पहले जीव-प्रदेशों के संकोच का नियम।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> विग्रह गति में ही जीव का | <li class="HindiText"> विग्रह गति में ही जीव का जन्म नहीं मान सकते।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> आय के अनुसार ही | <li class="HindiText"> आय के अनुसार ही व्यय होता है–देखें [[ मार्गणा ]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> गतिबन्ध जन्म का कारण नहीं आयु है।देखें [[ आयु#2 | आयु - 2]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> चारों गतियों में | <li class="HindiText"> चारों गतियों में जन्म लेने सम्बन्धी परिणाम।–देखें [[ आयु#3 | आयु - 3]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> जन्म के पश्चात् बालक के जातकर्म आदि–देखें [[ संस्कार#2 | संस्कार - 2]]।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> गर्भज आदि | <li><span class="HindiText"><strong> गर्भज आदि जन्म विशेषों का निर्देश</strong><br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> जन्म के भेद।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> बाये गये बीज में बीजवाला ही जीव या | <li class="HindiText"> बाये गये बीज में बीजवाला ही जीव या अन्य कोई भी जीव उत्पन्न हो सकता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> उपपादज व गर्भज | <li class="HindiText"> उपपादज व गर्भज जन्मों का स्वामित्व।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> सम्मूर्च्छिम जन्म–देखें [[ सम्मूर्च्छन ]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> उपपादज | <li class="HindiText"> उपपादज जन्म की विशेषताएं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> वीर्य प्रवेश के सात दिन | <li class="HindiText"> वीर्य प्रवेश के सात दिन पश्चात् तक जीव गर्भ में आ सकता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> इसलिए कदाचित् अपने वीर्य से | <li class="HindiText"> इसलिए कदाचित् अपने वीर्य से स्वयं अपना भी पुत्र होना सम्भव है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> गर्भवास का काल प्रमाण।<br /> | <li class="HindiText"> गर्भवास का काल प्रमाण।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> | <li><span class="HindiText"><strong> सम्यग्दर्शन में जीव के जन्म सम्बन्धी नियम।</strong><br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> अबद्धायुष्क् सम्यग्दृष्टि उच्चकुल व गतियों आदि में ही जन्मता है, नीच में नहीं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टियों की चारों गतियों में उत्पत्ति सम्भव है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> परन्तु बद्धायुष्क उन-उन गतियों के उत्तम स्थानों में ही उत्पन्न होता है नीचों में नहीं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि चारों गतियों के उत्तम स्थानों में उत्पन्न होता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> नरकादि गतियों में | <li class="HindiText"> नरकादि गतियों में जन्म सम्बन्धी शंकाएं–देखें [[ वह वह नाम ]]।<br /> | ||
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<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> कृतकृत्यवेदक सहित जीवों के उत्पत्ति क्रम सम्बन्धी नियम।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> उपशमसम्यक्त्व सहित देवगति में ही उत्पन्न होने का नियम।–देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]]।<br /> | ||
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<ol start="6"> | <ol start="6"> | ||
<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> सम्यग्दृष्टि मरने पर पुरुषवेदी ही होते हैं।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> सासादन | <li><span class="HindiText"><strong> सासादन गुणस्थान में जीवों के जन्म सम्बन्धी मतभेद</strong><br /> | ||
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<li class="HindiText"> नरक में | <li class="HindiText"> नरक में जन्म का सर्वथा निषेध है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> अन्य तीन गतियों में उत्पन्न होने योग्य काल विशेष<br /> | ||
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<li class="HindiText"> पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में गर्भज संज्ञी पर्याप्त में ही | <li class="HindiText"> पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में गर्भज संज्ञी पर्याप्त में ही जन्मता है, अन्य में नहीं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> असंज्ञियों में भी | <li class="HindiText"> असंज्ञियों में भी जन्मता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> विकलेन्द्रियों में नहीं | <li class="HindiText"> विकलेन्द्रियों में नहीं जन्मता।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> विकलेन्द्रियों में भी | <li class="HindiText"> विकलेन्द्रियों में भी जन्मता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> एकेन्द्रियों में | <li class="HindiText"> एकेन्द्रियों में जन्मता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> एकेन्द्रियों में नहीं | <li class="HindiText"> एकेन्द्रियों में नहीं जन्मता।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> बादर पृथिवी, | <li class="HindiText"> बादर पृथिवी, अप् व प्रत्येक वनस्पति में जन्मता है अन्य कायों में नहीं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> बादर पृथिवी आदि कायिकों में भी नहीं | <li class="HindiText"> बादर पृथिवी आदि कायिकों में भी नहीं जन्मता।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> द्वितीयोपशम से प्राप्त सासादन वाला नियम से देवों में | <li class="HindiText"> द्वितीयोपशम से प्राप्त सासादन वाला नियम से देवों में उत्पन्न होता है–देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> एकेन्द्रियों में | <li class="HindiText"> एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते बल्कि उनमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> दोनों दृष्टियों का | <li class="HindiText"> दोनों दृष्टियों का समन्वय।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> जीवों के | <li><span class="HindiText"><strong> जीवों के उत्पाद सम्बन्ध कुछ नियम</strong><br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> 3 तथा 5-14 गुणस्थानों में उपपाद का अभाव–देखें [[ क्षेत्र#3 | क्षेत्र - 3]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> मार्गणास्थानों में जीव के उपपाद सम्बन्धी नियम व प्ररूपणाएं–देखें [[ क्षेत्र#3 | क्षेत्र - 3]],4।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> चरम शरीरियों व रुद्रादिकों का | <li class="HindiText"> चरम शरीरियों व रुद्रादिकों का जन्म चौथे काल में होता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> अच्युतकल्प से ऊपर संयमी ही जाते हैं।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> लौकान्तिक देवों में | <li class="HindiText"> लौकान्तिक देवों में जन्मने योग्य जीव।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> संयतासंयत नियम से | <li class="HindiText"> संयतासंयत नियम से स्वर्ग में जाता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> निगोद से आकर उसी भव से मोक्ष की | <li class="HindiText"> निगोद से आकर उसी भव से मोक्ष की सम्भावना।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> कौनसी कषाय में मरा हुआ | <li class="HindiText"> कौनसी कषाय में मरा हुआ कहां जन्मता है।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> लेश्याओं में जन्म सम्बन्धी सामान्य नियम।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> महामत्स्य से मरकर जन्म धारने सम्बन्धी मतभेद–देखें [[ मरण#5.6 | मरण - 5.6]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> नरक व देवगति में जीवों के उपपाद | <li class="HindiText"> नरक व देवगति में जीवों के उपपाद सम्बन्धी अन्तर प्ररूपणाएं–देखें [[ अन्तर#4 | अन्तर - 4]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> सत्कर्मिक जीवों के उपपाद सम्बन्धी–देखें [[ वह वह कर्म ]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> तालिकाओं में प्रयुक्त संकेत।<br /> | <li class="HindiText"> तालिकाओं में प्रयुक्त संकेत।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> किस | <li class="HindiText"> किस गुणस्थान से मरकर किस गति में उपजे।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> मनुष्य व तिर्यंच गति से चयकर देवगति में उत्पत्ति सम्बन्धी।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> नरकगति में | <li class="HindiText"> नरकगति में उत्पत्ति की विशेष प्ररूपणा।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> गतियों में प्रवेश व निर्गमन | <li class="HindiText"> गतियों में प्रवेश व निर्गमन सम्बन्धी गुणस्थान।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> गतिमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति।<br /> | <li class="HindiText"> गतिमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> इन्द्रिय काय व योग की अपेक्षा गति | <li class="HindiText"> इन्द्रिय काय व योग की अपेक्षा गति प्राप्ति।–देखें [[ जन्म#6.6 | जन्म - 6.6 ]]में तिर्यंचगति।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> वेदमार्गणा की अपेक्षा गति | <li class="HindiText"> वेदमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें [[ जन्म#6.5 | जन्म - 6.5]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> कषाय मार्गणा की अपेक्षा गति | <li class="HindiText"> कषाय मार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें [[ जन्म#5.6 | जन्म - 5.6]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> ज्ञान व संयम मार्गणा की अपेक्षा गति | <li class="HindiText"> ज्ञान व संयम मार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें [[ जन्म#6.3 | जन्म - 6.3]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> लेश्या की अपेक्षा गति प्राप्ति।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> सम्यक्त्व मार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें [[ जन्म#3.4 | जन्म - 3.4]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> भव्यत्व, संज्ञित्व व आहारकत्व की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें [[ जन्म#6.6 | जन्म - 6.6]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> लब्ध्यपर्याप्तकों में पुन: पुन: भवधारण की सीमा–देखें [[ आयु#7 | आयु - 7]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> सम्यग्दृष्टि की भवधारण सीमा–देखें [[ सम्यग्दर्शन#I.5 | सम्यग्दर्शन - I.5]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> सल्लेखनागत जीव की भवधारण सीमा–देखें [[ सल्लेखना#1 | सल्लेखना - 1]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> गुणोत्पादन तालिका किस गति से किस गति में उत्पन्न होकर कौन गुण उत्पन्न करे</li> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> जन्म सामान्य निर्देश</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.1" id="1.1"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.1" id="1.1"> जन्म का लक्षण</strong></span><br /> | ||
रा.वा./ | रा.वा./2/34/1/5 <span class="SanskritText">देवादिशरीरनिवृत्तौ हि देवादिजन्मेष्टम् ।</span>=<span class="HindiText">देव आदिकों के शरीर की निवृत्ति को जन्म कहा जाता है।</span><br /> | ||
रा.वा./ | रा.वा./4/42/4/250/15 <span class="HindiText">उभयनिमित्तवशादात्मलाभमापद्यमानो भाव: जायत इत्यस्य विषय:। यथा मनुष्य गत्यादिनामकर्मोदयापेक्षया आत्मा मनुष्यादित्वेन जायत इत्युच्यते।</span>=<span class="HindiText">बाह्य आभ्यन्तर दोनों निमित्तों से आत्मलाभ करना जन्म है, जैसे मनुष्यगति आदि के उदय से जीव मनुष्य पर्यायरूप से उत्पन्न होता है।</span><br /> | ||
भ.आ./वि./ | भ.आ./वि./25/85/14 <span class="SanskritText">प्राणग्रहणं जन्म।</span>=<span class="HindiText">प्राणों को ग्रहण करना जन्म है।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2"> जन्म धारण से पहिले जीवप्रदेशों के संकोच का नियम</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.4/1,3,2/29/6 <span class="PrakritText">उव्रवादो एयविहो। सो वि उप्पण्णपढमसमए चेव होदि। तत्थ उज्जुवगदीए उप्पण्णाणं खेत्तं बहुवं ण लब्भदि, संकोचिदासेसजीवपदेसादो</span>=<span class="HindiText">उपपाद एक प्रकार का है, और वह भी उत्पन्न होने के पहिले समय में ही होता है। उपपाद में ऋजुगति से उत्पन्न हुए जीवों का क्षेत्र बहुत नहीं पाया जाता है, क्योंकि इसमें जीव के समस्त प्रदेशों का संकोच हो जाता है।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1.3" id="1.3"> विग्रहगति में ही जीव का नवीन | <li><span class="HindiText"><strong name="1.3" id="1.3"> विग्रहगति में ही जीव का नवीन जन्म नहीं मान सकते</strong></span><br /> | ||
रा.वा./ | रा.वा./2/34/1/145/3 <span class="SanskritText">मनुष्यस्तैर्यग्योनो वा छिन्नायु: कार्मणकाययोगस्थो देवादिगत्युदयाद् देवादिव्यपदेशभागिति कृत्वा तदेवास्य जन्मेति मतमिति; तन्न; किं कारणम् । शरीरनिर्वर्तकपुद्गलाभावात् । देवादिशरीरनिवृत्तौ हि देवादिजन्मेष्टम् ।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–मनुष्य व तिर्यंचायु के छिन्न हो जाने पर कार्मणकाययोग में स्थित अर्थात् विग्रह गति में स्थित जीव को देवगति का उदय हो जाता है; और इस कारण उसको देवसंज्ञा भी प्राप्त हो जाती है। इसलिए उस अवस्था में ही उसका जन्म मान लेना चाहिए? <strong>उत्तर</strong>–ऐसा नहीं है, क्योंकि शरीरयोग्य पुद्गलों का ग्रहण न होने से उस समय जन्म नहीं माना जाता। देवादिकों के शरीर की निष्पत्ति को ही जन्म संज्ञा प्राप्त है।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> गर्भज आदि | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> गर्भज आदि जन्म विशेषों का निर्देश</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText" name="2.1" id="2.1"><strong> | <li><span class="HindiText" name="2.1" id="2.1"><strong> जन्म के भेद</strong></span><br /> | ||
त.सू./ | त.सू./2/21<span class="SanskritText"> सम्मूर्च्छनगर्भोपपादा जन्म।31।</span><br /> | ||
स.सि./ | स.सि./2/31/187/5<span class="SanskritText"> एते त्रय; संसारिणां जीवानां जन्मप्रकारा:।</span> =<span class="HindiText">सम्मूर्च्छन, गर्भज और उपपादज ये (तीन) जन्म हैं। संसारी जीवों के ये तीनों जन्म के भेद हैं। (रा.वा./2/31/4/140/30)<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2"> बोये गये बीज में बीजवाला ही जीव या | <li><span class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2"> बोये गये बीज में बीजवाला ही जीव या अन्य कोई जीव उत्पन्न हो सकता</strong> है</span><br /> | ||
गो.जी./मू./ | गो.जी./मू./187/425<span class="PrakritText"> बीजे जोणीभूदे जीवो चंकमदि सो व अण्णो वा। जे वि य मूलादीया ते पत्तेया पढमदाए।</span>=<span class="HindiText">मूल को आदि देकर जितने बीज कहे गये हैं वे जीव के उपजने के योनिभूत स्थान हैं। उसमें जल व काल आदि का निमित्त पाकर या तो उस बीज वाला ही जीव और या कोई अन्य जीव उत्पन्न हो जाता है।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3"> उपपादज व गर्भज | <li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3"> उपपादज व गर्भज जन्मों का स्वामित्व</strong> </span><br /> | ||
ति.प./ | ति.प./4/2948<span class="PrakritText"> उप्पत्ति मणुवाणं गब्भजसम्मुच्छियं खु दो भेदा।2948।</span><br /> | ||
ति.प./ | ति.प./5/293 <span class="PrakritText">उप्पत्ति तिरियाणं गब्भजसम्मुच्छिमो त्ति पत्तेक्कं। </span>=<span class="HindiText">मनुष्यों का जन्म गर्भ व सम्मूर्च्छन के भेद से दो प्रकार का है।2948। तिर्यंचों की उत्पत्ति गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से होती है।293।</span><br /> | ||
गो.जी.मू./ | गो.जी.मू./90-92/212 <span class="PrakritText">उववादा सुरणिरिया गब्भजसमुच्छिमा ह णरतिरिया।...।90। पंचिक्खतिरिक्खाओ गब्भजसम्मुच्छिमा तिरिक्खाणं। भोगभूमा गब्भभवा णरपुण्णा गब्भजा चेव।91। उबवादगब्भजेसु य लद्धिअप्पज्जत्तगा ण णियमेण।...।92।</span> =<span class="HindiText">देव और नारकी उपपाद जन्मसंयुक्त है। मनुष्य और तिर्यंच यथासम्भव गर्भज और सम्मूर्च्छन होता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच गर्भज और सम्मूर्च्छन दोनों प्रकार के होते हैं (विकलेन्द्रिय व एकेन्द्रिय सम्मूर्च्छन दोनों प्रकार के होते हैं) तिर्यंच योनि में भोगभूमिया तिर्यंच गर्भज ही होते हैं और पर्याप्त मनुष्य भी गर्भज ही होते हैं। उपपादज और गर्भज जीवों में नियम से अपर्याप्तक नहीं है (सम्मूर्च्छनों में ही होते हैं)।</span><br /> | ||
सू./ | सू./2/34 <span class="SanskritText">देवनारकाणामुपपाद:।34। </span>=<span class="HindiText">देव व नारकियों का जन्म उपपादज ही होता है। (मू.आ./1131)<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong | <li><span class="HindiText"><strong> उपपादज जन्म की विशेषताएं</strong> </span><br /> | ||
ति.प./ | ति.प./2/313-314 <span class="PrakritGatha">पावेणं णिरयबिले जादूणं ता मुहुत्तगंमेत्ते। छप्पज्जत्ती पाविय आकस्सियभयजुदो होदि।313। भीदीए कंपमाणो चलिदुं दुक्खेण पट्ठिओ संतो। छत्तीसाऊहमज्झे पडिदूणं तत्थ उप्पलइ।314।</span> =<span class="HindiText">नारकी जीव पाप से नरकबिल में उत्पन्न होकर और एक मुहूर्त मात्र काल में छह पर्याप्तियों को प्राप्त कर आकस्मिक भय से युक्त होता है।313। पश्चात् वह नारकी जीव भय कांपता हुआ बड़े कष्ट से चलने के लिए प्रस्तुत होकर और छत्तीस आयुधों के मध्य में गिरकर वहां से उछलता है (उछलने का प्रमाण–देखें [[ नरक#2 | नरक - 2]])।</span><br /> | ||
ति.प./ | ति.प./8/567 <span class="PrakritGatha">जायंते सुरलोए उववादपुरे महारिहे सयणे। जादा य मुहुत्तेण छप्पज्जत्तीओ पावंति।567।</span> =<span class="HindiText">देव सुरलोक के भीतर उपपादपुर में महार्घ शय्या पर उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होने पर एक मुहूर्त में ही छह पर्याप्तियों को भी प्राप्त कर लेते हैं।567।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.5" id="2.5"> वीर्यप्रदेश के सात दिन | <li class="HindiText"><strong name="2.5" id="2.5"> वीर्यप्रदेश के सात दिन पश्चात् तक जीव गर्भ में आ सकता है</strong> <br /> | ||
यशोधर चरित्र/ | यशोधर चरित्र/पृ0109 वीर्य तथा रज मिलने के पश्चात् 7 दिन तक जीव उसमें प्रवेश कर सकता है, तत्पश्चात् वह स्रवण कर जाता है।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li class="HindiText"><strong name="2.6" id="2.6"> इसीलिए कदाचित् अपने वीर्य से | <li class="HindiText"><strong name="2.6" id="2.6"> इसीलिए कदाचित् अपने वीर्य से स्वयं भी अपना पुत्र होना सम्भव है</strong><br /> | ||
यशोधर चरित्र/ | यशोधर चरित्र/पृ0109 अपने वीर्य द्वारा बकरी के गर्भ में स्वयं मरकर उत्पन्न हुआ।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.7" id="2.7"> गर्भवास का काल प्रमाण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.7" id="2.7"> गर्भवास का काल प्रमाण</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.10/4,2,4,58/278/8 <span class="PrakritText">गब्भम्मिपदिदपढमसमयप्पहुडि के वि सत्तमासे गब्भे अच्छिदूण गब्भादो णिस्सरंति, केवि अट्ठमासे, केवि णवमासे, के वि दसमासे, अच्छिदूण गब्भादो णिप्फिडंति। </span>=<span class="HindiText">गर्भ में आने के प्रथम समय से लेकर कोई सात मास गर्भ में रहकर उससे निकलते हैं, कोई आठ मास, कोई नौ मास और कोई दस मास रहकर गर्भ से निकलते हैं।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.8" id="2.8"> रज व वीर्य से शरीर निर्माण का क्रम</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.8" id="2.8"> रज व वीर्य से शरीर निर्माण का क्रम</strong></span><br /> | ||
भ.आ./मू./ | भ.आ./मू./1007-1017 <span class="PrakritGatha">कललगदं दसरत्तं अच्छदि कलुसकिदं च दसरत्तं। थिरभूदं दसरत्तं अच्छवि गब्भम्मि तं बीयं।1007। तत्तो मासं बुब्बुदभूदं अच्छदि पुणो वि घणभूदं। जायदि मासेण तदो मंसप्पेसी य मासेण।1008। मासेण पंचपुलगा तत्तो हुंति हु पुणो वि मासेण। अंगाणि उवंगाणि य णरस्स जायंति गब्भम्मि।1009। मासम्मि सत्तमे तस्स होदि चम्मणहरोमणिप्पत्ती। फंदणमट्ठममासे णवमे दसमे य णिग्गमणं।1010। आमासयम्मि पक्कासयस्स उवरिं अमेज्झमज्झम्मि। वत्थिपडलपच्छण्णो अच्छइ गब्भे हु णवमासं।1012। दन्तेहिं चव्विदं वीलणं च सिंभेण मेलिदं संतं। मायाहारिपमण्णं जुत्तं पित्तेण कडुएण।1015। वमिगं अमेज्झसरिसं वादविओजिदरसं खलं गब्भे। आहारेदि समंता उवरिं थिप्पंतगं णिच्चं।1016। तो सत्तमम्मि मासे उप्पलणालसरिसी हवइ णाही। तत्तो पाए वमियं तं आहारेदि णाहीए।1017।</span>=<span class="HindiText">माता के उदर में वीर्य का प्रवेश होने पर वीर्य का कलल बनता है, जो दस दिन तक काला रहता है और अगले 10 दिन तक स्थिर रहता है।1007। दूसरे मास वह बुदबुदरूप हो जाता है, तीसरे मास उसका घट्ट बनता है और चौथे मास में मांसपेशी का रूप धर लेता है।1008। पांचवें मास उसमें पांच पुंलव (अंकुर) उत्पन्न होते हैं। नीचे के अंकुर से दो पैर, ऊपर के अंकुर से मस्तक और बीच में अंकुरों से दो हाथ उत्पन्न होते हैं। छठे मास उक्त पांच अंगों की और आंख, कान आदि उपांगों की रचना होती है।1009। सातवें मास उन अवयवों पर चर्म व रोम उत्पन्न होते हैं और आठवें मास वह गर्भ में ही हिलने-डुलने लगता है। नवमें या दसवें मास वह गर्भ से बाहर आता है।1010। आमाशय और पक्वाशय के मध्य वह जेर से लिपटा हुआ नौ मास तक रहता है।1012। दांत से चबाया गया कफ से गीला होकर मिश्रित हुआ ऐसा, माता द्वारा भुक्त अन्न माता के उदर में पित्त से मिलकर कडुआ हो जाता है।1015। वह कडुआ अन्न एक-एक बिन्दु करके गर्भस्थ बालक पर गिरता है और वह उसे सर्वांग से ग्रहण करता रहता है।1016। सातवें महीने में जब कमल के डंठल के समान दीर्घ नाल पैदा हो जाता है तब उसके द्वारा उपरोक्त आहार को ग्रहण करने लगता है। इस आहार से उसका शरीर पुष्ट होता है।1017।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> सम्यग्दर्शन में जीव के जन्म सम्बन्धी नियम</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText" name="3.1" id="3.1"><strong> | <li><span class="HindiText" name="3.1" id="3.1"><strong> अबद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि उच्च कुल व गतियों आदि में ही जन्मता है नीच में नहीं</strong></span><br /> | ||
र.क.श्रा./ | र.क.श्रा./35-36<span class="SanskritText"> सम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यङ्नपुंसकस्त्रीत्वानि। दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिका:।35। ओजस्तेजो विद्यावीर्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथा:। महाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूता:।36।</span> =<span class="HindiText">जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध हैं वे व्रतरहित होने पर भी नरक, तिर्यंच, नपुंसक व स्त्रीपने को तथा नीचकुल, विकलांग, अल्पायु और दरिद्रपने को प्राप्त नहीं होते हैं।35। शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव कान्ति, प्रताप, विद्या, वीर्य, यश की वृद्धि, विजय विभव के स्वामी उच्चकुली धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के साधक मनुष्यों में शिरोमणि होते हैं।36। (द्र.सं./टी./41/178/8 पर उद्धृत)।</span><br /> | ||
द्र.सं./टी./ | द्र.सं./टी./41/178/7 <span class="SanskritText">इदानीं येषां जीवानां सम्यग्दर्शनग्रहणात्पूर्वमायुर्बन्धो नास्ति तेषां व्रताभावेऽपि नरनारकादिकुत्सितस्थानेषु जन्म न भवतीति कथयति।</span>=<span class="HindiText">अब जिन जीवों के सम्यग्दर्शन ग्रहण होने से पहले आयु का बन्ध नहीं हुआ है, वे व्रत न होने पर भी निन्दनीय नर नारक आदि स्थानों में जन्म नहीं लेते, ऐसा कथन करते हैं। (आगे उपरोक्त श्लोक उद्धृत किये हैं। अर्थात् उपरोक्त नियम अबद्धायुष्क के लिए जानना बद्धायुष्क के लिए नहीं)।</span><br /> | ||
का.अ./मू./ | का.अ./मू./327 <span class="PrakritGatha">सम्माइट्ठी जीवो दुग्गदि हेदुं ण बंधदे कम्मं। जं बहु भवेसु बद्धं दुक्कम्मं तं पि णासेदि।37। </span>=<span class="HindiText">सम्यग्दृष्टि जीव ऐसे कर्मों का बन्ध नहीं करता जो दुर्गति के कारण हैं बल्कि पहले अनेक भवो में जो अशुभ कर्म बांधे हैं उनका भी नाश कर देता है।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="3.2" id="3.2"> | <li><span class="HindiText"><strong name="3.2" id="3.2"> बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि की चारों गतियों में उत्पत्ति संभव है</strong></span><br /> | ||
गो.जी./जी.प्र/ | गो.जी./जी.प्र/127/338/15 <span class="SanskritText">मिथ्यादृष्टसंयतगुणस्थानमृताश्चतुर्गतिषु...चोत्पद्यन्ते। </span>=<span class="HindiText">मिथ्यादृष्टि और संयत गुणस्थानवर्ती चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3.3" id="3.3"> | <li><span class="HindiText"><strong name="3.3" id="3.3"> परन्तु बद्धायुष्क उन-उन गतियों के उत्तम स्थानों में ही उत्पन्न होते हैं नीचों में नहीं</strong> </span><br /> | ||
पं.सं.प्रा./ | पं.सं.प्रा./1/193 <span class="PrakritGatha">छसु हेट्ठिमासु पुढवीसु जोइसवणभवणसव्व इत्थीसु। बारस मिच्छावादे सम्माइट्ठीसु णत्थि उववादो।</span> =<span class="HindiText">प्रथम पृथिवियों के बिना अधस्थ छहों पृथिवियों में, ज्योतिषी व्यन्तर भवन-वासी देवों में सर्व प्रकार की स्त्रियों में अर्थात् तिर्यंचिनी मनुष्यणी और देवियों में तथा बारह मिथ्यावादों में अर्थात् जिनमें केवल मिथ्यात्व गुणस्थान ही सम्भव है ऐसे एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय और असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यंचों के बारह जीवसमासों में, सम्यग्दृष्टि जीव का उत्पाद नहीं है, अर्थात् सम्यक्त्व सहित ही मरकर इनमें उत्पन्न नहीं होता है। (ध.1/1,1,26/गा.133/209); (गो.जी.मू./129/339)।</span><br /> | ||
द्र.सं./टी./ | द्र.सं./टी./41/179/2 <span class="SanskritText">इदानीं सम्यक्त्वग्रहणात्पूर्व देवायुष्कं विहाय ये बद्धायुष्कास्तान् प्रति सम्यक्त्वमाहात्म्यं कथयति। हेटि्ठमछप्पुढवीणं जोइसवणभवणसव्वइच्छीणं। पुण्णिदरेण हि समणो णारयापुण्णे। (गो.जी.मू./138/339)। तमेवार्थं प्रकारान्तरेण कथयति–ज्योतिर्भावनभौमेषु षट्स्वध: श्वभ्रभूमिषु। तिर्यक्षु नृसुरस्त्रीषु सद्दृष्टिर्नैव जायते। </span>=<span class="HindiText">अब जिन्होंने सम्यक्त्व ग्रहण करने के पहले ही देवायु को छोड़कर अन्य किसी आयु का बन्ध कर लिया है उनके प्रति सम्यक्त्व का माहात्म्य कहते हैं। (यहां दो गाथाएं उद्धृत की हैं)। (गो.जी.मू./128/339 से)–प्रथम नरक को छोड़कर अन्य छह नरकों में; ज्योतिषी, व्यन्तर व भवनवासी देवों में, सब स्त्री लिंगों में और तिर्यंचों में सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होते। (गो.जी./मू./128)। इसी आशय को अन्य प्रकार से कहते हैं–ज्योतिषी, भवनवासी और व्यन्तर देवों में, नीचे के 6 नरकों की पृथिवियों में, तिर्यंचों में और मनुष्यणियों व देवियों में सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होते।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3.4" id="3.4"> | <li><span class="HindiText"><strong name="3.4" id="3.4"> बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि चारों ही गतियों के उत्तम स्थानों में उत्पन्न होता है</strong></span><br /> | ||
क.पा./ | क.पा./2/2/240/213/3 <span class="PrakritText">खीणदंसणमोहणीयं चउग्गईसु उप्पज्जमाणं पेक्खिदूण।</span> =<span class="HindiText">जिनके दर्शनमोहनीय का क्षय हो गया है ऐसे जीव चारों गतियों में उत्पन्न होते हुए देखे जाते हैं।</span><br /> | ||
ध. | ध.2/1,1/481/1 <span class="PrakritText">मणुस्सा पुव्वबद्ध-तिरिक्खयुगापच्छा सम्मत्तं घेत्तूण दंसणमोहणीय खविय खइय सम्माइट्ठी होदूण असंखेज्ज-वस्सायुगेसु तिरिक्खेसु उप्पज्जंति ण अणत्थ। </span>=<span class="HindiText">जिन मनुष्यों ने सम्यग्दर्शन होने से पहले तिर्यंचायु को बांध लिया वे पीछे सम्यक्त्व को ग्रहण कर और दर्शनमोहनीय का क्षपण करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर असंख्यात वर्ष की आयुवाले भोगभूमि के तिर्यंचों में ही उत्पन्न होते हैं अन्यत्र नहीं। (विशेष देखें [[ तिर्यंच#2 | तिर्यंच - 2]])।</span><br /> | ||
ध. | ध.1/1,1,25/205/5 <span class="SanskritText">सम्यग्दृष्टीनां बद्धायुषां तत्रोत्पत्तिरस्तीति तत्रासंयतसम्यग्दृष्टय: सन्ति। </span>=<span class="HindiText">बद्धायुष्क (क्षायिक) सम्यग्दृष्टियों की नरक में उत्पत्ति होती है, इसलिए नरक में असंयत सम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं।</span><br /> | ||
ध. | ध.1/1,1,25/207/1 <span class="SanskritText">प्रथमपृथिव्युत्पत्तिं प्रति निषेधाभावात् । प्रथमपृथिव्यामिव द्वितीयादिषु पृथिवीषु सम्यग्दृष्टय: किन्नोत्पद्यन्त इति चेन्न, सम्यक्त्वस्य तत्रतन्न्यापर्याप्ताद्धया सह विरोधात् ।</span> =<span class="HindiText">सम्यग्दृष्टि मरकर प्रथम पृथिवी में उत्पन्न होते हैं, इसका आगम में निषेध नहीं है। प्रश्न–प्रथम पृथिवी की भांति द्वितीयादि पृथिवियों में भी वे क्यों उत्पन्न नहीं होते हैं? उत्तर–नहीं, क्योंकि, द्वितीयादि पृथिवियों की अपर्याप्त अवस्था के साथ सम्यग्दर्शन का विरोध है। (विशेष–देखें [[ नरक#4 | नरक - 4]])।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3.5" id="3.5"> | <li><span class="HindiText"><strong name="3.5" id="3.5"> कृतकृत्य वेदक सहित जीवों के उत्पत्ति क्रम सम्बन्धी नियम</strong></span><br /> | ||
क.पा./ | क.पा./2/2-/242/215/7 <span class="PrakritText">पढमसमयकदकरणिज्जो जदि मरदि णियमो देवेसु उव्वज्जदि। जदि णेरइएसु तिरिक्खेसु मणुस्सेसु वा उववज्जदि तो णियमा। अंतोमुहुत्तकदकरणिज्जो त्ति जइवसहाइरियपरूविद चुण्णिसुत्तादो। </span>=<span class="HindiText">कृतकृत्यवेदक जीव यदि कृतकृत्य होने के प्रथम समय में मरण करता है तो नियम से देवों में उत्पन्न होता है। किन्तु जो कृतकृत्यवेदक जीव नारकी तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होता है वह नियम से अन्तर्मुहूर्त काल तक कृतकृत्यवेदक रहकर ही मरता है। इस प्रकार यतिवृषभाचार्य के द्वारा कहे चूर्ण सूत्र में जाना जाता है।</span><br /> | ||
ध. | ध.2/1,1/481/4 <span class="PrakritText">तत्थ उप्पज्जमाण कदकरणिज्जं पडुच्च वेदगसम्मत्तं लब्भदि।</span>=<span class="HindiText">उन्हीं भोग भूमि के तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले (बद्धायुष्क–देखो अगला शीर्षक) जीवों के कृतकृत्य वेदक की अपेक्षा वेदक सम्यक्त्व भी पाया जाता है।</span><br /> | ||
गो.क./मू./ | गो.क./मू./562/764 <span class="PrakritGatha">देवेसु देवमणुवे सुरणरतिरिये चउगईसुंपि। कदकरणिज्जुप्पत्ती कमसो अंतोमुहुत्तेण।562। </span>=<span class="HindiText">कृतकृत्य वेदक का काल अन्तर्मुहूर्त है। ताका चार भाग कीजिए। तहां क्रमतैं प्रथमभाग का अन्तर्मुहूर्तकरि मरया हुआ देवविषै उपजै है, दूसरे भाग का मरा हुआ देवविषै व मनुष्यविषै, तीसरे भाग का देव मनुष्य व तिर्यंचविषै, चौथे भाग का देव, मनुष्य, तिर्यंच व नारक (इन चारों में से) किसी एक विषै उपजै है। (ल.सा./मू./146/200)।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3.6" id="3.6"> | <li><span class="HindiText"><strong name="3.6" id="3.6"> सम्यग्दृष्टि मरने पर पुरुषवेदी ही होता है</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.2/1,1/510/10<span class="PrakritText"> देव णेरइय मणुस्स-असंजदसम्माइट्ठिणो जदि मणुस्सेसु उप्पज्जंति तो णियमा पुरिसवेदेसु चेव उप्पंज्जंति ण अण्णवेदेसु तेण पुरिसवेदो चेव भणिदो।</span>=<span class="HindiText">देव नारकी और मनुष्य असंयत सम्यग्दृष्टि जीव मरकर यदि मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, तो नियम से पुरुषवेदी मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं; अन्य वेदवाले मनुष्यों में नहीं। इससे असंयत सम्यग्दृष्टि अपर्याप्त के एक पुरुषवेद ही कहा है (विशेष देखें [[ पर्याप्ति ]])।</span><br /> | ||
ध. | ध.1/1,1,93/332/10 <span class="SanskritText">हुण्डावसर्पिण्यां स्त्रीषु सम्यग्दृष्टय: किन्नोत्पद्यन्ते इति चेन्न, उत्पद्यन्ते। कुतोऽवसीयते ? अस्मादेवार्षात् ।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–हुण्डावसर्पिणीकाल सम्बन्धी स्त्रियों में सम्यग्दृष्टि जीव क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि उनमें सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। <strong>प्रश्न</strong>–यह किस प्रमाण से जाना जाता है ? <strong>उत्तर</strong>–इसी (ष.खं.) आगमप्रमाण से जाना जाता है।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> सासादन | <li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> सासादन गुणस्थान में जीवों के जन्म सम्बन्धी मतभेद</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="4.1" id="4.1">नरक में | <li><span class="HindiText"><strong> <a name="4.1" id="4.1"></a>नरक में जन्मने का सर्वथा निषेध है</strong></span><br /> | ||
ध. | ध.6/1,9-9/47/438/8 <span class="PrakritText">सासणसम्माइट्ठीणं च णिरयगदिम्हि पवेसो णत्थि। एत्थ पवेसापदुप्पायण अण्णहाणुववत्तीदो। </span>=<span class="HindiText">सासादन सम्यग्दृष्टियों का नरकगति में प्रवेश ही नहीं है, क्योंकि यहां प्रवेश के प्रतिपादन न करने की अन्यथा उपपत्ति नहीं बनती। (सूत्र नं.46 में मिथ्यादृष्टि के नरक में प्रवेश विषयक प्ररूपणा करके सूत्र नं.47 में सम्यग्दृष्टि के प्रवेश विषयक प्ररूपणा की गयी है। बीच में सासादन व मिश्र गुणस्थान की प्ररूपणाएं छोड़ दी हैं)।</span><br /> | ||
ध. | ध.1/1,1,25/205/9 <span class="SanskritText">न सासादनगुणवतां तत्रोत्पत्तिस्तद्गुणस्य तत्रोत्पत्त्या सह विरोधात् ।...किमित्यपर्याप्तया विरोधश्चेत्स्वभावोऽयं, न हि स्वभावा: परपर्यनुयोगार्हा:।</span> =<span class="HindiText">सासादन गुणस्थान का नरक में उत्पत्ति के साथ विरोध है। <strong>प्रश्न</strong>–नरकगति में अपर्याप्तावस्था के साथ दूसरे (सासादन) गुणस्थान का विरोध क्यों है? <strong>उत्तर</strong>–यह नारकियों का स्वभाव है, और स्वभाव दूसरे के प्रश्न के योग्य नहीं होते।</span><br /> | ||
गो.क./जी.प्र./ | गो.क./जी.प्र./127/338/15 <span class="SanskritText">सासादनगुणस्थानमृता नरकवर्जितगतिषु उतोत्पद्यन्ते। </span>=<span class="HindiText">सासादन गुणस्थान में मरा हुआ जीव नरक रहित शेष तीन गतियों में उत्पन्न होते हैं।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.2" id="4.2"> | <li><span class="HindiText"><strong> <a name="4.2" id="4.2"></a>अन्य तीन गतियों में उत्पन्न होने योग्य कालविशेष</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.5/1,6,38/35/3 <span class="PrakritText">सासणं पडिवण्णविदिए समए जदि मरदि, तो णियमेण देवगदीए उववज्जदि। एवं जाव आवलियाए असंखेज्जदिभागो देवगदिपाओग्गो कालो होदि। तदो उवरि मणुसगदिपाओग्गो आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो कालो होदि। एवं सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-चउरिंदिय-तेइंदिय-वेइंदिय-एइंदियपाओग्गो होदि। एसो णियमो सव्वत्थ सासणगुणं पडिवज्जमाणाणं। </span>=<span class="HindiText">सासादन गुणस्थान को प्राप्त होने के द्वितीय समय में यदि वह जीव मरता है तो नियम से देवगति में उत्पन्न होता है। इस प्रकार आवली के असंख्यातवें भागप्रमाणकाल देवगति में उत्पन्न होने के योग्य होता है। उसके ऊपर मनुष्यगति (में उत्पन्न होने) के योग्यकाल आवली के असंख्यातवेंभाग प्रमाण है। इसी प्रकार से आगे-आगे संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने योग्य (काल) होता है। यह नियम सर्वत्र सासादन गुणस्थान को प्राप्त होने वालों का जानना चाहिए।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.3" id="4.3"> पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में गर्भज संज्ञी पर्याप्त में ही | <li><span class="HindiText"><strong name="4.3" id="4.3"> पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में गर्भज संज्ञी पर्याप्त में ही जन्मता है अन्य में नहीं</strong></span><br /> | ||
ष.खं./ | ष.खं./6/1,9-9/सू. 122-125/461<span class="PrakritText"> पंचिंदिएसु गच्छंता सण्णीसु गच्छंति, णो असण्णीसु।122। सण्णीसु गच्छंता गब्भोवक्कंतिएसु गच्छंता, णो सम्मुच्छिमेसु।123। गब्भोवक्कंतिएसु गच्छंता पज्जयत्तएससु, णो अप्पज्जत्तएसु।124। पज्जत्तएसु गच्छंता संखेज्जवासाउएसु वि गच्छंति असंखेज्जवासाउवेसु वि।125।</span> =<span class="HindiText">तिर्यंचों में जाने वाले संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच।119। पंचेन्द्रियों में भी जाते हैं।120। पंचेन्द्रियों में भी संज्ञियों में ही जाते हैं असंज्ञियों में नहीं।122। संज्ञियों में भी गर्भजों में जाते हैं संमूर्च्छिमों में नहीं।123। गर्भजों में भी पर्याप्तकों में जाते हैं अपर्याप्तकों में नहीं।124। पर्याप्तकों में जाने वाले वे संख्यात वर्षायुष्कों में भी जाते हैं और असंख्यात वर्षायुष्कों में भी।125। (देखो आगे गति अगति चूलिका नं.3 शेष गतियों से आने वाले जीवों के लिए भी उपरोक्त ही नियम है।) (ध.2/1,1/427)।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.4" id="4.4"> असंज्ञियों में भी | <li><span class="HindiText"><strong name="4.4" id="4.4"> असंज्ञियों में भी जन्मता है</strong></span><br /> | ||
गो.जी./जी.प्र./ | गो.जी./जी.प्र./695/1131/13<span class="PrakritText"> सासादने...संज्ञ्यसंज्ञ्यपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता:...। द्वितीयोपशम सम्यक्त्वविराधकस्य सासादनत्वप्राप्तिपक्षे च संज्ञिपर्याप्तदेवापर्याप्ताविति द्वौ।</span>=<span class="HindiText">सासादनविषै जीवसमास असंज्ञी अपर्याप्त और संज्ञी पर्याप्त व अपर्याप्त भी होते हैं और द्वितीयोपशम सम्यक्त्वतै पड़ जो सासादनको भया होइ ताकि अपेक्षा तहां सैनी पर्याप्त और देव अपर्याप्त ये दो ही जीव समास है। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/14); (गो.क./जी.प्र./551/753/4)।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.5" id="4.5"> विकलेन्द्रियों में नहीं | <li><span class="HindiText"><strong name="4.5" id="4.5"> विकलेन्द्रियों में नहीं जन्मता</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.6/1,9-9/सू.120/459 <span class="PrakritText">तिरिक्खेसु गच्छंता एइंदिए पंचिंदिएसु गच्छंति णो विगलिंदिएसु।120। </span>=<span class="HindiText">तिर्यंचों में जाने वाले संख्यातवर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच एकेन्द्रिय व पंचेन्द्रियों में जाते हैं पर विकलेन्द्रियों में नहीं।120।<br /> | ||
ध. | ध.6/1,9-9/सूत्र76-78;150-152;175 (नरक, मनुष्य व देवगति से आकर तिर्यंचों में उपजने वाले सासादन सम्यग्दृष्टियों के लिए भी उपरोक्त ही नियम कहा गया है)।<br /> | ||
ध. | ध.2/1,1/576,580 (विकलेन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्त दोनों अवस्थाओं में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है)।<br /> | ||
( देखें | (देखें [[ इन्द्रिय#4.4 | इन्द्रिय - 4.4]]) विकलेन्द्रियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.6" id="4.6"> विकलेन्द्रियों में भी | <li><span class="HindiText"><strong name="4.6" id="4.6"> विकलेन्द्रियों में भी जन्मता है</strong> </span><br /> | ||
पं.सं./प्रा./ | पं.सं./प्रा./4/59<span class="PrakritText"> मिच्छा सादा दोण्णि य इगि वियले होंति ताणि णायव्वा।</span><br /> | ||
पं.सं./प्रा.टी./ | पं.सं./प्रा.टी./4/59/99/1 <span class="SanskritText">तेदेकेन्द्रियविकलेन्द्रियाणां पर्याप्तकाले एकं मिथ्यात्वम् । तेषां केषांचित् अपर्याप्तकाले उत्पत्तिसमये सासादनं संभवति। </span>=<span class="HindiText">इन्द्रिय मार्गणा की अपेक्षा एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि उक्त जीवों में सासादन गुणस्थान निवृत्त्यपर्याप्त दशा में ही सम्भव है अन्यत्र नहीं, क्योंकि पर्याप्त दशा में तो तहां एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही पाया जाता है।</span><br /> | ||
गो.जी./जी.प्र./ | गो.जी./जी.प्र./695/1131/13 <span class="SanskritText">सासादने बादरैकद्वित्रिचतुरिन्द्रिय संज्ञ्यसंज्ञ्यपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता: सप्त।</span> =<span class="HindiText">सासादन विषै बादर एकेन्द्री बेंद्री तेंद्री चौइंद्री व असैनी तो अपर्याप्त और सैनी पर्याप्त व अपर्याप्त ए सात जीव समास होते हैं। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/11), (गो.क./जी.प्र./551/753/4)।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.7" id="4.7"> एकेन्द्रियों में | <li><span class="HindiText"><strong name="4.7" id="4.7"> एकेन्द्रियों में जन्मता है</strong></span><br /> | ||
ष.खं. | ष.खं.6/1,9-9/सूत्र120/459 <span class="SanskritText">तिरिक्खेसु गच्छंता एइंदिया पंचिंदिएसु गच्छंति, णो विगलिंदिएसु।120।</span>=<span class="HindiText">तिर्यंचों में जाने वाले संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच एकेन्द्रिय व पञ्चेन्द्रिय में जाते हैं, परन्तु विकलेन्द्रिय में नहीं जाते।<br /> | ||
ष.खं. | ष.खं.6/1,9-9/सूत्र76-78/150-152;175 सारार्थ (नरक मनुष्य व देवगति में आकर तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले सासादन सम्यग्दृष्टियों के लिए भी उपरोक्त ही नियम कहा गया है)।</span><br /> | ||
गो.जी./जी.प्र./ | गो.जी./जी.प्र./695/1131/13 <span class="SanskritText"> सासादने बादरैकद्वित्रिचतुरिन्द्रियसंज्ञ्यसंज्ञ्यपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता: सप्त।</span> =<span class="HindiText">सासादन में बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवसमास भी होता है। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/11); (गो.क./जी.प्र./551/753/4)।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.8" id="4.8"> एकेन्द्रियों में नहीं | <li><span class="HindiText"><strong name="4.8" id="4.8"> एकेन्द्रियों में नहीं जन्मता</strong><br /> | ||
देखें [[ इन्द्रिय#4.4 | इन्द्रिय - 4.4]] एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्त सबमें एक मिथ्यात्व गुणस्थान बताया है।</span><br /> | |||
ध. | ध.4/1,4,4/165/7 <span class="PrakritText">जे पुण देवसासणा एइंदिएसुप्पज्जंति त्ति भणंति तेसिमभिप्पाएण, बारहचोद्दसभागा देसूणा उववादफोसणं होदि, एदं पि वक्खाणं संत-दव्वसुत्तविरुद्धं ति ण घेत्तव्वं।</span>=<span class="HindiText">जो ऐसा कहते हैं कि सासादनसम्यग्दृष्टि देव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, उनके अभिप्राय से कुछ कम 12/14 उपपादपद का स्पर्शन होता है। किन्तु यह भी व्याख्यान सत्प्ररूपणा और द्रव्यानुयोगद्वार के सूत्रों के विरुद्ध पड़ता है, इसलिए उसे नहीं ग्रहण करना चाहिए।</span><br /> | ||
ध. | ध.7/2,7,262/457/2 <span class="PrakritText">ण, सासणाणमेइंदिएसु उववादाभावादो।</span>=<span class="HindiText">सासादन सम्यग्दृष्टियों की एकेन्द्रियों में उत्पत्ति नहीं है।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.9" id="4.9"> बादर पृथिवी अप् व | <li><span class="HindiText"><strong name="4.9" id="4.9"> बादर पृथिवी अप् व प्रत्येक वनस्पति में जन्मता है अन्य कार्यों में नहीं</strong> </span><br /> | ||
ष.खं. | ष.खं.6/1,9-9/सूत्र121/460 <span class="PrakritText">एइंदिएसु गच्छंता बादरपुढवीकाइयाबादरआउक्काइया-बादरबणप्फइकाइयपत्तेयसरीर पज्जत्तएसु गच्छंत्ति णो अप्पज्जत्तेसु।121।</span> =<span class="HindiText">एकेन्द्रियों में जाने वाले वे जीव (संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच) बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्तकों में ही जाते हैं अपर्याप्तों में नहीं।<br /> | ||
ष.खं. | ष.खं.6/1,9-9/सू.153,176 मनुष्य व देवगति से आने वालों के लिए भी उपरोक्त ही नियम है।</span><br /> | ||
पं.सं./प्रा./ | पं.सं./प्रा./4/59-60 <span class="PrakritText">भूदयहरिएसु दोण्णि पढमाणि।59। तेऊवाऊकाए मिच्छं...।60।</span><br /> | ||
पं.सं./प्रा./टीं/ | पं.सं./प्रा./टीं/4/60/99/5<span class="SanskritText"> तयोरेकं कथम् ? सासादनस्थो जीवो मृत्वा तेजोवायुकायिकयोर्मध्ये न उत्पद्यते, इति हेतो:। </span>=<span class="HindiText">काय मार्गणा की अपेक्षा पृथिवीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में आदि के दो गुणस्थान होते हैं। तेजस्कायिक और वायुकायिक में एक मिथ्यात्व गुणस्थान होता है, क्योंकि सासादन सम्यग्दृष्टि जीव मरकर तेज व वायुकायिकों में उत्पन्न नहीं होते।</span><br /> | ||
गो.क./मू./ | गो.क./मू./115/105 <span class="PrakritText">ण हि सासणो अपुण्णे साहारणसुहुमगे य तेउदुगे।...।115।</span>=<span class="HindiText">लब्धि अपर्याप्त, साधारणशरीरयुक्त, सर्व सूक्ष्म जीव, तथा बातकायिक तेजस्कायिक विषैं सासादन गुणस्थान न पाइए है।</span><br /> | ||
गो.क./जी.प्र./ | गो.क./जी.प्र./309/438/8 <span class="SanskritText">गुणस्थानद्वयं। कुत:। ‘‘ण हि सासणो अपुण्णे...।’’ इति पारिशेषात् पृथ्व्यप्प्रत्येकवनस्पतिषु सासादनस्योत्पत्ते:। </span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–पृथिवी आदिकों में दो गुणस्थान कैसे होते हैं ? <strong>उत्तर</strong>–</span><span class="PrakritText">‘‘ण हि सासण अपुण्णो–’’</span><span class="HindiText"> इत्यादि उपरोक्त गाथा नं.195 में अपर्याप्तकादि स्थानों का निषेध किया है। परिशेष न्याय से उनसे बचे जो पृथिवी, अप् और प्रत्येक वनस्पतिकायिक उनमें सासादन की उत्पत्ति जानी जाती है। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/14); (गो.क./जी.प्र./551/753/4)<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li class="HindiText"><strong name="4.10" id="4.10">बादर पृथिवी आदि कायिकों में भी नहीं | <li class="HindiText"><strong name="4.10" id="4.10">बादर पृथिवी आदि कायिकों में भी नहीं जन्मते</strong><br /> | ||
ध. | ध.2/1,1/607,610,615 सारार्थ (बादरपृथिवीकायिक, बादरवायुकायिक व प्रत्येक वनस्पतिकायिक पर्याप्त व अपर्याप्त दोनों अवस्थाओं में सर्वत्र एक मिथ्यात्व ही गुणस्थान बताया गया है।)<br /> | ||
देखें [[ काय#2.4 | काय - 2.4 ]]पृथिवी आदि सभी स्थावर कायिकों में केवल एक मिथ्यात्वगुणस्थान ही बताया गया है।<br /> | |||
</li> | </li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.11" id="4.11"> एकेन्द्रियों में | <li><span class="HindiText"><strong name="4.11" id="4.11"> एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते बल्कि उनमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.4/1,4,4/162/10<span class="PrakritText"> जदि सासणा एइंदिएसु उपज्जंति, तो तत्थ दो गुणट्ठाणाणि होंति। ण च एवं, संताणिओगद्दारे तत्थ एक्कमिच्छादिटि्ठगुणप्पदुप्पायणादो दव्वाणिओगद्दारे वि तत्थ एगगुणट्ठाणदव्वस्स पमाणपरूवणादो च। को एवं भणदि जधा सासणा एइंदियसुप्पज्जंति त्ति। किंतु ते तत्थ मारणंतियं मेल्लंति त्ति अम्हाणं णिच्छओ। ण पुण ते तत्थ उप्पज्जंति त्ति, छिण्णाउकाले तत्थ सासणगुणाणुवलंभादो। जत्थ सासणाणमुववादो णत्थि, तत्थ वि जदि सासणा मारणंतियं मेल्लंति, तो सत्तमपुढविणेरइया वि सासणगुणेण सह पंचिंदियतिरिक्खेसु मारणंतियं मेल्लंतु, सासणत्तं पडि विसेसाभावादो। ण एस दोसो, भिण्णजादित्तादो। एदे सत्तमपुढविणेरइया पंचिंदियतिरिक्खेसु गब्भोवक्कंतिएसु चेव उप्पजणसहावा, ते पुण देवा पंचिंदिएसु एइंदिएसु य उप्पज्जणसहावा, तदो ण समाणजादीया। ...तम्हा सत्तमपुढविणेरइया सासणगुणेण सह देवा इव मारणंतियं ण करेंति त्ति सिद्धं। ...वाउकाइएसु सासणा मारणंतियं किण्ण करेंति। ण, सयलसासणाणं देवाणं व तेउ-वाउकाइएसु मारणंतियाभावादो, पुढविपरिणाम-विमाण-तल-सिला-थंभ-थूभतल-उब्भसालहंजिया-कुडु-तोरणादीणं तदुप्पत्तिजोगाणं दंसणादो च।</span> <span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–यदि सासादन सम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो उनमें वहां पर दो गुणस्थान प्राप्त होते हैं। किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि सत्प्ररूपणा अनुयोग द्वार में एकेन्द्रियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है, तथा द्रव्यानुयोगद्वार में भी उनमें एक ही गुणस्थान के द्रव्य का प्रमाण प्ररूपण किया गया है ? <strong>उत्तर</strong>–कौन ऐसा कहता है कि सासादन सम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में होते हैं ? किन्तु वे उस एकेन्द्रिय में मारणान्तिक समुद्धात को करते हैं; ऐसा हमारा निश्चय है। न कि वे अर्थात् सासादनसम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं; क्योंकि उनमें आयु के छिन्न होने के समय सासादन गुणस्थान नहीं पाया जाता है। <strong>प्रश्न</strong>–जहां पर सासादनसम्यग्दृष्टियों का उत्पाद नहीं है, वहां पर भी यदि (वे देव) सासादन सम्यग्दृष्टि जीव मारणान्तिक समुद्घात को करते हैं, तो सातवीं पृथिवी के नारकियों को सासादन गुणस्थान के साथ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में मारणान्तिक समुद्घात करना चाहिए, क्योंकि, सासादन गुणस्थान की अपेक्षा दोनों में कोई विशेषता नहीं है ? <strong>उत्तर</strong>–यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, देव और नारकी इन दोनों की भिन्न जाति है, ये सातवीं पृथिवी के नारकी गर्भजन्म वाले पंचेन्द्रियों में ही उपजने के स्वभाव वाले हैं, और वे देव पंचेन्द्रियों में तथा एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने रूप स्वभाववाले हैं, इसलिए दोनों समान जातीय नहीं हैं।...इसलिए सातवीं पृथिवी के नारकी देवों की तरह मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते हैं। <strong>प्रश्न</strong>–सासादन सम्यग्दृष्टि जीव वायुकायिकों में मारणान्तिक समुद्घात क्यों नहीं करते ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि, सकल सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों का देवों के समान तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों में मारणान्तिक समुद्घात का अभाव माना गया है। और पृथिवी के विकाररूप विमान, शय्या, शिला, स्तम्भ और स्तूप, इनके तलभाग तथा खड़ी हुई शालभंजिका (मिट्टी की पुतली) भित्ति और तोरणादिक उनकी उत्पत्ति के योग्य देखे जाते हैं।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4.12" id="4.12"> दोनों दृष्टियों में | <li><span class="HindiText"><strong name="4.12" id="4.12"> दोनों दृष्टियों में समन्वय</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.7/2,7,259/457/2 <span class="PrakritText">सासणाणमेइंदिएसु उववादाभावादो। मारणंतियमेइंदिएसु गदसासणा तत्थ किण्ण उप्पज्जंति। ण मिच्छत्तमागंत्तूण सासणगुणेण उप्पत्तिविरोहादो।</span>=<span class="HindiText">सासादनसम्यग्दृष्टियों की एकेन्द्रियों में उत्पत्ति नहीं है। <strong>प्रश्न</strong>–एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त हुए सासादन सम्यग्दृष्टि जीव उनमें उत्पन्न क्यों नहीं होते ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि, आयु के नष्ट होने पर उक्त जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में आ जाते हैं, अत: मिथ्यात्व में आकर सासादन गुणस्थान के साथ उत्पत्ति का विरोध है।</span><br /> | ||
ध. | ध.6/1,9,9,120/459/8 <span class="PrakritText">जदि एइंदिएसु सासणसम्माइट्ठी उप्पज्जदि तो पुढवीकायादिसु दो गुणट्ठाणाणि होंति त्ति चे ण, छिण्णाउअपढमसमए सासणगुणविणासादो। </span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–यदि एकेन्द्रियों में सासादन सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं तो पृथिवीकायिकादिक जीवों में मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होने चाहिए। <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि, आयु क्षीण होने के प्रथम समय में ही सासादन गुणस्थान का विनाश हो जाता है।</span><br /> | ||
ध./ | ध./1/1,1,36/261/8 <span class="PrakritText">एइंदिएसु सासणगुणट्ठाणं पि सुणिज्जदि तं कधं घडदे। ण एदम्हि सुत्ते तस्स णिसिद्धत्तादो। विरुद्धाणं कथं दोण्हं पि सुत्ताणमिदि ण, दोण्हं एक्कदरस्स सुत्तादो। दोण्हं मज्झे इदं सुत्तमिदं च ण भवदीदि कधं णव्वदि। उवदेसमंतरेण तदवगमाभावा दोण्हं पि संगहो कायव्वो।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–एकेन्द्रिय जीवों में सासादनगुणस्थान भी सुनने में आता है, इसलिए उनके केवल एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान के कथन करने से वह कैसे बन सकेगा। <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि, इस खण्डागम सूत्र में एकेन्द्रियादिकों के सासादन गुणस्थान का निषेध किया है। <strong>प्रश्न</strong>–जबकि दोनों वचन परस्पर विरोधी हैं तो उन्हें सूत्रपना कैसे प्राप्त हो सकता है? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि दोनों वचन सूत्र नहीं हो सकते हैं, किन्तु उन दोनों वचनों में से किसी एक वचन को ही सूत्रपना प्राप्त हो सकता है। <strong>प्रश्न</strong>–दोनों वचनों में यह सूत्ररूप है और यह नहीं, यह कैसे जाना जाये। <strong>उत्तर</strong>–उपदेश के बिना दोनों में से कौन वचन सूत्ररूप है यह नहीं जाना जा सकता है, इसलिए दोनों वचनों का संग्रह करना चाहिए (आचार्यों पर श्रद्धान करके ग्रहण करने के कारण इससे संशय भी उत्पन्न होना सम्भव नहीं। (–देखें [[ श्रद्धान#3 | श्रद्धान - 3]])।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="5" id="5"> जीवों के उपपाद | <li><span class="HindiText"><strong name="5" id="5"> जीवों के उपपाद सम्बन्धी कुछ नियम</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText" name="5.1" id="5.1"><strong> चरम शरीरियों का व रुद्र आदिकों का उपपाद चौथे काल में ही होता है</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText" name="5.1" id="5.1"><strong> चरम शरीरियों का व रुद्र आदिकों का उपपाद चौथे काल में ही होता है</strong></span><br /> | ||
ज.प./ | ज.प./2/185 <span class="PrakritText">रुद्दा य कामदेवा गणहरदेवा व चरमदेहधरा दुस्समसुसमे काले उप्पत्ती ताण बोद्धव्वो।185।</span> =<span class="HindiText">रुद्र, कामदेव, गणधरदेव और जो चरमशरीरी मनुष्य हैं, उनकी उत्पत्ति दुषमसुषमा काल में जानना चाहिए।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="5.2" id="5.2"> | <li><span class="HindiText"><strong name="5.2" id="5.2"> अच्युत कल्प से ऊपर संयमी ही जाते हैं</strong></span><br /> | ||
ध. | ध.6/1,9-9,133/465/6 <span class="PrakritText">उवरिं किण्ण गच्छंति। ण तिरिक्खसम्माइट्ठीसु संजमाभावा। संजमेण विणा ण च उवरिं गमणमत्थि। ण मिच्छाइट्ठीहि तत्थुप्पज्जंतेहि विउचारो, तेसिं पि भावसंजमेण विणा दव्वसंजमस्स संभवा। </span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–संख्यात वर्षायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच मरकर आरण अच्युत कल्प से ऊपर क्यों नहीं जाते ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि, तिर्यंच सम्यग्दृष्टि जीवों में संयम का अभाव पाया जाता है। और संयम के बिना आरण अच्युत कल्प से ऊपर गमन होता नहीं है। इस कथन से आरण अच्युत कल्प से ऊपर (नवग्रैवेयक पर्यन्त) उत्पन्न होने वाले मिथ्यादृष्टि जीवों के साथ व्यभिचार दोष भी नहीं आता, क्योंकि, उन मिथ्यादृष्टियों के भी भावसंयम रहित द्रव्य संयम होना सम्भव है।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="5.3" id="5.3"> लौकान्तिक देवों में | <li><span class="HindiText"><strong name="5.3" id="5.3"> लौकान्तिक देवों में जन्मने योग्य जीव</strong></span><br /> | ||
ति.प./ | ति.प./8/645-651 <span class="PrakritText">भत्तिपसत्ता सज्झयसाधीणा सव्वकालेसुं।645। इह खेत्ते वेरग्गं बहुभेयं भाविदूण बहुकालं।646। थुइणिंदासु समाणो सुदुक्खेसुं सबंधुरिउवग्गे।647। जे णिरवेक्खा देहे णिद्दंदा णिम्ममा णिरारंभा। णिरवज्जा समणवरा...।648। संजोगविप्पयोगे लाहालाहम्मि जीविदे मरणे।649। अणवरदसमं पत्ता संजमसमिदीसुं झाणजोगेसुं। तिव्वतवचरणजुत्ता समणा।650। पंचमहव्वय सहिदा पंचसु समिदीसु चिरम्मि चेट्ठंति। पंचक्खविसयविरदा रिसिणो लोयंतिया होंति।651।</span> =<span class="HindiText">जो भक्ति में प्रशक्त और सर्वकाल स्वाध्याय में स्वाधीन होते हैं।645। बहुत काल तक बहुत प्रकार के वैराग्य को भाकर संयम से युक्त होते हैं।646। जो स्तुति-निन्दा, सुख दु:ख और बन्धु-रिपु में समान होते हैं।647। जो देह के विषय में निरपेक्ष निर्द्वन्द, निर्मम, निरारम्भ और निरवद्य हैं।648। जो संयोग व वियोग में, लाभ व अलाभ में तथा जीवित और मरण में सम्यग्दृष्टि होते हैं।649। जो संयम, समिति, ध्यान, समाधि व तप आदि में सदा सावधान हैं।650। पंच महाव्रत, पंच समिति, पंच इन्द्रिय निरोध के प्रति चिरकाल तक आचरण करने वाले हैं, ऐसे विरक्त ऋषि लौकान्तिक होते हैं।651।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="5.4" id="5.4"> संयतासंयत नियम से स्वर्ग में जाता है</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="5.4" id="5.4"> संयतासंयत नियम से स्वर्ग में जाता है</strong> </span><br /> | ||
म.पु./ | म.पु./26/103 <span class="PrakritGatha">सम्यग्दृष्टि: पुनर्जन्तु: कृत्वाणु व्रतधारणम् । लभते परमान्भोगान् ध्रुवं स्वर्गनिवासिनाम् ।103।</span> =<span class="HindiText">यदि सम्यग्दृष्टि मनुष्य अणुव्रत धारण करता है तो वह निश्चित ही देवों के उत्कृष्ट भोग प्राप्त करता है। और भी (देखें [[ जन्म#6.3 | जन्म - 6.3]])।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="5.5" id="5.5"> निगोद से आकर उसी भव से मोक्ष की | <li><span class="HindiText"><strong name="5.5" id="5.5"> निगोद से आकर उसी भव से मोक्ष की सम्भावना</strong></span><br /> | ||
भ.आ./मू./ | भ.आ./मू./17/66<span class="PrakritText"> दिट्ठा अणादिमिच्छादिट्ठी जम्हा खणेण सिद्धा य। आरणा चरित्तस्स तेण आराहणा सारो।17।</span><br /> | ||
भ.आ./वि./ | भ.आ./वि./17/66/6<span class="SanskritText"> भद्दणादयो राजपुत्रास्तस्मिन्नेव भवे त्रसतामापन्ना: अतएव अनादिमिथ्यादृष्टय: प्रथमजिनपादमूले श्रुतधर्मसारा: समारोपितरत्नत्रया:, ...क्षणेन क्षणग्रहणं कालस्याल्पत्वोपलक्षणार्थम् ...सिद्धाश्च परिप्राप्ताशेषज्ञानादिस्वभावा:....दृष्टा: आराधनासंपादका:, चारित्रस्य।</span> =<span class="HindiText">चारित्र की आराधना करने वाले अनादिमिथ्यादृष्टि जीव भी अल्पकाल में सम्पूर्ण कर्मों का नाश करके मुक्त हो गये ऐसा देखा गया है। अत: जीवों को आराधना का अपूर्व फल मिलता है ऐसा समझना चाहिए।<br /> | ||
अनादिकाल से | अनादिकाल से मिथ्यात्व का तीव्र उदय होने से अनादिकालपर्यन्त जिन्होंने नित्य निगोदपर्याय का अनुभव लिया था ऐसे 923 जीव निगोदपर्याय छोड़कर भरत चक्रवर्ती के भद्रविवर्धनादि नाम धारक पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे इसी भव से त्रस पर्याय को प्राप्त हुए थे। भगवान् आदिनाथ के समवशरण में द्वादशांग वाणी का सार सुनकर रत्नत्रय की आराधना से अल्पकाल में ही मोक्ष प्राप्त किया है। ध.6/1,9-8,11/247/4)।</span><br /> | ||
द्र.सं./टी./ | द्र.सं./टी./35/106/6 <span class="SanskritText">अनुपमद्वितीयमनादिमिथ्यादृशोऽपि भरतपुत्रास्त्रयोविंशत्यधिकनवशतपरिमाणास्ते च नित्यनिगोदवासिन: क्षपितकर्माण: इन्द्रगोपा: संजातास्तेषां च पञ्चीभूतानामुपरि भरतहस्तिना पादो दत्तस्ततस्ते मृत्वापि वर्द्धमानकुमारादयो भरतपुत्रा जातास्ते...तपो गृहीत्वा क्षणस्तोककालेन मोक्षं गता:।</span> =<span class="HindiText">यह वृत्तान्त अनुपम और अद्वितीय है कि नित्यनिगोदवासी अनादि मिथ्यादृष्टि 923 जीव कर्मों की निर्जरा होने से इन्द्रगोप हुए। सो उन सबके ढेर पर भरत के हाथी ने पैर रख दिया। इससे वे मरकर भरत के वर्द्धमानकुमार आदि पुत्र हुए। वे तप ग्रहण करके थोड़े ही काल में मोक्ष चले गये।<br /> | ||
देखो | देखो जन्म/6/11 (सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक व निगोद को आदि लेकर सभी 34 प्रकार के तिर्यंच अनन्तर भव में मनुष्यपर्याय प्राप्त करके मुक्त हो सकते हैं, पर शलाकापुरुष नहीं बन सकते)।</span><br /> | ||
ध./ | ध./10/4,2,4,56/276/4 <span class="PrakritText">सुहुमणिगोदेहिंतो अण्णत्थ अणुप्पज्जिय मणुस्सेसु उप्पण्णस्स संजमासंजम-समत्ताणं चेव गाहणपाओग्गत्तुवलंभादो...ण सुहुमणिगोदहिंतो णिग्गयस्स सव्व लहुएण कालेण, संजमासंजमग्गहणाभावादो।</span>=<span class="HindiText">सूक्ष्म निगोद जीवों में से अन्यत्र न उत्पन्न होकर मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीव के संयमासंयम और सम्यक्त्व के ही ग्रहण की योग्यता पायी जाती है। सूक्ष्म निगोदों में से निकले हुए जीव के सर्वलघु काल द्वारा संयमासंयम का ग्रहण नहीं पाया जाता।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="5.6" id="5.6"> कौनसी कषाय में मरा हुआ जीव | <li><span class="HindiText"><strong name="5.6" id="5.6"> कौनसी कषाय में मरा हुआ जीव कहां जन्मता है</strong></span><br /> | ||
ध./ | ध./4/1,5,250/445/5 <span class="PrakritText">कोहेण मदो णिरयगदीए ण उप्पादे दव्वो, तत्थुप्पण्णजीवाणं पढमं कोधोदयस्सुवलंभा। माणेण मदो मणुसगदीए ण उप्पादे दव्वो, तत्थुप्पणाणं पढमसमए माणोदय णियमोवदेसा। मायाए मदो तिरिक्खगदीए ण उप्पादेदव्वो, तत्थुप्पणाणं पढमसमए मायोदय णियमोवदेसा। लोभेण मदो देवगदीये ण उप्पादेदव्वो, तत्थुप्पणाणं पढमं चेय लोहादओ होदि त्ति आइरियपरंपरागदुवदेसा।</span> =<span class="HindiText">क्रोध कषाय के साथ मरा हुआ जीव नरक गति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि नरकों में उत्पन्न होने वाले जीवों के सर्व प्रथम क्रोध कषाय का उदय पाया जाता है। मानकषाय से मरा हुआ जीव मनुष्य गति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीवों के प्रथम समय में मानकषाय के उदय का उपदेश देखा जाता है। माया कषाय से मरा हुआ जीव तिर्यग्गति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि तिर्यंचों के उत्पन्न होने के प्रथम समय में माया कषाय के उदय का नियम देखा जाता है। लोभकषाय से मरा हुआ जीव देवगति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि उनमें उत्पन्न होने वाले जीवों के सर्वप्रथम लोभ कषाय का उदय होता है; ऐसा आचार्य परम्परागत उपदेश हैं।<br /> | ||
देखो | देखो जन्म/6/11 (सभी प्रकार के सूक्ष्म या बादर तिर्यंच अनन्तर भव से मुक्ति के योग्य हैं।)<br /> | ||
देखो कषाय/ | देखो कषाय/2/9 उपरोक्त कषायों के उदय का नियम कषायप्राभृत सिद्धान्त के अनुसार है, भूतबलि के अनुसार नहीं।<br /> | ||
नोट–(उपरोक्त कथन में विरोध प्रतीत होता है। सर्वत्र ही ‘नहीं’ | नोट–(उपरोक्त कथन में विरोध प्रतीत होता है। सर्वत्र ही ‘नहीं’ शब्द नहीं होना चाहिए ऐसा लगता है। शेष विचारज्ञ स्वयं विचार लें।)<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li class="HindiText"><strong name="5.7" id="5.7"> | <li class="HindiText"><strong name="5.7" id="5.7"> लेश्याओं में जन्म सम्बन्धी सामान्य नियम</strong><br /> | ||
गो.जी./भाषा/ | गो.जी./भाषा/528/326/10 जिस गति सम्बन्धी पूर्वै आयु बान्धा होइ तिस ही गति विषै जो मरण होतै लेश्या होइ ताके अनुसारि उपजै है, जैसे मनुष्य के पूर्वै देवायु का बन्ध भया, बहुरि मरण होते कृष्णादि अशुभ लेश्या होइ तौ भवनत्रिक विषै ही उपजै है, ऐसे ही अन्यत्र जानना।<br /> | ||
देखें [[ सल्लेखना#2.5 | सल्लेखना - 2.5 ]][जिस लेश्या सहित जीव का मरण होता है, उसी लेश्या सहित उसका जन्म होता है।]</li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
Line 400: | Line 400: | ||
<td width="73" valign="top"><span class="HindiText"><br /> | <td width="73" valign="top"><span class="HindiText"><br /> | ||
प.= </span></td> | प.= </span></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">पर्याप्त </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 412: | Line 412: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">सू.=</span></p></td> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">सू.=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">सूक्ष्म </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
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<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">जल=</span></p></td> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">जल=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">अप् </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 460: | Line 460: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">वन.=</span></p></td> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">वन.=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">वनस्पति </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">प्र.=</span></p></td> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">प्र.=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रत्येक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 472: | Line 472: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.=</span></p></td> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">मनुष्य </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 483: | Line 483: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्य=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्यातवर्षायुष्क अर्थात् कर्मभूमिज।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्यातवर्षायुष्क अर्थात् भोगभूमिज। </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 496: | Line 496: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.=</span></p></td> | <td width="73" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.=</span></p></td> | ||
<td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म, ईशान | <td width="198" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म, ईशान स्वर्ग।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.2" id="6.2"> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.2" id="6.2"> गुणस्थान से गति सामान्य</strong> <br /> | ||
अर्थात्–किस गुणस्थान से मरकर किस गति में उत्पन्न हो सकता है और किसमें नहीं।</span></li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="732"> | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="732"> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="84" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="84" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>गुणस्थान </strong> </span></p></td> | ||
<td width="78" colspan="2" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">*नरकगति </span></p></td> | <td width="78" colspan="2" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">*नरकगति </span></p></td> | ||
<td width="210" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>तिर्यंच गति </strong> </span></p></td> | <td width="210" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>तिर्यंच गति </strong> </span></p></td> | ||
<td width="126" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="126" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>मनुष्यगति </strong> </span></p></td> | ||
<td width="120" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देव गति </strong> </span></p></td> | <td width="120" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देव गति </strong> </span></p></td> | ||
<td width="114" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देखो </strong> </span></p></td> | <td width="114" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देखो </strong> </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>संख्या </strong></span></p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>असंख्या </strong></span></p></td> | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>संख्या </strong></span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>असंख्या </strong></span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>सामान्य </strong></span></p></td> | ||
<td width="58" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>विशेष</strong></span></p></td> | <td width="58" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>विशेष</strong></span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="84" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="84" valign="top"><p><span class="HindiText">मिथ्या </span></p></td> | ||
<td width="78" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="78" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">हां </span></p></td> | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">हां </span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="58" valign="top"><p> </p></td> | <td width="58" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">गो.जी./जी.प्र. | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">गो.जी./जी.प्र. 127/338</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 539: | Line 539: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">दृष्टि. | <td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">दृष्टि.1</span></p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="76" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">एके.,पृ.,अप.,प्र.वन, वि.सं.असं.पंचे.</span></p></td> | <td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">एके.,पृ.,अप.,प्र.वन, वि.सं.असं.पंचे.</span></p></td> | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="58" rowspan="7" valign="top"><p><span class="HindiText">विशेष देखो आगे | <td width="58" rowspan="7" valign="top"><p><span class="HindiText">विशेष देखो आगे जन्म 6/3 </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">जन्म/4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">दृष्टि. | <td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">दृष्टि.2</span></p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="76" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पंचे.</span></p></td> | <td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पंचे.</span></p></td> | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">जन्म/4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 567: | Line 567: | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p> </p></td> | <td width="62" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">मरण/ | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">मरण/3</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">अविरत </span></p></td> | <td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">अविरत </span></p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रथम नरक </span></p></td> | <td width="76" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रथम नरक </span></p></td> | ||
<td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="72" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="138" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">जन्म/3</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 586: | Line 586: | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">जन्म/5</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 596: | Line 596: | ||
<td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="60" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="62" valign="top"><p><span class="HindiText">हां</span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p> </p></td> | <td width="114" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="86" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">7-12</span></p></td> | ||
<td width="76" valign="top"><p> </p></td> | <td width="76" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="72" valign="top"><p> </p></td> | <td width="72" valign="top"><p> </p></td> | ||
Line 612: | Line 612: | ||
<ul> | <ul> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li><span class="HindiText"><strong> नरकगति की विशेष प्ररूपणा के लिए देखो आगे ( | <li><span class="HindiText"><strong> नरकगति की विशेष प्ररूपणा के लिए देखो आगे (जन्म/6/4)</strong> </span></li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.3" id="6.3"> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.3" id="6.3"> मनुष्य व तिर्यंचगति से चयकर देवगति में उत्पत्ति की विशेष प्ररूपणा</strong><br /> | ||
अर्थात्–किस भूमिका वाला मनुष्य या तिर्यंच किस प्रकार के देवों में उत्पन्न होता है।</span></li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</ul> | </ul> | ||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="720"> | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="720"> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">गुणस्थान </span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">किस प्रकार का जीव </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">किस प्रकार का जीव </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">मू.आ./ | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">मू.आ./1169-1177 </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">ति.प./ | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">ति.प./8/556-564 </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">रा.वा./ | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">रा.वा./4/21/10/ 537/5 </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">ह.पु./ | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">ह.पु./6/103-107 </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">त्रि.सा./ | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">त्रि.सा./545-547 </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">संज्ञी- | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">संज्ञी-सामान्य </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">भ., | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">भ.,व्यन्तर</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक ( | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक (3/200) </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 649: | Line 649: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्या </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 659: | Line 659: | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">असंज्ञी </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">असंज्ञी </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">भ., | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">भ.,व्यन्तर </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भ., | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भ.,व्यन्तर </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 667: | Line 667: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">निर्ग्रन्थ </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">उपरि.ग्रैवे.</span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">उपरि.ग्रैवे.</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">उपरि.ग्रैवे. </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">उपरि.ग्रैवे. </span></p></td> | ||
Line 678: | Line 678: | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">दूषित चरित्री </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">दूषित चरित्री </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">अल्पऋद्धिक </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 685: | Line 685: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">क्रूरउन्मार्गी </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">अल्पऋद्धिक </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 696: | Line 696: | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">सनिदान</span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">सनिदान</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">अल्पऋद्धिक </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 703: | Line 703: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मन्दकषायी</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">अल्पऋद्धिक </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 714: | Line 714: | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मधुरकषायी</span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मधुरकषायी</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">अल्पऋद्धिक </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
Line 730: | Line 730: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">परिवाजक | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">परिवाजक संन्यासी</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">ब्रह्म तक </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">ब्रह्म तक </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से ब्रह्म तक </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से ब्रह्म तक </span></p></td> | ||
Line 741: | Line 741: | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">आजीवक </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">आजीवक </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से अच्युत </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 752: | Line 752: | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">ज्योतिषी तक </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">ति. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">ति.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"> | <td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p> </p></td> | <td width="144" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">सहस्रार तक</span></p></td> | <td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">सहस्रार तक</span></p></td> | ||
Line 764: | Line 764: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">ति. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">ति.असंख्य </span></p></td> | ||
<td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"> | <td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | ||
<td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | <td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | ||
Line 771: | Line 771: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.संख्य </span></p></td> | ||
<td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"> | <td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | ||
<td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">ग्रैवेयक तक</span></p></td> | <td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">ग्रैवेयक तक</span></p></td> | ||
Line 778: | Line 778: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.असंख्य </span></p></td> | ||
<td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"> | <td width="216" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | ||
<td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | <td width="222" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">भवनत्रिक</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पं.ति. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पं.ति. संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p> </p></td> | <td width="120" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से अच्युत</span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य ति</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">देव | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">देव जन्म/6/6 </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म-ईशान </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म-ईशान </span></p></td> | ||
Line 802: | Line 802: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु. संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">देव | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">देव जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">― </span></p></td> | ||
Line 811: | Line 811: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु. | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.असंख्य</span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">देव | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">देव जन्म/6/6</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> ― </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">― </span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">― </span></p></td> | ||
Line 818: | Line 818: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">5</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">पुरुष (श्रावक) </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">पुरुष (श्रावक) </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत तक </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से अच्युत </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से अच्युत </span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से अच्युत </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत कल्प </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p> </p></td> | <td width="48" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">स्त्री </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत तक</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत तक</span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
Line 836: | Line 836: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">6</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">सामान्य </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि.</span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि.</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. </span></p></td> | ||
Line 857: | Line 857: | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">चतुर्दश पूर्वधर </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">चतुर्दश पूर्वधर </span></p></td> | ||
<td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="96" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">लान्तव से सर्वार्थ </span></p></td> | ||
<td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="144" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="108" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
Line 863: | Line 863: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="48" valign="top"><p><span class="HindiText">7</span></p></td> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">पुलाकवकुश आदि </span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">पुलाकवकुश आदि </span></p></td> | ||
<td width="582" colspan="5" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"> देखें | <td width="582" colspan="5" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">देखें [[ साधु#5 | साधु - 5]]</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol start="4"> | <ol start="4"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.4" id="6.4"> नरकगति में | <li><span class="HindiText"><strong name="6.4" id="6.4"> नरकगति में उत्पत्ति की विशेष प्ररूपणा</strong> <br /> | ||
(मू.आ./ | (मू.आ./1153-1154); (ति.प./2/284-286); (रा.वा./3/6/7/168/15); (ह.पु./4/373-377); (त्रि.सा./205)।<br /> | ||
अर्थात्–किस प्रकार का मनुष्य या तिर्यंच किस नरक में उपजै और उत्कृष्ट कितनी बार उपजै।</span></li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 879: | Line 879: | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">कौन जीव </span></p></td> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">कौन जीव </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">नरक </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">नरक </span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट बार </span></p></td> | ||
<td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">कौन जीव </span></p></td> | <td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">कौन जीव </span></p></td> | ||
<td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText">नरक </span></p></td> | <td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText">नरक </span></p></td> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट बार </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">असं.पं.ति.</span></p></td> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">असं.पं.ति.</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">8</span></p></td> | ||
<td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">भुजंगादि </span></p></td> | <td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">भुजंगादि </span></p></td> | ||
<td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText">1-4</span></p></td> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">5</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">सरीसृप. </span></p></td> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">सरीसृप. </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">1-2</span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">7</span></p></td> | ||
<td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">सिंहादि </span></p></td> | <td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">सिंहादि </span></p></td> | ||
<td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText">1-5</span></p></td> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 904: | Line 904: | ||
<td width="120" valign="top"><p> </p></td> | <td width="120" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p> </p></td> | <td width="114" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">स्त्री</span></p></td> | ||
<td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">पक्षी ( | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">पक्षी (भेरुण्ड आदि) </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">1-3</span></p></td> | ||
<td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="114" valign="top"><p><span class="HindiText">6</span></p></td> | ||
<td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="112" valign="top"><p><span class="HindiText">मनुष्य व मत्स्य </span></p></td> | ||
<td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="122" valign="top"><p><span class="HindiText">1-7</span></p></td> | ||
<td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="102" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.5" id="6.5"> गतियों में प्रवेश व निर्गमन | <li><span class="HindiText"><strong name="6.5" id="6.5"> गतियों में प्रवेश व निर्गमन सम्बन्धी गुणस्थान</strong> <br /> | ||
अर्थात् –किस गति में कौन | अर्थात् –किस गति में कौन गुणस्थान सहित प्रवेश सम्भव है, तथा किस विवक्षित गुणस्थान सहित प्रवेश करने वाला जीव वहां से किस गुणस्थान सहित निकल सकता है। (ष.खं.6/1,9-9/सू.44-75/437-446); (रा.वा./3/6/7/168/18)।</span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 936: | Line 936: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">48</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रथम </span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रथम </span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">44-46</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">47</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">49</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">49-51</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">52</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">7</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">49,52</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 968: | Line 968: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">60</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">53-55</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">60</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.प.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.प.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">56-57</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">60</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.अप.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.अप.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">57</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">61</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.योनिमति </span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.योनिमति </span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">61-64</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.योनिमति अप.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.ति.योनिमति अप.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">पृ. | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">पृ.444</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="576" colspan="4" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="576" colspan="4" valign="top"><p><span class="HindiText">मनुष्य गति― </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">66</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">मनुष्य सा.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">66-68</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.प.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.प.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">69-71</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.अप.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु.अप.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">72-74</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">61</span></p></td> | ||
<td width="150" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">मनुष्यणी </span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">61-63</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">64</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 1,044: | Line 1,044: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">61</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">61-63</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">देव | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">देव देवियां सौधर्म की देवियां</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">64</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">66</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से ग्रैवेयक</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से ग्रैवेयक</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">66-68</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">69-71</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">72-74</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">75</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">अनुदिश से सर्वार्थ.</span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">अनुदिश से सर्वार्थ.</span></p></td> | ||
<td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="126" valign="top"><p><span class="HindiText">75</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
Line 1,089: | Line 1,089: | ||
<ol start="6"> | <ol start="6"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.6" id="6.6"> गतिमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong> <br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.6" id="6.6"> गतिमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong> <br /> | ||
अर्थात्–कौन जीव किस गति से किस गुणस्थान सहित निकलकर किस गति में उत्पन्न होता है। (ष.खं.6/1,9-9/सूत्र76-202/437-484);</span></li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 1,097: | Line 1,097: | ||
<strong>सूत्र नं.</strong> </span></td> | <strong>सूत्र नं.</strong> </span></td> | ||
<td width="131" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>निर्गमन गति विशेष </strong> </span></p></td> | <td width="131" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>निर्गमन गति विशेष </strong> </span></p></td> | ||
<td width="68" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="68" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong> </span></p></td> | ||
<td width="455" colspan="5" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"><strong> | <td width="455" colspan="5" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText"><strong>प्राप्तव्य गति विशेष</strong> </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 1,104: | Line 1,104: | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>नरक गति </strong></span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>नरक गति </strong></span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>तिर्यंच गति </strong></span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>तिर्यंच गति </strong></span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>मनुष्य गति </strong></span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देव गति</strong></span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देव गति</strong></span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="653" colspan="7" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>नरकगति―</strong>(रा.वा./ | <td width="653" colspan="7" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>नरकगति―</strong>(रा.वा./3/6/7/168/23); (ह.पु./4/378); (त्रि.सा./203)</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">92</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">76-85</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.ग.पं. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.ग.पं.संख्या. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्या. </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,124: | Line 1,124: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p> </p></td> | <td width="131" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">76-85</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.ग.पं. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.ग.पं.संख्या. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्या. </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,134: | Line 1,134: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p> </p></td> | <td width="131" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="272" colspan="3" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">मरण भाव ( देखें | <td width="272" colspan="3" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">मरण भाव (देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]])</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्या. </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">×</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,142: | Line 1,142: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p> </p></td> | <td width="131" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">88-91</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p> </p></td> | <td width="146" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्या.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">93</span></p></td> | ||
<td width="131" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">7</span></p></td> | ||
<td width="68" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">94-99</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.ग.पं. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.ग.पं.संख्या.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="455" colspan="5" valign="top"><p><span class="HindiText">(मू.आ./ | <td width="455" colspan="5" valign="top"><p><span class="HindiText">(मू.आ./1156)–श्वापद, भुजंग, व्याघ्र, सिंह, सूकर, गीध आदि होते हैं, तथा–(ह.पु./4/378)–पुन: तीसरे भव में नरक जाता है।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 1,167: | Line 1,167: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">101</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पं.प. | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पं.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">102-106</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | ||
Line 1,177: | Line 1,177: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">107</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असं.पं.प.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असं.पं.प.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">108-111</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रथ.</span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">प्रथ.</span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से व्यन्तर </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">112</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.असं.प.व अप.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.सं.असं.प.व अप.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">113-114</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">112</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">पृ.जल वन निगोद बा.सू.प.व अप.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">पृ.जल वन निगोद बा.सू.प.व अप.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">113-114</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">112</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">वन.बा.प्र.प.व अप.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">वन.बा.प्र.प.व अप.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">113-114</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">112</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">विकलत्रय </span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">विकलत्रय </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">113-114</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">115</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">तेज,वायु,बा.सू.प.व अप.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">तेज,वायु,बा.सू.प.व अप.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">116-117</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">118</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पं.प. | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सं.पं.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">119-129</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p> </p></td> | <td width="61" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">एके (पृ.जल,वन.प्र.बा.सू.) पं.सं.ग.प. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">एके (पृ.जल,वन.प्र.बा.सू.) पं.सं.ग.प.संख्य. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य. असंख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से सहस्रार </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से सहस्रार </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">130</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">137</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p> </p></td> | <td width="61" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | ||
<td width="183" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">( देखें | <td width="183" colspan="2" valign="top"><p align="center"><span class="HindiText">(देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]])</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">137</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">137</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p> </p></td> | <td width="61" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव</span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव</span></p></td> | ||
Line 1,266: | Line 1,266: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">131</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4-5</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">132-133</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ- | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ-अच्युत</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">134</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्या0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">135-136</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
Line 1,286: | Line 1,286: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">134</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्या0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">135-136</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
Line 1,296: | Line 1,296: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">138</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्या0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">139-140</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ0द्वि0 </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>मनुष्यगति― </strong></span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p> </p></td> | <td width="68" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
Line 1,316: | Line 1,316: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">141</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्या0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">142-146</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | ||
Line 1,327: | Line 1,327: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्या0प0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">142-146</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्व </span></p></td> | ||
Line 1,336: | Line 1,336: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">147</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्य0अप0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">151-160</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p> </p></td> | <td width="61" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.प्र.प.) पं.स.ग.प. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.प्र.प.) पं.स.ग.प. संख्य.व असंख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य. असंख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से नव ग्रैवेयक तक </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">भवन से नव ग्रैवेयक तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">161</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">162</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | ||
<td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">( देखें | <td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">(देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]])― </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">163</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">संख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4,6</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">164-165</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
Line 1,365: | Line 1,365: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">166</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">167-168</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
Line 1,375: | Line 1,375: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">166</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">167-168</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
Line 1,385: | Line 1,385: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">169</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">169</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | ||
<td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">( देखें | <td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">(देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]])― <br /> | ||
</span></p></td> | </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">170</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">असंख्य0 </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">172-172</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
Line 1,408: | Line 1,408: | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">कुमानुष </span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">कुमानुष </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="455" colspan="5" valign="top"><p><span class="HindiText">ति.प./ | <td width="455" colspan="5" valign="top"><p><span class="HindiText">ति.प./4/2514-25-15–उपरोक्त असंख्यातवत्– </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 1,415: | Line 1,415: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">190</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p> </p></td> | <td width="68" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">178-183</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">173</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">178-183</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">173</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">178-183</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">184</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">184</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव </span></p></td> | ||
<td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">( देखें | <td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">(देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]]) </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">185</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सौ.द्वि.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">186-189</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सनत्कुमार से सहस्रार </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.स.ग.प. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.स.ग.प. संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सनत्कुमार से सहस्रार </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.स.ग.प. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.स.ग.प. संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सनत्कुमार से सहस्रार </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p> </p></td> | <td width="61" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव</span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव</span></p></td> | ||
<td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">( देखें | <td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">(देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]])– </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">सनत्कुमार से सहस्रार </span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">191</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.स.ग.प. | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">पं.स.ग.प. संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">192</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">193-196</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,515: | Line 1,515: | ||
<td width="85" valign="top"><p> </p></td> | <td width="85" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">2</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">193-196</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">197</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">3</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">197</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">―</span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव</span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">मरणाभाव</span></p></td> | ||
<td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">( देखें | <td width="183" colspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">(देखें [[ मरण#3 | मरण - 3]])– </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">192</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से नव ग्रैवेयक</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">193-196</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="85" valign="top"><p><span class="HindiText">198</span></p></td> | ||
<td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">अनुदिश से सर्वार्थ सि.</span></p></td> | <td width="131" valign="top"><p><span class="HindiText">अनुदिश से सर्वार्थ सि.</span></p></td> | ||
<td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="68" valign="top"><p><span class="HindiText">4</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">199-202</span></p></td> | ||
<td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="61" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="146" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
<td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प. | <td width="101" valign="top"><p><span class="HindiText">ग.प.संख्य.</span></p></td> | ||
<td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | <td width="81" valign="top"><p><span class="HindiText">× </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,554: | Line 1,554: | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol start="7"> | <ol start="7"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.7" id="6.7"> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.7" id="6.7"> लेश्या की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong><br /> | ||
अर्थात्–किस लेश्या से मरकर किस गति में उत्पन्न हो। (रा.वा./4/22/10/200/6) (गो.जी./मू./519-528/920-926)</span></li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="708"> | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="708"> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>निर्गमन | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>निर्गमन लेश्यांश </strong> </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देवगति </strong> </span></p></td> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देवगति </strong> </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>निर्गमन | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>निर्गमन लेश्यांश </strong> </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>नरकगति </strong> </span></p></td> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>नरकगति </strong> </span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देव व तिर्यंच </strong> </span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>देव व तिर्यंच </strong> </span></p></td> | ||
Line 1,568: | Line 1,568: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>शुक्ल लेश्या– </strong></span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>कृष्णलेश्या– </strong></span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्वार्थ सिद्धि </span></p></td> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सर्वार्थ सिद्धि </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">7वीं पृ.के अप्रतिष्ठान इन्द्रक में </span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मध्यम </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से अपराजित </span></p></td> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">आनत से अपराजित </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> </span></p></td> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> </span></p></td> | ||
Line 1,588: | Line 1,588: | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">जघन्य</span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">शुक्र से सहस्रार तक</span></p></td> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">शुक्र से सहस्रार तक</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">मध्यम</span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">छठी पृ.के प्रथम पटल से | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">छठी पृ.के प्रथम पटल से 7वीं के श्रेणी बद्ध तक </span></p></td> | ||
<td width="150" rowspan="5" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक | <td width="150" rowspan="5" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक यथायोग्य पांचों स्थावर </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>पद्मलेश्या—</strong></span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p> </p></td> | <td width="240" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">जघन्य </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">5वीं पृ.के चरम पटल तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">मध्यम </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">ब्रह्म से शतार तक </span></p></td> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">ब्रह्म से शतार तक </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">नीललेश्या– </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">जघन्य </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सानत्कुमार माहेन्द्र तक </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">5वीं पृ.के द्विचरम पटल तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>पीतलेश्या– </strong></span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">मध्यम </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">5वीं पृ.के तीसरे पटल से 3री पृ. के 2रे पटल तक</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">यथायोग्य पांचों स्थावर </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सानत्कुमार माहेन्द्र के चरम पटल तक </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">जघन्य </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">3री पृ. के 1ले पटल तक</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">मध्यम </span></p></td> | ||
<td width="162" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="162" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">सानत्कुमार माहेन्द्र के द्विचरम पटल तक तथा भवनत्रिक व यथायोग्य पांचों स्थावरों में</span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p> </p></td> | <td width="66" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>कापोतलेश्या– </strong></span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">उत्कृष्ट </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">3री पृ.के चरम पटल में </span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p> </p></td> | <td width="150" valign="top"><p> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="90" valign="top"><p><span class="HindiText">जघन्य </span></p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्मद्विक के | <td width="162" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्मद्विक के 1ले पटल तक </span></p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">मध्यम</span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">3री पृ.के द्विचरम पटल से 1ली पृ.के 3रे पटल तक </span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText">भवनत्रिक यथायोग्य पांचों स्थावर </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="90" valign="top"><p> </p></td> | <td width="90" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="162" valign="top"><p> </p></td> | <td width="162" valign="top"><p> </p></td> | ||
<td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="66" valign="top"><p><span class="HindiText">जघन्य </span></p></td> | ||
<td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="240" valign="top"><p><span class="HindiText">1ली पृ.के 1ले पटल तक</span></p></td> | ||
<td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> </span></p></td> | <td width="150" valign="top"><p><span class="HindiText"> </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,662: | Line 1,662: | ||
<ol start="8"> | <ol start="8"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.8" id="6.8"> संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.8" id="6.8"> संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong><br /> | ||
अर्थात्–किस संहनन से मरकर किस गति तक उत्पन्न होना सम्भव है। (गो.क./मू./29-31/24) (गो.क./जी.प्र./549/725/14)<br /> | |||
संकेत–</span> | संकेत–</span> | ||
<ol> | <ol> | ||
Line 1,680: | Line 1,680: | ||
<td width="128" valign="top"><span class="HindiText"><br /> | <td width="128" valign="top"><span class="HindiText"><br /> | ||
<strong>संहनन </strong> </span></td> | <strong>संहनन </strong> </span></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>प्राप्तव्य स्वर्ग </strong> </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>संहनन </strong> </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>संहनन </strong> </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>विशेष </strong> </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>विशेष </strong> </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"><strong>प्राप्तव्य नरक पृ.</strong> </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">पंच अनुत्तर तक </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">पंच अनुत्तर तक </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु व | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">मनु व मत्स्य </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">7वीं पृ.तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">नव अनुदिश तक </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">नव अनुदिश तक </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-4</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">स्त्री+उपरोक्त </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">6ठी पृ. तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,3</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">नव ग्रैवेयक तक </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">नव ग्रैवेयक तक </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-5</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">सिंह+उपरोक्त सर्व </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">सिंह+उपरोक्त सर्व </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">5वीं पृ.तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1,2,3,4</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">अच्युत तक </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-5</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">भुजंग+उपरोक्त सर्व </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">भुजंग+उपरोक्त सर्व </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">4थीं पृ.तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-5</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">सहस्रार तक </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">पक्षी+उपरोक्त सभी </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">पक्षी+उपरोक्त सभी </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">3री पृ.तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="128" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से | <td width="128" rowspan="2" valign="top"><p><span class="HindiText">सौधर्म से कापिष्ठ </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">सरीसृप+उपरोक्त सभी </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">सरीसृप+उपरोक्त सभी </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">2री पृ.तक </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1-6</span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">असंज्ञी+उपरोक्त सभी </span></p></td> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">असंज्ञी+उपरोक्त सभी </span></p></td> | ||
<td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="128" valign="top"><p><span class="HindiText">1ली पृ.तक</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
Line 1,736: | Line 1,736: | ||
<ol start="9"> | <ol start="9"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.9" id="6.9"> शलाका पुरुषों की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong> <br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.9" id="6.9"> शलाका पुरुषों की अपेक्षा गति प्राप्ति</strong> <br /> | ||
अर्थात्–शलाका पुरुष कौन गति नियम से प्राप्त करते हैं–(ति.प./4/गा.नं.)।</span></li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText">1423―प्रतिनारायण </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति। </span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति। </span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText">1436―नारायण </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति।</span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText">1436―बलदेव</span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">= | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=स्वर्ग व मोक्ष।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText">1442―रुद्र </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति।</span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText"> | <td width="157" valign="top"><p><span class="HindiText">1470―नारद </span></p></td> | ||
<td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति।</span></p></td> | <td width="120" valign="top"><p><span class="HindiText">=नरकगति।</span></p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
Line 1,764: | Line 1,764: | ||
<ol start="10"> | <ol start="10"> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="6.10" id="6.10"> नरकगति में पुन: पुनर्भव धारण की सीमा</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="6.10" id="6.10"> नरकगति में पुन: पुनर्भव धारण की सीमा</strong></span><br /> | ||
ध./ | ध./7/2,2,27/127/11 <span class="PrakritText">देव णेरइयाणं भोगभूमितिरिक्खमणुस्साणं च मुदाणं पुणो तत्थे वाणंतरमुप्पत्तीए अभावादो।</span> =<span class="HindiText">देव, नारकी, भोगभूमिज तिर्यंच और भोगभूमिज मनुष्य, इनके मरने पर पुन: उसी पर्याय में उत्पत्ति नहीं पायी जाती, क्योंकि, इसका अत्यन्त अभाव है। नोट–परन्तु बीच में एक-एक अन्य भव धारण करके पुन: उसी पर्याय में उत्पन्न होना सम्भव है। वह उत्कृष्ट कितनी बार होना सम्भव है, वही बात निम्न तालिका में बतायी जाती है।<br /> | ||
<strong>प्रमाण</strong>–ति.प./ | <strong>प्रमाण</strong>–ति.प./2/286-287; रा.वा./3/6/7/168/12 वें (इसमें केवल अन्तर निरन्तर भव नहीं); ह.पु./4/371,375-377; त्रि.सा./205-206―</span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 1,773: | Line 1,773: | ||
<strong>नरक </strong> </td> | <strong>नरक </strong> </td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"><strong>कितनी बार </strong> </p></td> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText"><strong>कितनी बार </strong> </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"><strong> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText"><strong>उत्कृष्ट अन्तर </strong> </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">प्रथम पृ.</p></td> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">प्रथम पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">8 बार </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">24 मुहूर्त </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">द्वि.पृ.</p></td> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">द्वि.पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">7 बार </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">7 दिन </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">तृ.पृ.</p></td> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">तृ.पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">6 बार </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">1 पक्ष </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">चतु.पृ.</p></td> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">चतु.पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">5 बार </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">1 मास </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">पंचम पृ.</p></td> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">पंचम पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">4 बार </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">2 मास </p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">षष्ठ पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">3 बार </p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">4 मास</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">सप्तम पृ.</p></td> | <td width="151" valign="top"><p class="HindiText">सप्तम पृ.</p></td> | ||
<td width="138" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="138" valign="top"><p class="HindiText">2 बार</p></td> | ||
<td width="132" valign="top"><p class="HindiText"> | <td width="132" valign="top"><p class="HindiText">6 मास</p></td> | ||
</tr> | </tr> | ||
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Revision as of 21:41, 5 July 2020
जीवों का जन्म तीन प्रकार माना गया है, गर्भज, संमूर्च्छन व उपपादज। तहां गर्भज भी तीन प्रकार का है जरायुज, अण्डज, पोतज। तहां मनुष्य तिर्यंचों का जन्म गर्भज व संमूर्च्छन दो प्रकार से होता है और देव नारकियों का केवल उपपादज। माता के गर्भ से उत्पन्न होना गर्भज है, और जेर सहित या अण्डे में उत्पन्न होते हैं वे जरायुज व अण्डज है, तथा जो उत्पन्न होते ही दौड़ने लगते हैं वे पोतज हैं। इधर-उधर से कुछ परमाणुओं के मिश्रण से जो स्वत: उत्पन्न हो जाते हैं जैसे मेंढक, वे संमूर्च्छन हैं। देव नारकी अपने उत्पत्ति स्थान में इस प्रकार उत्पन्न होते हैं, मानो सोता हुआ व्यक्ति जाग गया हो, वह उपपादज जन्म है।
सम्यग्दर्शन आदि गुण विशेषों का अथवा नारक, तिर्यंचादि पर्याय विशेषों में व्यक्ति का जन्म के साथ क्या सम्बन्ध है वह भी इस अधिकार में बताया गया है।
- जन्म सामान्य निर्देश
- जन्म का लक्षण।
- योनि व कुल तथा जन्म व योनि में अन्तर–देखें योनि , कुल।
- जन्म से पहले जीव-प्रदेशों के संकोच का नियम।
- विग्रह गति में ही जीव का जन्म नहीं मान सकते।
- आय के अनुसार ही व्यय होता है–देखें मार्गणा ।
- गतिबन्ध जन्म का कारण नहीं आयु है।देखें आयु - 2।
- चारों गतियों में जन्म लेने सम्बन्धी परिणाम।–देखें आयु - 3।
- जन्म के पश्चात् बालक के जातकर्म आदि–देखें संस्कार - 2।
- जन्म का लक्षण।
- गर्भज आदि जन्म विशेषों का निर्देश
- जन्म के भेद।
- बाये गये बीज में बीजवाला ही जीव या अन्य कोई भी जीव उत्पन्न हो सकता है।
- उपपादज व गर्भज जन्मों का स्वामित्व।
- सम्मूर्च्छिम जन्म–देखें सम्मूर्च्छन ।
- उपपादज जन्म की विशेषताएं।
- वीर्य प्रवेश के सात दिन पश्चात् तक जीव गर्भ में आ सकता है।
- इसलिए कदाचित् अपने वीर्य से स्वयं अपना भी पुत्र होना सम्भव है।
- गर्भवास का काल प्रमाण।
- रज व वीर्य से शरीर निर्माण का क्रम।
- जन्म के भेद।
- सम्यग्दर्शन में जीव के जन्म सम्बन्धी नियम।
- अबद्धायुष्क् सम्यग्दृष्टि उच्चकुल व गतियों आदि में ही जन्मता है, नीच में नहीं।
- बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टियों की चारों गतियों में उत्पत्ति सम्भव है।
- परन्तु बद्धायुष्क उन-उन गतियों के उत्तम स्थानों में ही उत्पन्न होता है नीचों में नहीं।
- बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि चारों गतियों के उत्तम स्थानों में उत्पन्न होता है।
- नरकादि गतियों में जन्म सम्बन्धी शंकाएं–देखें वह वह नाम ।
- कृतकृत्यवेदक सहित जीवों के उत्पत्ति क्रम सम्बन्धी नियम।
- उपशमसम्यक्त्व सहित देवगति में ही उत्पन्न होने का नियम।–देखें मरण - 3।
- सम्यग्दृष्टि मरने पर पुरुषवेदी ही होते हैं।
- अबद्धायुष्क् सम्यग्दृष्टि उच्चकुल व गतियों आदि में ही जन्मता है, नीच में नहीं।
- सासादन गुणस्थान में जीवों के जन्म सम्बन्धी मतभेद
- नरक में जन्म का सर्वथा निषेध है।
- अन्य तीन गतियों में उत्पन्न होने योग्य काल विशेष
- पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में गर्भज संज्ञी पर्याप्त में ही जन्मता है, अन्य में नहीं।
- असंज्ञियों में भी जन्मता है।
- विकलेन्द्रियों में नहीं जन्मता।
- विकलेन्द्रियों में भी जन्मता है।
- एकेन्द्रियों में जन्मता है।
- एकेन्द्रियों में नहीं जन्मता।
- बादर पृथिवी, अप् व प्रत्येक वनस्पति में जन्मता है अन्य कायों में नहीं।
- बादर पृथिवी आदि कायिकों में भी नहीं जन्मता।
- द्वितीयोपशम से प्राप्त सासादन वाला नियम से देवों में उत्पन्न होता है–देखें मरण - 3।
- एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते बल्कि उनमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं।
- दोनों दृष्टियों का समन्वय।
- नरक में जन्म का सर्वथा निषेध है।
- जीवों के उत्पाद सम्बन्ध कुछ नियम
- 3 तथा 5-14 गुणस्थानों में उपपाद का अभाव–देखें क्षेत्र - 3।
- मार्गणास्थानों में जीव के उपपाद सम्बन्धी नियम व प्ररूपणाएं–देखें क्षेत्र - 3,4।
- चरम शरीरियों व रुद्रादिकों का जन्म चौथे काल में होता है।
- अच्युतकल्प से ऊपर संयमी ही जाते हैं।
- लौकान्तिक देवों में जन्मने योग्य जीव।
- संयतासंयत नियम से स्वर्ग में जाता है।
- निगोद से आकर उसी भव से मोक्ष की सम्भावना।
- कौनसी कषाय में मरा हुआ कहां जन्मता है।
- लेश्याओं में जन्म सम्बन्धी सामान्य नियम।
- महामत्स्य से मरकर जन्म धारने सम्बन्धी मतभेद–देखें मरण - 5.6।
- नरक व देवगति में जीवों के उपपाद सम्बन्धी अन्तर प्ररूपणाएं–देखें अन्तर - 4।
- सत्कर्मिक जीवों के उपपाद सम्बन्धी–देखें वह वह कर्म ।
- 3 तथा 5-14 गुणस्थानों में उपपाद का अभाव–देखें क्षेत्र - 3।
- गति अगति चूलिका
- तालिकाओं में प्रयुक्त संकेत।
- किस गुणस्थान से मरकर किस गति में उपजे।
- मनुष्य व तिर्यंच गति से चयकर देवगति में उत्पत्ति सम्बन्धी।
- नरकगति में उत्पत्ति की विशेष प्ररूपणा।
- गतियों में प्रवेश व निर्गमन सम्बन्धी गुणस्थान।
- गतिमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति।
- इन्द्रिय काय व योग की अपेक्षा गति प्राप्ति।–देखें जन्म - 6.6 में तिर्यंचगति।
- वेदमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें जन्म - 6.5।
- कषाय मार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें जन्म - 5.6।
- ज्ञान व संयम मार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें जन्म - 6.3।
- लेश्या की अपेक्षा गति प्राप्ति।
- सम्यक्त्व मार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें जन्म - 3.4।
- भव्यत्व, संज्ञित्व व आहारकत्व की अपेक्षा गति प्राप्ति–देखें जन्म - 6.6।
- संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति।
- शलाका पुरुषों की अपेक्षा गति प्राप्ति।
- नरकगति में पुन: पुन: भवधारण की सीमा।
- लब्ध्यपर्याप्तकों में पुन: पुन: भवधारण की सीमा–देखें आयु - 7।
- सम्यग्दृष्टि की भवधारण सीमा–देखें सम्यग्दर्शन - I.5।
- सल्लेखनागत जीव की भवधारण सीमा–देखें सल्लेखना - 1।
- गुणोत्पादन तालिका किस गति से किस गति में उत्पन्न होकर कौन गुण उत्पन्न करे
- तालिकाओं में प्रयुक्त संकेत।
- जन्म सामान्य निर्देश
- जन्म का लक्षण
रा.वा./2/34/1/5 देवादिशरीरनिवृत्तौ हि देवादिजन्मेष्टम् ।=देव आदिकों के शरीर की निवृत्ति को जन्म कहा जाता है।
रा.वा./4/42/4/250/15 उभयनिमित्तवशादात्मलाभमापद्यमानो भाव: जायत इत्यस्य विषय:। यथा मनुष्य गत्यादिनामकर्मोदयापेक्षया आत्मा मनुष्यादित्वेन जायत इत्युच्यते।=बाह्य आभ्यन्तर दोनों निमित्तों से आत्मलाभ करना जन्म है, जैसे मनुष्यगति आदि के उदय से जीव मनुष्य पर्यायरूप से उत्पन्न होता है।
भ.आ./वि./25/85/14 प्राणग्रहणं जन्म।=प्राणों को ग्रहण करना जन्म है।
- जन्म धारण से पहिले जीवप्रदेशों के संकोच का नियम
ध.4/1,3,2/29/6 उव्रवादो एयविहो। सो वि उप्पण्णपढमसमए चेव होदि। तत्थ उज्जुवगदीए उप्पण्णाणं खेत्तं बहुवं ण लब्भदि, संकोचिदासेसजीवपदेसादो=उपपाद एक प्रकार का है, और वह भी उत्पन्न होने के पहिले समय में ही होता है। उपपाद में ऋजुगति से उत्पन्न हुए जीवों का क्षेत्र बहुत नहीं पाया जाता है, क्योंकि इसमें जीव के समस्त प्रदेशों का संकोच हो जाता है।
- विग्रहगति में ही जीव का नवीन जन्म नहीं मान सकते
रा.वा./2/34/1/145/3 मनुष्यस्तैर्यग्योनो वा छिन्नायु: कार्मणकाययोगस्थो देवादिगत्युदयाद् देवादिव्यपदेशभागिति कृत्वा तदेवास्य जन्मेति मतमिति; तन्न; किं कारणम् । शरीरनिर्वर्तकपुद्गलाभावात् । देवादिशरीरनिवृत्तौ हि देवादिजन्मेष्टम् ।=प्रश्न–मनुष्य व तिर्यंचायु के छिन्न हो जाने पर कार्मणकाययोग में स्थित अर्थात् विग्रह गति में स्थित जीव को देवगति का उदय हो जाता है; और इस कारण उसको देवसंज्ञा भी प्राप्त हो जाती है। इसलिए उस अवस्था में ही उसका जन्म मान लेना चाहिए? उत्तर–ऐसा नहीं है, क्योंकि शरीरयोग्य पुद्गलों का ग्रहण न होने से उस समय जन्म नहीं माना जाता। देवादिकों के शरीर की निष्पत्ति को ही जन्म संज्ञा प्राप्त है।
- जन्म का लक्षण
- गर्भज आदि जन्म विशेषों का निर्देश
- जन्म के भेद
त.सू./2/21 सम्मूर्च्छनगर्भोपपादा जन्म।31।
स.सि./2/31/187/5 एते त्रय; संसारिणां जीवानां जन्मप्रकारा:। =सम्मूर्च्छन, गर्भज और उपपादज ये (तीन) जन्म हैं। संसारी जीवों के ये तीनों जन्म के भेद हैं। (रा.वा./2/31/4/140/30)
- बोये गये बीज में बीजवाला ही जीव या अन्य कोई जीव उत्पन्न हो सकता है
गो.जी./मू./187/425 बीजे जोणीभूदे जीवो चंकमदि सो व अण्णो वा। जे वि य मूलादीया ते पत्तेया पढमदाए।=मूल को आदि देकर जितने बीज कहे गये हैं वे जीव के उपजने के योनिभूत स्थान हैं। उसमें जल व काल आदि का निमित्त पाकर या तो उस बीज वाला ही जीव और या कोई अन्य जीव उत्पन्न हो जाता है।
- उपपादज व गर्भज जन्मों का स्वामित्व
ति.प./4/2948 उप्पत्ति मणुवाणं गब्भजसम्मुच्छियं खु दो भेदा।2948।
ति.प./5/293 उप्पत्ति तिरियाणं गब्भजसम्मुच्छिमो त्ति पत्तेक्कं। =मनुष्यों का जन्म गर्भ व सम्मूर्च्छन के भेद से दो प्रकार का है।2948। तिर्यंचों की उत्पत्ति गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से होती है।293।
गो.जी.मू./90-92/212 उववादा सुरणिरिया गब्भजसमुच्छिमा ह णरतिरिया।...।90। पंचिक्खतिरिक्खाओ गब्भजसम्मुच्छिमा तिरिक्खाणं। भोगभूमा गब्भभवा णरपुण्णा गब्भजा चेव।91। उबवादगब्भजेसु य लद्धिअप्पज्जत्तगा ण णियमेण।...।92। =देव और नारकी उपपाद जन्मसंयुक्त है। मनुष्य और तिर्यंच यथासम्भव गर्भज और सम्मूर्च्छन होता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच गर्भज और सम्मूर्च्छन दोनों प्रकार के होते हैं (विकलेन्द्रिय व एकेन्द्रिय सम्मूर्च्छन दोनों प्रकार के होते हैं) तिर्यंच योनि में भोगभूमिया तिर्यंच गर्भज ही होते हैं और पर्याप्त मनुष्य भी गर्भज ही होते हैं। उपपादज और गर्भज जीवों में नियम से अपर्याप्तक नहीं है (सम्मूर्च्छनों में ही होते हैं)।
सू./2/34 देवनारकाणामुपपाद:।34। =देव व नारकियों का जन्म उपपादज ही होता है। (मू.आ./1131)
- उपपादज जन्म की विशेषताएं
ति.प./2/313-314 पावेणं णिरयबिले जादूणं ता मुहुत्तगंमेत्ते। छप्पज्जत्ती पाविय आकस्सियभयजुदो होदि।313। भीदीए कंपमाणो चलिदुं दुक्खेण पट्ठिओ संतो। छत्तीसाऊहमज्झे पडिदूणं तत्थ उप्पलइ।314। =नारकी जीव पाप से नरकबिल में उत्पन्न होकर और एक मुहूर्त मात्र काल में छह पर्याप्तियों को प्राप्त कर आकस्मिक भय से युक्त होता है।313। पश्चात् वह नारकी जीव भय कांपता हुआ बड़े कष्ट से चलने के लिए प्रस्तुत होकर और छत्तीस आयुधों के मध्य में गिरकर वहां से उछलता है (उछलने का प्रमाण–देखें नरक - 2)।
ति.प./8/567 जायंते सुरलोए उववादपुरे महारिहे सयणे। जादा य मुहुत्तेण छप्पज्जत्तीओ पावंति।567। =देव सुरलोक के भीतर उपपादपुर में महार्घ शय्या पर उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होने पर एक मुहूर्त में ही छह पर्याप्तियों को भी प्राप्त कर लेते हैं।567।
- वीर्यप्रदेश के सात दिन पश्चात् तक जीव गर्भ में आ सकता है
यशोधर चरित्र/पृ0109 वीर्य तथा रज मिलने के पश्चात् 7 दिन तक जीव उसमें प्रवेश कर सकता है, तत्पश्चात् वह स्रवण कर जाता है।
- इसीलिए कदाचित् अपने वीर्य से स्वयं भी अपना पुत्र होना सम्भव है
यशोधर चरित्र/पृ0109 अपने वीर्य द्वारा बकरी के गर्भ में स्वयं मरकर उत्पन्न हुआ।
- गर्भवास का काल प्रमाण
ध.10/4,2,4,58/278/8 गब्भम्मिपदिदपढमसमयप्पहुडि के वि सत्तमासे गब्भे अच्छिदूण गब्भादो णिस्सरंति, केवि अट्ठमासे, केवि णवमासे, के वि दसमासे, अच्छिदूण गब्भादो णिप्फिडंति। =गर्भ में आने के प्रथम समय से लेकर कोई सात मास गर्भ में रहकर उससे निकलते हैं, कोई आठ मास, कोई नौ मास और कोई दस मास रहकर गर्भ से निकलते हैं।
- रज व वीर्य से शरीर निर्माण का क्रम
भ.आ./मू./1007-1017 कललगदं दसरत्तं अच्छदि कलुसकिदं च दसरत्तं। थिरभूदं दसरत्तं अच्छवि गब्भम्मि तं बीयं।1007। तत्तो मासं बुब्बुदभूदं अच्छदि पुणो वि घणभूदं। जायदि मासेण तदो मंसप्पेसी य मासेण।1008। मासेण पंचपुलगा तत्तो हुंति हु पुणो वि मासेण। अंगाणि उवंगाणि य णरस्स जायंति गब्भम्मि।1009। मासम्मि सत्तमे तस्स होदि चम्मणहरोमणिप्पत्ती। फंदणमट्ठममासे णवमे दसमे य णिग्गमणं।1010। आमासयम्मि पक्कासयस्स उवरिं अमेज्झमज्झम्मि। वत्थिपडलपच्छण्णो अच्छइ गब्भे हु णवमासं।1012। दन्तेहिं चव्विदं वीलणं च सिंभेण मेलिदं संतं। मायाहारिपमण्णं जुत्तं पित्तेण कडुएण।1015। वमिगं अमेज्झसरिसं वादविओजिदरसं खलं गब्भे। आहारेदि समंता उवरिं थिप्पंतगं णिच्चं।1016। तो सत्तमम्मि मासे उप्पलणालसरिसी हवइ णाही। तत्तो पाए वमियं तं आहारेदि णाहीए।1017।=माता के उदर में वीर्य का प्रवेश होने पर वीर्य का कलल बनता है, जो दस दिन तक काला रहता है और अगले 10 दिन तक स्थिर रहता है।1007। दूसरे मास वह बुदबुदरूप हो जाता है, तीसरे मास उसका घट्ट बनता है और चौथे मास में मांसपेशी का रूप धर लेता है।1008। पांचवें मास उसमें पांच पुंलव (अंकुर) उत्पन्न होते हैं। नीचे के अंकुर से दो पैर, ऊपर के अंकुर से मस्तक और बीच में अंकुरों से दो हाथ उत्पन्न होते हैं। छठे मास उक्त पांच अंगों की और आंख, कान आदि उपांगों की रचना होती है।1009। सातवें मास उन अवयवों पर चर्म व रोम उत्पन्न होते हैं और आठवें मास वह गर्भ में ही हिलने-डुलने लगता है। नवमें या दसवें मास वह गर्भ से बाहर आता है।1010। आमाशय और पक्वाशय के मध्य वह जेर से लिपटा हुआ नौ मास तक रहता है।1012। दांत से चबाया गया कफ से गीला होकर मिश्रित हुआ ऐसा, माता द्वारा भुक्त अन्न माता के उदर में पित्त से मिलकर कडुआ हो जाता है।1015। वह कडुआ अन्न एक-एक बिन्दु करके गर्भस्थ बालक पर गिरता है और वह उसे सर्वांग से ग्रहण करता रहता है।1016। सातवें महीने में जब कमल के डंठल के समान दीर्घ नाल पैदा हो जाता है तब उसके द्वारा उपरोक्त आहार को ग्रहण करने लगता है। इस आहार से उसका शरीर पुष्ट होता है।1017।
- जन्म के भेद
- सम्यग्दर्शन में जीव के जन्म सम्बन्धी नियम
- अबद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि उच्च कुल व गतियों आदि में ही जन्मता है नीच में नहीं
र.क.श्रा./35-36 सम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यङ्नपुंसकस्त्रीत्वानि। दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिका:।35। ओजस्तेजो विद्यावीर्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथा:। महाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूता:।36। =जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध हैं वे व्रतरहित होने पर भी नरक, तिर्यंच, नपुंसक व स्त्रीपने को तथा नीचकुल, विकलांग, अल्पायु और दरिद्रपने को प्राप्त नहीं होते हैं।35। शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव कान्ति, प्रताप, विद्या, वीर्य, यश की वृद्धि, विजय विभव के स्वामी उच्चकुली धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के साधक मनुष्यों में शिरोमणि होते हैं।36। (द्र.सं./टी./41/178/8 पर उद्धृत)।
द्र.सं./टी./41/178/7 इदानीं येषां जीवानां सम्यग्दर्शनग्रहणात्पूर्वमायुर्बन्धो नास्ति तेषां व्रताभावेऽपि नरनारकादिकुत्सितस्थानेषु जन्म न भवतीति कथयति।=अब जिन जीवों के सम्यग्दर्शन ग्रहण होने से पहले आयु का बन्ध नहीं हुआ है, वे व्रत न होने पर भी निन्दनीय नर नारक आदि स्थानों में जन्म नहीं लेते, ऐसा कथन करते हैं। (आगे उपरोक्त श्लोक उद्धृत किये हैं। अर्थात् उपरोक्त नियम अबद्धायुष्क के लिए जानना बद्धायुष्क के लिए नहीं)।
का.अ./मू./327 सम्माइट्ठी जीवो दुग्गदि हेदुं ण बंधदे कम्मं। जं बहु भवेसु बद्धं दुक्कम्मं तं पि णासेदि।37। =सम्यग्दृष्टि जीव ऐसे कर्मों का बन्ध नहीं करता जो दुर्गति के कारण हैं बल्कि पहले अनेक भवो में जो अशुभ कर्म बांधे हैं उनका भी नाश कर देता है।
- बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि की चारों गतियों में उत्पत्ति संभव है
गो.जी./जी.प्र/127/338/15 मिथ्यादृष्टसंयतगुणस्थानमृताश्चतुर्गतिषु...चोत्पद्यन्ते। =मिथ्यादृष्टि और संयत गुणस्थानवर्ती चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं।
- परन्तु बद्धायुष्क उन-उन गतियों के उत्तम स्थानों में ही उत्पन्न होते हैं नीचों में नहीं
पं.सं.प्रा./1/193 छसु हेट्ठिमासु पुढवीसु जोइसवणभवणसव्व इत्थीसु। बारस मिच्छावादे सम्माइट्ठीसु णत्थि उववादो। =प्रथम पृथिवियों के बिना अधस्थ छहों पृथिवियों में, ज्योतिषी व्यन्तर भवन-वासी देवों में सर्व प्रकार की स्त्रियों में अर्थात् तिर्यंचिनी मनुष्यणी और देवियों में तथा बारह मिथ्यावादों में अर्थात् जिनमें केवल मिथ्यात्व गुणस्थान ही सम्भव है ऐसे एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय और असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यंचों के बारह जीवसमासों में, सम्यग्दृष्टि जीव का उत्पाद नहीं है, अर्थात् सम्यक्त्व सहित ही मरकर इनमें उत्पन्न नहीं होता है। (ध.1/1,1,26/गा.133/209); (गो.जी.मू./129/339)।
द्र.सं./टी./41/179/2 इदानीं सम्यक्त्वग्रहणात्पूर्व देवायुष्कं विहाय ये बद्धायुष्कास्तान् प्रति सम्यक्त्वमाहात्म्यं कथयति। हेटि्ठमछप्पुढवीणं जोइसवणभवणसव्वइच्छीणं। पुण्णिदरेण हि समणो णारयापुण्णे। (गो.जी.मू./138/339)। तमेवार्थं प्रकारान्तरेण कथयति–ज्योतिर्भावनभौमेषु षट्स्वध: श्वभ्रभूमिषु। तिर्यक्षु नृसुरस्त्रीषु सद्दृष्टिर्नैव जायते। =अब जिन्होंने सम्यक्त्व ग्रहण करने के पहले ही देवायु को छोड़कर अन्य किसी आयु का बन्ध कर लिया है उनके प्रति सम्यक्त्व का माहात्म्य कहते हैं। (यहां दो गाथाएं उद्धृत की हैं)। (गो.जी.मू./128/339 से)–प्रथम नरक को छोड़कर अन्य छह नरकों में; ज्योतिषी, व्यन्तर व भवनवासी देवों में, सब स्त्री लिंगों में और तिर्यंचों में सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होते। (गो.जी./मू./128)। इसी आशय को अन्य प्रकार से कहते हैं–ज्योतिषी, भवनवासी और व्यन्तर देवों में, नीचे के 6 नरकों की पृथिवियों में, तिर्यंचों में और मनुष्यणियों व देवियों में सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होते।
- बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि चारों ही गतियों के उत्तम स्थानों में उत्पन्न होता है
क.पा./2/2/240/213/3 खीणदंसणमोहणीयं चउग्गईसु उप्पज्जमाणं पेक्खिदूण। =जिनके दर्शनमोहनीय का क्षय हो गया है ऐसे जीव चारों गतियों में उत्पन्न होते हुए देखे जाते हैं।
ध.2/1,1/481/1 मणुस्सा पुव्वबद्ध-तिरिक्खयुगापच्छा सम्मत्तं घेत्तूण दंसणमोहणीय खविय खइय सम्माइट्ठी होदूण असंखेज्ज-वस्सायुगेसु तिरिक्खेसु उप्पज्जंति ण अणत्थ। =जिन मनुष्यों ने सम्यग्दर्शन होने से पहले तिर्यंचायु को बांध लिया वे पीछे सम्यक्त्व को ग्रहण कर और दर्शनमोहनीय का क्षपण करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर असंख्यात वर्ष की आयुवाले भोगभूमि के तिर्यंचों में ही उत्पन्न होते हैं अन्यत्र नहीं। (विशेष देखें तिर्यंच - 2)।
ध.1/1,1,25/205/5 सम्यग्दृष्टीनां बद्धायुषां तत्रोत्पत्तिरस्तीति तत्रासंयतसम्यग्दृष्टय: सन्ति। =बद्धायुष्क (क्षायिक) सम्यग्दृष्टियों की नरक में उत्पत्ति होती है, इसलिए नरक में असंयत सम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं।
ध.1/1,1,25/207/1 प्रथमपृथिव्युत्पत्तिं प्रति निषेधाभावात् । प्रथमपृथिव्यामिव द्वितीयादिषु पृथिवीषु सम्यग्दृष्टय: किन्नोत्पद्यन्त इति चेन्न, सम्यक्त्वस्य तत्रतन्न्यापर्याप्ताद्धया सह विरोधात् । =सम्यग्दृष्टि मरकर प्रथम पृथिवी में उत्पन्न होते हैं, इसका आगम में निषेध नहीं है। प्रश्न–प्रथम पृथिवी की भांति द्वितीयादि पृथिवियों में भी वे क्यों उत्पन्न नहीं होते हैं? उत्तर–नहीं, क्योंकि, द्वितीयादि पृथिवियों की अपर्याप्त अवस्था के साथ सम्यग्दर्शन का विरोध है। (विशेष–देखें नरक - 4)।
- कृतकृत्य वेदक सहित जीवों के उत्पत्ति क्रम सम्बन्धी नियम
क.पा./2/2-/242/215/7 पढमसमयकदकरणिज्जो जदि मरदि णियमो देवेसु उव्वज्जदि। जदि णेरइएसु तिरिक्खेसु मणुस्सेसु वा उववज्जदि तो णियमा। अंतोमुहुत्तकदकरणिज्जो त्ति जइवसहाइरियपरूविद चुण्णिसुत्तादो। =कृतकृत्यवेदक जीव यदि कृतकृत्य होने के प्रथम समय में मरण करता है तो नियम से देवों में उत्पन्न होता है। किन्तु जो कृतकृत्यवेदक जीव नारकी तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होता है वह नियम से अन्तर्मुहूर्त काल तक कृतकृत्यवेदक रहकर ही मरता है। इस प्रकार यतिवृषभाचार्य के द्वारा कहे चूर्ण सूत्र में जाना जाता है।
ध.2/1,1/481/4 तत्थ उप्पज्जमाण कदकरणिज्जं पडुच्च वेदगसम्मत्तं लब्भदि।=उन्हीं भोग भूमि के तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले (बद्धायुष्क–देखो अगला शीर्षक) जीवों के कृतकृत्य वेदक की अपेक्षा वेदक सम्यक्त्व भी पाया जाता है।
गो.क./मू./562/764 देवेसु देवमणुवे सुरणरतिरिये चउगईसुंपि। कदकरणिज्जुप्पत्ती कमसो अंतोमुहुत्तेण।562। =कृतकृत्य वेदक का काल अन्तर्मुहूर्त है। ताका चार भाग कीजिए। तहां क्रमतैं प्रथमभाग का अन्तर्मुहूर्तकरि मरया हुआ देवविषै उपजै है, दूसरे भाग का मरा हुआ देवविषै व मनुष्यविषै, तीसरे भाग का देव मनुष्य व तिर्यंचविषै, चौथे भाग का देव, मनुष्य, तिर्यंच व नारक (इन चारों में से) किसी एक विषै उपजै है। (ल.सा./मू./146/200)।
- सम्यग्दृष्टि मरने पर पुरुषवेदी ही होता है
ध.2/1,1/510/10 देव णेरइय मणुस्स-असंजदसम्माइट्ठिणो जदि मणुस्सेसु उप्पज्जंति तो णियमा पुरिसवेदेसु चेव उप्पंज्जंति ण अण्णवेदेसु तेण पुरिसवेदो चेव भणिदो।=देव नारकी और मनुष्य असंयत सम्यग्दृष्टि जीव मरकर यदि मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, तो नियम से पुरुषवेदी मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं; अन्य वेदवाले मनुष्यों में नहीं। इससे असंयत सम्यग्दृष्टि अपर्याप्त के एक पुरुषवेद ही कहा है (विशेष देखें पर्याप्ति )।
ध.1/1,1,93/332/10 हुण्डावसर्पिण्यां स्त्रीषु सम्यग्दृष्टय: किन्नोत्पद्यन्ते इति चेन्न, उत्पद्यन्ते। कुतोऽवसीयते ? अस्मादेवार्षात् ।=प्रश्न–हुण्डावसर्पिणीकाल सम्बन्धी स्त्रियों में सम्यग्दृष्टि जीव क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? उत्तर–नहीं, क्योंकि उनमें सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। प्रश्न–यह किस प्रमाण से जाना जाता है ? उत्तर–इसी (ष.खं.) आगमप्रमाण से जाना जाता है।
- अबद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि उच्च कुल व गतियों आदि में ही जन्मता है नीच में नहीं
- सासादन गुणस्थान में जीवों के जन्म सम्बन्धी मतभेद
- <a name="4.1" id="4.1"></a>नरक में जन्मने का सर्वथा निषेध है
ध.6/1,9-9/47/438/8 सासणसम्माइट्ठीणं च णिरयगदिम्हि पवेसो णत्थि। एत्थ पवेसापदुप्पायण अण्णहाणुववत्तीदो। =सासादन सम्यग्दृष्टियों का नरकगति में प्रवेश ही नहीं है, क्योंकि यहां प्रवेश के प्रतिपादन न करने की अन्यथा उपपत्ति नहीं बनती। (सूत्र नं.46 में मिथ्यादृष्टि के नरक में प्रवेश विषयक प्ररूपणा करके सूत्र नं.47 में सम्यग्दृष्टि के प्रवेश विषयक प्ररूपणा की गयी है। बीच में सासादन व मिश्र गुणस्थान की प्ररूपणाएं छोड़ दी हैं)।
ध.1/1,1,25/205/9 न सासादनगुणवतां तत्रोत्पत्तिस्तद्गुणस्य तत्रोत्पत्त्या सह विरोधात् ।...किमित्यपर्याप्तया विरोधश्चेत्स्वभावोऽयं, न हि स्वभावा: परपर्यनुयोगार्हा:। =सासादन गुणस्थान का नरक में उत्पत्ति के साथ विरोध है। प्रश्न–नरकगति में अपर्याप्तावस्था के साथ दूसरे (सासादन) गुणस्थान का विरोध क्यों है? उत्तर–यह नारकियों का स्वभाव है, और स्वभाव दूसरे के प्रश्न के योग्य नहीं होते।
गो.क./जी.प्र./127/338/15 सासादनगुणस्थानमृता नरकवर्जितगतिषु उतोत्पद्यन्ते। =सासादन गुणस्थान में मरा हुआ जीव नरक रहित शेष तीन गतियों में उत्पन्न होते हैं।
- <a name="4.2" id="4.2"></a>अन्य तीन गतियों में उत्पन्न होने योग्य कालविशेष
ध.5/1,6,38/35/3 सासणं पडिवण्णविदिए समए जदि मरदि, तो णियमेण देवगदीए उववज्जदि। एवं जाव आवलियाए असंखेज्जदिभागो देवगदिपाओग्गो कालो होदि। तदो उवरि मणुसगदिपाओग्गो आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो कालो होदि। एवं सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-चउरिंदिय-तेइंदिय-वेइंदिय-एइंदियपाओग्गो होदि। एसो णियमो सव्वत्थ सासणगुणं पडिवज्जमाणाणं। =सासादन गुणस्थान को प्राप्त होने के द्वितीय समय में यदि वह जीव मरता है तो नियम से देवगति में उत्पन्न होता है। इस प्रकार आवली के असंख्यातवें भागप्रमाणकाल देवगति में उत्पन्न होने के योग्य होता है। उसके ऊपर मनुष्यगति (में उत्पन्न होने) के योग्यकाल आवली के असंख्यातवेंभाग प्रमाण है। इसी प्रकार से आगे-आगे संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने योग्य (काल) होता है। यह नियम सर्वत्र सासादन गुणस्थान को प्राप्त होने वालों का जानना चाहिए।
- पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में गर्भज संज्ञी पर्याप्त में ही जन्मता है अन्य में नहीं
ष.खं./6/1,9-9/सू. 122-125/461 पंचिंदिएसु गच्छंता सण्णीसु गच्छंति, णो असण्णीसु।122। सण्णीसु गच्छंता गब्भोवक्कंतिएसु गच्छंता, णो सम्मुच्छिमेसु।123। गब्भोवक्कंतिएसु गच्छंता पज्जयत्तएससु, णो अप्पज्जत्तएसु।124। पज्जत्तएसु गच्छंता संखेज्जवासाउएसु वि गच्छंति असंखेज्जवासाउवेसु वि।125। =तिर्यंचों में जाने वाले संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच।119। पंचेन्द्रियों में भी जाते हैं।120। पंचेन्द्रियों में भी संज्ञियों में ही जाते हैं असंज्ञियों में नहीं।122। संज्ञियों में भी गर्भजों में जाते हैं संमूर्च्छिमों में नहीं।123। गर्भजों में भी पर्याप्तकों में जाते हैं अपर्याप्तकों में नहीं।124। पर्याप्तकों में जाने वाले वे संख्यात वर्षायुष्कों में भी जाते हैं और असंख्यात वर्षायुष्कों में भी।125। (देखो आगे गति अगति चूलिका नं.3 शेष गतियों से आने वाले जीवों के लिए भी उपरोक्त ही नियम है।) (ध.2/1,1/427)।
- असंज्ञियों में भी जन्मता है
गो.जी./जी.प्र./695/1131/13 सासादने...संज्ञ्यसंज्ञ्यपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता:...। द्वितीयोपशम सम्यक्त्वविराधकस्य सासादनत्वप्राप्तिपक्षे च संज्ञिपर्याप्तदेवापर्याप्ताविति द्वौ।=सासादनविषै जीवसमास असंज्ञी अपर्याप्त और संज्ञी पर्याप्त व अपर्याप्त भी होते हैं और द्वितीयोपशम सम्यक्त्वतै पड़ जो सासादनको भया होइ ताकि अपेक्षा तहां सैनी पर्याप्त और देव अपर्याप्त ये दो ही जीव समास है। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/14); (गो.क./जी.प्र./551/753/4)।
- विकलेन्द्रियों में नहीं जन्मता
ध.6/1,9-9/सू.120/459 तिरिक्खेसु गच्छंता एइंदिए पंचिंदिएसु गच्छंति णो विगलिंदिएसु।120। =तिर्यंचों में जाने वाले संख्यातवर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच एकेन्द्रिय व पंचेन्द्रियों में जाते हैं पर विकलेन्द्रियों में नहीं।120।
ध.6/1,9-9/सूत्र76-78;150-152;175 (नरक, मनुष्य व देवगति से आकर तिर्यंचों में उपजने वाले सासादन सम्यग्दृष्टियों के लिए भी उपरोक्त ही नियम कहा गया है)।
ध.2/1,1/576,580 (विकलेन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्त दोनों अवस्थाओं में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है)।
(देखें इन्द्रिय - 4.4) विकलेन्द्रियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है।
- विकलेन्द्रियों में भी जन्मता है
पं.सं./प्रा./4/59 मिच्छा सादा दोण्णि य इगि वियले होंति ताणि णायव्वा।
पं.सं./प्रा.टी./4/59/99/1 तेदेकेन्द्रियविकलेन्द्रियाणां पर्याप्तकाले एकं मिथ्यात्वम् । तेषां केषांचित् अपर्याप्तकाले उत्पत्तिसमये सासादनं संभवति। =इन्द्रिय मार्गणा की अपेक्षा एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि उक्त जीवों में सासादन गुणस्थान निवृत्त्यपर्याप्त दशा में ही सम्भव है अन्यत्र नहीं, क्योंकि पर्याप्त दशा में तो तहां एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही पाया जाता है।
गो.जी./जी.प्र./695/1131/13 सासादने बादरैकद्वित्रिचतुरिन्द्रिय संज्ञ्यसंज्ञ्यपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता: सप्त। =सासादन विषै बादर एकेन्द्री बेंद्री तेंद्री चौइंद्री व असैनी तो अपर्याप्त और सैनी पर्याप्त व अपर्याप्त ए सात जीव समास होते हैं। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/11), (गो.क./जी.प्र./551/753/4)।
- एकेन्द्रियों में जन्मता है
ष.खं.6/1,9-9/सूत्र120/459 तिरिक्खेसु गच्छंता एइंदिया पंचिंदिएसु गच्छंति, णो विगलिंदिएसु।120।=तिर्यंचों में जाने वाले संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच एकेन्द्रिय व पञ्चेन्द्रिय में जाते हैं, परन्तु विकलेन्द्रिय में नहीं जाते।
ष.खं.6/1,9-9/सूत्र76-78/150-152;175 सारार्थ (नरक मनुष्य व देवगति में आकर तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले सासादन सम्यग्दृष्टियों के लिए भी उपरोक्त ही नियम कहा गया है)।
गो.जी./जी.प्र./695/1131/13 सासादने बादरैकद्वित्रिचतुरिन्द्रियसंज्ञ्यसंज्ञ्यपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता: सप्त। =सासादन में बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवसमास भी होता है। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/11); (गो.क./जी.प्र./551/753/4)।
- एकेन्द्रियों में नहीं जन्मता
देखें इन्द्रिय - 4.4 एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्त सबमें एक मिथ्यात्व गुणस्थान बताया है।
ध.4/1,4,4/165/7 जे पुण देवसासणा एइंदिएसुप्पज्जंति त्ति भणंति तेसिमभिप्पाएण, बारहचोद्दसभागा देसूणा उववादफोसणं होदि, एदं पि वक्खाणं संत-दव्वसुत्तविरुद्धं ति ण घेत्तव्वं।=जो ऐसा कहते हैं कि सासादनसम्यग्दृष्टि देव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, उनके अभिप्राय से कुछ कम 12/14 उपपादपद का स्पर्शन होता है। किन्तु यह भी व्याख्यान सत्प्ररूपणा और द्रव्यानुयोगद्वार के सूत्रों के विरुद्ध पड़ता है, इसलिए उसे नहीं ग्रहण करना चाहिए।
ध.7/2,7,262/457/2 ण, सासणाणमेइंदिएसु उववादाभावादो।=सासादन सम्यग्दृष्टियों की एकेन्द्रियों में उत्पत्ति नहीं है।
- बादर पृथिवी अप् व प्रत्येक वनस्पति में जन्मता है अन्य कार्यों में नहीं
ष.खं.6/1,9-9/सूत्र121/460 एइंदिएसु गच्छंता बादरपुढवीकाइयाबादरआउक्काइया-बादरबणप्फइकाइयपत्तेयसरीर पज्जत्तएसु गच्छंत्ति णो अप्पज्जत्तेसु।121। =एकेन्द्रियों में जाने वाले वे जीव (संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच) बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्तकों में ही जाते हैं अपर्याप्तों में नहीं।
ष.खं.6/1,9-9/सू.153,176 मनुष्य व देवगति से आने वालों के लिए भी उपरोक्त ही नियम है।
पं.सं./प्रा./4/59-60 भूदयहरिएसु दोण्णि पढमाणि।59। तेऊवाऊकाए मिच्छं...।60।
पं.सं./प्रा./टीं/4/60/99/5 तयोरेकं कथम् ? सासादनस्थो जीवो मृत्वा तेजोवायुकायिकयोर्मध्ये न उत्पद्यते, इति हेतो:। =काय मार्गणा की अपेक्षा पृथिवीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में आदि के दो गुणस्थान होते हैं। तेजस्कायिक और वायुकायिक में एक मिथ्यात्व गुणस्थान होता है, क्योंकि सासादन सम्यग्दृष्टि जीव मरकर तेज व वायुकायिकों में उत्पन्न नहीं होते।
गो.क./मू./115/105 ण हि सासणो अपुण्णे साहारणसुहुमगे य तेउदुगे।...।115।=लब्धि अपर्याप्त, साधारणशरीरयुक्त, सर्व सूक्ष्म जीव, तथा बातकायिक तेजस्कायिक विषैं सासादन गुणस्थान न पाइए है।
गो.क./जी.प्र./309/438/8 गुणस्थानद्वयं। कुत:। ‘‘ण हि सासणो अपुण्णे...।’’ इति पारिशेषात् पृथ्व्यप्प्रत्येकवनस्पतिषु सासादनस्योत्पत्ते:। =प्रश्न–पृथिवी आदिकों में दो गुणस्थान कैसे होते हैं ? उत्तर–‘‘ण हि सासण अपुण्णो–’’ इत्यादि उपरोक्त गाथा नं.195 में अपर्याप्तकादि स्थानों का निषेध किया है। परिशेष न्याय से उनसे बचे जो पृथिवी, अप् और प्रत्येक वनस्पतिकायिक उनमें सासादन की उत्पत्ति जानी जाती है। (गो.जी./जी.प्र./703/1137/14); (गो.क./जी.प्र./551/753/4)
- बादर पृथिवी आदि कायिकों में भी नहीं जन्मते
ध.2/1,1/607,610,615 सारार्थ (बादरपृथिवीकायिक, बादरवायुकायिक व प्रत्येक वनस्पतिकायिक पर्याप्त व अपर्याप्त दोनों अवस्थाओं में सर्वत्र एक मिथ्यात्व ही गुणस्थान बताया गया है।)
देखें काय - 2.4 पृथिवी आदि सभी स्थावर कायिकों में केवल एक मिथ्यात्वगुणस्थान ही बताया गया है।
- एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते बल्कि उनमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं
ध.4/1,4,4/162/10 जदि सासणा एइंदिएसु उपज्जंति, तो तत्थ दो गुणट्ठाणाणि होंति। ण च एवं, संताणिओगद्दारे तत्थ एक्कमिच्छादिटि्ठगुणप्पदुप्पायणादो दव्वाणिओगद्दारे वि तत्थ एगगुणट्ठाणदव्वस्स पमाणपरूवणादो च। को एवं भणदि जधा सासणा एइंदियसुप्पज्जंति त्ति। किंतु ते तत्थ मारणंतियं मेल्लंति त्ति अम्हाणं णिच्छओ। ण पुण ते तत्थ उप्पज्जंति त्ति, छिण्णाउकाले तत्थ सासणगुणाणुवलंभादो। जत्थ सासणाणमुववादो णत्थि, तत्थ वि जदि सासणा मारणंतियं मेल्लंति, तो सत्तमपुढविणेरइया वि सासणगुणेण सह पंचिंदियतिरिक्खेसु मारणंतियं मेल्लंतु, सासणत्तं पडि विसेसाभावादो। ण एस दोसो, भिण्णजादित्तादो। एदे सत्तमपुढविणेरइया पंचिंदियतिरिक्खेसु गब्भोवक्कंतिएसु चेव उप्पजणसहावा, ते पुण देवा पंचिंदिएसु एइंदिएसु य उप्पज्जणसहावा, तदो ण समाणजादीया। ...तम्हा सत्तमपुढविणेरइया सासणगुणेण सह देवा इव मारणंतियं ण करेंति त्ति सिद्धं। ...वाउकाइएसु सासणा मारणंतियं किण्ण करेंति। ण, सयलसासणाणं देवाणं व तेउ-वाउकाइएसु मारणंतियाभावादो, पुढविपरिणाम-विमाण-तल-सिला-थंभ-थूभतल-उब्भसालहंजिया-कुडु-तोरणादीणं तदुप्पत्तिजोगाणं दंसणादो च। प्रश्न–यदि सासादन सम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो उनमें वहां पर दो गुणस्थान प्राप्त होते हैं। किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि सत्प्ररूपणा अनुयोग द्वार में एकेन्द्रियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है, तथा द्रव्यानुयोगद्वार में भी उनमें एक ही गुणस्थान के द्रव्य का प्रमाण प्ररूपण किया गया है ? उत्तर–कौन ऐसा कहता है कि सासादन सम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में होते हैं ? किन्तु वे उस एकेन्द्रिय में मारणान्तिक समुद्धात को करते हैं; ऐसा हमारा निश्चय है। न कि वे अर्थात् सासादनसम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं; क्योंकि उनमें आयु के छिन्न होने के समय सासादन गुणस्थान नहीं पाया जाता है। प्रश्न–जहां पर सासादनसम्यग्दृष्टियों का उत्पाद नहीं है, वहां पर भी यदि (वे देव) सासादन सम्यग्दृष्टि जीव मारणान्तिक समुद्घात को करते हैं, तो सातवीं पृथिवी के नारकियों को सासादन गुणस्थान के साथ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में मारणान्तिक समुद्घात करना चाहिए, क्योंकि, सासादन गुणस्थान की अपेक्षा दोनों में कोई विशेषता नहीं है ? उत्तर–यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, देव और नारकी इन दोनों की भिन्न जाति है, ये सातवीं पृथिवी के नारकी गर्भजन्म वाले पंचेन्द्रियों में ही उपजने के स्वभाव वाले हैं, और वे देव पंचेन्द्रियों में तथा एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने रूप स्वभाववाले हैं, इसलिए दोनों समान जातीय नहीं हैं।...इसलिए सातवीं पृथिवी के नारकी देवों की तरह मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते हैं। प्रश्न–सासादन सम्यग्दृष्टि जीव वायुकायिकों में मारणान्तिक समुद्घात क्यों नहीं करते ? उत्तर–नहीं, क्योंकि, सकल सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों का देवों के समान तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों में मारणान्तिक समुद्घात का अभाव माना गया है। और पृथिवी के विकाररूप विमान, शय्या, शिला, स्तम्भ और स्तूप, इनके तलभाग तथा खड़ी हुई शालभंजिका (मिट्टी की पुतली) भित्ति और तोरणादिक उनकी उत्पत्ति के योग्य देखे जाते हैं।
- दोनों दृष्टियों में समन्वय
ध.7/2,7,259/457/2 सासणाणमेइंदिएसु उववादाभावादो। मारणंतियमेइंदिएसु गदसासणा तत्थ किण्ण उप्पज्जंति। ण मिच्छत्तमागंत्तूण सासणगुणेण उप्पत्तिविरोहादो।=सासादनसम्यग्दृष्टियों की एकेन्द्रियों में उत्पत्ति नहीं है। प्रश्न–एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त हुए सासादन सम्यग्दृष्टि जीव उनमें उत्पन्न क्यों नहीं होते ? उत्तर–नहीं, क्योंकि, आयु के नष्ट होने पर उक्त जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में आ जाते हैं, अत: मिथ्यात्व में आकर सासादन गुणस्थान के साथ उत्पत्ति का विरोध है।
ध.6/1,9,9,120/459/8 जदि एइंदिएसु सासणसम्माइट्ठी उप्पज्जदि तो पुढवीकायादिसु दो गुणट्ठाणाणि होंति त्ति चे ण, छिण्णाउअपढमसमए सासणगुणविणासादो। =प्रश्न–यदि एकेन्द्रियों में सासादन सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं तो पृथिवीकायिकादिक जीवों में मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होने चाहिए। उत्तर–नहीं, क्योंकि, आयु क्षीण होने के प्रथम समय में ही सासादन गुणस्थान का विनाश हो जाता है।
ध./1/1,1,36/261/8 एइंदिएसु सासणगुणट्ठाणं पि सुणिज्जदि तं कधं घडदे। ण एदम्हि सुत्ते तस्स णिसिद्धत्तादो। विरुद्धाणं कथं दोण्हं पि सुत्ताणमिदि ण, दोण्हं एक्कदरस्स सुत्तादो। दोण्हं मज्झे इदं सुत्तमिदं च ण भवदीदि कधं णव्वदि। उवदेसमंतरेण तदवगमाभावा दोण्हं पि संगहो कायव्वो। =प्रश्न–एकेन्द्रिय जीवों में सासादनगुणस्थान भी सुनने में आता है, इसलिए उनके केवल एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान के कथन करने से वह कैसे बन सकेगा। उत्तर–नहीं, क्योंकि, इस खण्डागम सूत्र में एकेन्द्रियादिकों के सासादन गुणस्थान का निषेध किया है। प्रश्न–जबकि दोनों वचन परस्पर विरोधी हैं तो उन्हें सूत्रपना कैसे प्राप्त हो सकता है? उत्तर–नहीं, क्योंकि दोनों वचन सूत्र नहीं हो सकते हैं, किन्तु उन दोनों वचनों में से किसी एक वचन को ही सूत्रपना प्राप्त हो सकता है। प्रश्न–दोनों वचनों में यह सूत्ररूप है और यह नहीं, यह कैसे जाना जाये। उत्तर–उपदेश के बिना दोनों में से कौन वचन सूत्ररूप है यह नहीं जाना जा सकता है, इसलिए दोनों वचनों का संग्रह करना चाहिए (आचार्यों पर श्रद्धान करके ग्रहण करने के कारण इससे संशय भी उत्पन्न होना सम्भव नहीं। (–देखें श्रद्धान - 3)।
- <a name="4.1" id="4.1"></a>नरक में जन्मने का सर्वथा निषेध है
- जीवों के उपपाद सम्बन्धी कुछ नियम
- चरम शरीरियों का व रुद्र आदिकों का उपपाद चौथे काल में ही होता है
ज.प./2/185 रुद्दा य कामदेवा गणहरदेवा व चरमदेहधरा दुस्समसुसमे काले उप्पत्ती ताण बोद्धव्वो।185। =रुद्र, कामदेव, गणधरदेव और जो चरमशरीरी मनुष्य हैं, उनकी उत्पत्ति दुषमसुषमा काल में जानना चाहिए।
- अच्युत कल्प से ऊपर संयमी ही जाते हैं
ध.6/1,9-9,133/465/6 उवरिं किण्ण गच्छंति। ण तिरिक्खसम्माइट्ठीसु संजमाभावा। संजमेण विणा ण च उवरिं गमणमत्थि। ण मिच्छाइट्ठीहि तत्थुप्पज्जंतेहि विउचारो, तेसिं पि भावसंजमेण विणा दव्वसंजमस्स संभवा। =प्रश्न–संख्यात वर्षायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच मरकर आरण अच्युत कल्प से ऊपर क्यों नहीं जाते ? उत्तर–नहीं, क्योंकि, तिर्यंच सम्यग्दृष्टि जीवों में संयम का अभाव पाया जाता है। और संयम के बिना आरण अच्युत कल्प से ऊपर गमन होता नहीं है। इस कथन से आरण अच्युत कल्प से ऊपर (नवग्रैवेयक पर्यन्त) उत्पन्न होने वाले मिथ्यादृष्टि जीवों के साथ व्यभिचार दोष भी नहीं आता, क्योंकि, उन मिथ्यादृष्टियों के भी भावसंयम रहित द्रव्य संयम होना सम्भव है।
- लौकान्तिक देवों में जन्मने योग्य जीव
ति.प./8/645-651 भत्तिपसत्ता सज्झयसाधीणा सव्वकालेसुं।645। इह खेत्ते वेरग्गं बहुभेयं भाविदूण बहुकालं।646। थुइणिंदासु समाणो सुदुक्खेसुं सबंधुरिउवग्गे।647। जे णिरवेक्खा देहे णिद्दंदा णिम्ममा णिरारंभा। णिरवज्जा समणवरा...।648। संजोगविप्पयोगे लाहालाहम्मि जीविदे मरणे।649। अणवरदसमं पत्ता संजमसमिदीसुं झाणजोगेसुं। तिव्वतवचरणजुत्ता समणा।650। पंचमहव्वय सहिदा पंचसु समिदीसु चिरम्मि चेट्ठंति। पंचक्खविसयविरदा रिसिणो लोयंतिया होंति।651। =जो भक्ति में प्रशक्त और सर्वकाल स्वाध्याय में स्वाधीन होते हैं।645। बहुत काल तक बहुत प्रकार के वैराग्य को भाकर संयम से युक्त होते हैं।646। जो स्तुति-निन्दा, सुख दु:ख और बन्धु-रिपु में समान होते हैं।647। जो देह के विषय में निरपेक्ष निर्द्वन्द, निर्मम, निरारम्भ और निरवद्य हैं।648। जो संयोग व वियोग में, लाभ व अलाभ में तथा जीवित और मरण में सम्यग्दृष्टि होते हैं।649। जो संयम, समिति, ध्यान, समाधि व तप आदि में सदा सावधान हैं।650। पंच महाव्रत, पंच समिति, पंच इन्द्रिय निरोध के प्रति चिरकाल तक आचरण करने वाले हैं, ऐसे विरक्त ऋषि लौकान्तिक होते हैं।651।
- संयतासंयत नियम से स्वर्ग में जाता है
म.पु./26/103 सम्यग्दृष्टि: पुनर्जन्तु: कृत्वाणु व्रतधारणम् । लभते परमान्भोगान् ध्रुवं स्वर्गनिवासिनाम् ।103। =यदि सम्यग्दृष्टि मनुष्य अणुव्रत धारण करता है तो वह निश्चित ही देवों के उत्कृष्ट भोग प्राप्त करता है। और भी (देखें जन्म - 6.3)।
- निगोद से आकर उसी भव से मोक्ष की सम्भावना
भ.आ./मू./17/66 दिट्ठा अणादिमिच्छादिट्ठी जम्हा खणेण सिद्धा य। आरणा चरित्तस्स तेण आराहणा सारो।17।
भ.आ./वि./17/66/6 भद्दणादयो राजपुत्रास्तस्मिन्नेव भवे त्रसतामापन्ना: अतएव अनादिमिथ्यादृष्टय: प्रथमजिनपादमूले श्रुतधर्मसारा: समारोपितरत्नत्रया:, ...क्षणेन क्षणग्रहणं कालस्याल्पत्वोपलक्षणार्थम् ...सिद्धाश्च परिप्राप्ताशेषज्ञानादिस्वभावा:....दृष्टा: आराधनासंपादका:, चारित्रस्य। =चारित्र की आराधना करने वाले अनादिमिथ्यादृष्टि जीव भी अल्पकाल में सम्पूर्ण कर्मों का नाश करके मुक्त हो गये ऐसा देखा गया है। अत: जीवों को आराधना का अपूर्व फल मिलता है ऐसा समझना चाहिए।
अनादिकाल से मिथ्यात्व का तीव्र उदय होने से अनादिकालपर्यन्त जिन्होंने नित्य निगोदपर्याय का अनुभव लिया था ऐसे 923 जीव निगोदपर्याय छोड़कर भरत चक्रवर्ती के भद्रविवर्धनादि नाम धारक पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे इसी भव से त्रस पर्याय को प्राप्त हुए थे। भगवान् आदिनाथ के समवशरण में द्वादशांग वाणी का सार सुनकर रत्नत्रय की आराधना से अल्पकाल में ही मोक्ष प्राप्त किया है। ध.6/1,9-8,11/247/4)।
द्र.सं./टी./35/106/6 अनुपमद्वितीयमनादिमिथ्यादृशोऽपि भरतपुत्रास्त्रयोविंशत्यधिकनवशतपरिमाणास्ते च नित्यनिगोदवासिन: क्षपितकर्माण: इन्द्रगोपा: संजातास्तेषां च पञ्चीभूतानामुपरि भरतहस्तिना पादो दत्तस्ततस्ते मृत्वापि वर्द्धमानकुमारादयो भरतपुत्रा जातास्ते...तपो गृहीत्वा क्षणस्तोककालेन मोक्षं गता:। =यह वृत्तान्त अनुपम और अद्वितीय है कि नित्यनिगोदवासी अनादि मिथ्यादृष्टि 923 जीव कर्मों की निर्जरा होने से इन्द्रगोप हुए। सो उन सबके ढेर पर भरत के हाथी ने पैर रख दिया। इससे वे मरकर भरत के वर्द्धमानकुमार आदि पुत्र हुए। वे तप ग्रहण करके थोड़े ही काल में मोक्ष चले गये।
देखो जन्म/6/11 (सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक व निगोद को आदि लेकर सभी 34 प्रकार के तिर्यंच अनन्तर भव में मनुष्यपर्याय प्राप्त करके मुक्त हो सकते हैं, पर शलाकापुरुष नहीं बन सकते)।
ध./10/4,2,4,56/276/4 सुहुमणिगोदेहिंतो अण्णत्थ अणुप्पज्जिय मणुस्सेसु उप्पण्णस्स संजमासंजम-समत्ताणं चेव गाहणपाओग्गत्तुवलंभादो...ण सुहुमणिगोदहिंतो णिग्गयस्स सव्व लहुएण कालेण, संजमासंजमग्गहणाभावादो।=सूक्ष्म निगोद जीवों में से अन्यत्र न उत्पन्न होकर मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीव के संयमासंयम और सम्यक्त्व के ही ग्रहण की योग्यता पायी जाती है। सूक्ष्म निगोदों में से निकले हुए जीव के सर्वलघु काल द्वारा संयमासंयम का ग्रहण नहीं पाया जाता।
- कौनसी कषाय में मरा हुआ जीव कहां जन्मता है
ध./4/1,5,250/445/5 कोहेण मदो णिरयगदीए ण उप्पादे दव्वो, तत्थुप्पण्णजीवाणं पढमं कोधोदयस्सुवलंभा। माणेण मदो मणुसगदीए ण उप्पादे दव्वो, तत्थुप्पणाणं पढमसमए माणोदय णियमोवदेसा। मायाए मदो तिरिक्खगदीए ण उप्पादेदव्वो, तत्थुप्पणाणं पढमसमए मायोदय णियमोवदेसा। लोभेण मदो देवगदीये ण उप्पादेदव्वो, तत्थुप्पणाणं पढमं चेय लोहादओ होदि त्ति आइरियपरंपरागदुवदेसा। =क्रोध कषाय के साथ मरा हुआ जीव नरक गति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि नरकों में उत्पन्न होने वाले जीवों के सर्व प्रथम क्रोध कषाय का उदय पाया जाता है। मानकषाय से मरा हुआ जीव मनुष्य गति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीवों के प्रथम समय में मानकषाय के उदय का उपदेश देखा जाता है। माया कषाय से मरा हुआ जीव तिर्यग्गति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि तिर्यंचों के उत्पन्न होने के प्रथम समय में माया कषाय के उदय का नियम देखा जाता है। लोभकषाय से मरा हुआ जीव देवगति में नहीं (?) उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि उनमें उत्पन्न होने वाले जीवों के सर्वप्रथम लोभ कषाय का उदय होता है; ऐसा आचार्य परम्परागत उपदेश हैं।
देखो जन्म/6/11 (सभी प्रकार के सूक्ष्म या बादर तिर्यंच अनन्तर भव से मुक्ति के योग्य हैं।)
देखो कषाय/2/9 उपरोक्त कषायों के उदय का नियम कषायप्राभृत सिद्धान्त के अनुसार है, भूतबलि के अनुसार नहीं।
नोट–(उपरोक्त कथन में विरोध प्रतीत होता है। सर्वत्र ही ‘नहीं’ शब्द नहीं होना चाहिए ऐसा लगता है। शेष विचारज्ञ स्वयं विचार लें।)
- लेश्याओं में जन्म सम्बन्धी सामान्य नियम
गो.जी./भाषा/528/326/10 जिस गति सम्बन्धी पूर्वै आयु बान्धा होइ तिस ही गति विषै जो मरण होतै लेश्या होइ ताके अनुसारि उपजै है, जैसे मनुष्य के पूर्वै देवायु का बन्ध भया, बहुरि मरण होते कृष्णादि अशुभ लेश्या होइ तौ भवनत्रिक विषै ही उपजै है, ऐसे ही अन्यत्र जानना।
देखें सल्लेखना - 2.5 [जिस लेश्या सहित जीव का मरण होता है, उसी लेश्या सहित उसका जन्म होता है।]
- चरम शरीरियों का व रुद्र आदिकों का उपपाद चौथे काल में ही होता है
- गति-अगति चूलिका।
- तालिकाओं में प्रयुक्त संकेत
प.= |
पर्याप्त |
अप.= |
अपर्याप्त |
बा.= |
बादर |
सू.= |
सूक्ष्म |
सं.= |
संज्ञी |
असं.= |
असंज्ञी |
एके.= |
एकेन्द्रिय |
द्वी.= |
द्वीन्द्रिय |
त्री.= |
त्रीन्द्रिय |
चतु.= |
चतुरिन्द्रिय |
पं.= |
पंचेन्द्रिय |
पृ.= |
पृथिवी |
जल= |
अप् |
ते.= |
तेज |
वायु= |
वायु |
वन.= |
वनस्पति |
प्र.= |
प्रत्येक |
ति.= |
तिर्यंच |
मनु.= |
मनुष्य |
वि.= |
विकलेन्द्रिय |
ग.= |
गर्भज |
संख्य= |
संख्यातवर्षायुष्क अर्थात् कर्मभूमिज। |
असंख्य= |
असंख्यातवर्षायुष्क अर्थात् भोगभूमिज। |
सौ.= |
सौधर्म |
सौ.द्वि.= |
सौधर्म, ईशान स्वर्ग। |
- गुणस्थान से गति सामान्य
अर्थात्–किस गुणस्थान से मरकर किस गति में उत्पन्न हो सकता है और किसमें नहीं।
गुणस्थान |
*नरकगति |
तिर्यंच गति |
मनुष्यगति |
देव गति |
देखो |
||||
संख्या |
असंख्या |
संख्या |
असंख्या |
सामान्य |
विशेष |
||||
मिथ्या |
हां |
हां |
हां |
हां |
हां |
हां |
|
गो.जी./जी.प्र. 127/338 |
|
सासादन |
|
|
|||||||
दृष्टि.1 |
× |
× |
एके.,पृ.,अप.,प्र.वन, वि.सं.असं.पंचे. |
हां |
हां |
हां |
विशेष देखो आगे जन्म 6/3 |
जन्म/4 |
|
दृष्टि.2 |
× |
× |
सं.पंचे. |
हां |
हां |
× |
जन्म/4 |
||
मिश्र |
|
|
मरण का अभाव |
|
|
|
मरण/3 |
||
अविरत |
प्रथम नरक |
हां |
× |
हां |
हां |
हां |
जन्म/3 |
||
देशविरत |
× |
× |
× |
× |
× |
हां |
जन्म/5 |
||
प्रमत्त |
× |
× |
× |
× |
× |
हां |
|
||
7-12 |
|
|
मरण का अभाव |
|
|
|
|
- नरकगति की विशेष प्ररूपणा के लिए देखो आगे (जन्म/6/4)
- मनुष्य व तिर्यंचगति से चयकर देवगति में उत्पत्ति की विशेष प्ररूपणा
अर्थात्–किस भूमिका वाला मनुष्य या तिर्यंच किस प्रकार के देवों में उत्पन्न होता है।
गुणस्थान |
किस प्रकार का जीव |
मू.आ./1169-1177 |
ति.प./8/556-564 |
रा.वा./4/21/10/ 537/5 |
ह.पु./6/103-107 |
त्रि.सा./545-547 |
1 |
संज्ञी-सामान्य |
भ.,व्यन्तर |
भवनत्रिक (3/200) |
सहस्रार तक |
― |
― |
|
सं.प.ति. |
― |
सहस्रार तक |
सहस्रार तक |
― |
― |
|
असंख्या |
भवनत्रिक |
― |
भवनत्रिक |
― |
भवनत्रिक |
|
असंज्ञी |
भ.,व्यन्तर |
भवनत्रिक |
भ.,व्यन्तर |
― |
― |
|
निर्ग्रन्थ |
उपरि.ग्रैवे. |
उपरि.ग्रैवे. |
उपरि.ग्रैवे. |
उपरि.ग्रैवे. |
ग्रैवेयक |
|
दूषित चरित्री |
― |
अल्पऋद्धिक |
― |
― |
― |
|
क्रूरउन्मार्गी |
― |
अल्पऋद्धिक |
― |
― |
― |
|
सनिदान |
― |
अल्पऋद्धिक |
― |
― |
― |
|
मन्दकषायी |
― |
अल्पऋद्धिक |
― |
― |
― |
|
मधुरकषायी |
― |
अल्पऋद्धिक |
― |
― |
― |
|
चरक |
― |
भवन से ब्रह्म तक |
― |
― |
ब्रह्मोत्तर तक |
|
परिवाजक संन्यासी |
ब्रह्म तक |
भवन से ब्रह्म तक |
ब्रह्म तक |
ब्रह्म तक |
ब्रह्मोत्तर तक |
|
आजीवक |
सहस्रार तक |
भवन से अच्युत |
सहस्रार तक |
सहस्रार तक |
अच्युत तक |
|
तापस |
भवनत्रिक |
― |
भवनत्रिक |
ज्योतिषी तक |
भवनत्रिक |
2 |
ति.संख्य. |
जन्म/6/6 |
|
सहस्रार तक |
||
|
ति.असंख्य |
जन्म/6/6 |
भवनत्रिक |
भवनत्रिक |
||
|
मनु.संख्य |
जन्म/6/6 |
भवनत्रिक |
ग्रैवेयक तक |
||
|
मनु.असंख्य |
जन्म/6/6 |
भवनत्रिक |
भवनत्रिक |
||
3 |
सं.पं.ति. संख्य. |
जन्म/6/6 |
|
सौधर्म से अच्युत |
― |
अच्युत तक |
|
असंख्य ति |
देव जन्म/6/6 |
― |
सौधर्म-ईशान |
― |
सौधर्म-द्विक |
4 |
मनु. संख्य. |
देव जन्म/6/6 |
― |
― |
सर्वार्थसिद्धि तक |
|
|
मनु.असंख्य |
देव जन्म/6/6 |
― |
― |
सौधर्मद्विक तक |
|
5 |
पुरुष (श्रावक) |
अच्युत तक |
सौधर्म से अच्युत |
सौधर्म से अच्युत |
सौधर्म से अच्युत |
अच्युत कल्प |
|
स्त्री |
अच्युत तक |
अच्युत तक |
― |
― |
― |
6 |
सामान्य |
उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. |
उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. |
उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. |
उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. |
उ.ग्रै.से. सर्वार्थ सि. |
|
दशपूर्वधर |
― |
सौधर्म से सर्वार्थ |
सर्वार्थ सि. |
सर्वार्थ सि. |
सर्वार्थ सि. |
|
चतुर्दश पूर्वधर |
― |
लान्तव से सर्वार्थ |
― |
― |
― |
7 |
पुलाकवकुश आदि |
देखें साधु - 5 |
- नरकगति में उत्पत्ति की विशेष प्ररूपणा
(मू.आ./1153-1154); (ति.प./2/284-286); (रा.वा./3/6/7/168/15); (ह.पु./4/373-377); (त्रि.सा./205)।
अर्थात्–किस प्रकार का मनुष्य या तिर्यंच किस नरक में उपजै और उत्कृष्ट कितनी बार उपजै।
कौन जीव |
नरक |
उत्कृष्ट बार |
कौन जीव |
नरक |
उत्कृष्ट बार |
असं.पं.ति. |
1 |
8 |
भुजंगादि |
1-4 |
5 |
सरीसृप. |
1-2 |
7 |
सिंहादि |
1-5 |
4 |
(गोह, केर्कटा आदि) |
|
|
स्त्री |
1-6 |
3 |
पक्षी (भेरुण्ड आदि) |
1-3 |
6 |
मनुष्य व मत्स्य |
1-7 |
2 |
- गतियों में प्रवेश व निर्गमन सम्बन्धी गुणस्थान
अर्थात् –किस गति में कौन गुणस्थान सहित प्रवेश सम्भव है, तथा किस विवक्षित गुणस्थान सहित प्रवेश करने वाला जीव वहां से किस गुणस्थान सहित निकल सकता है। (ष.खं.6/1,9-9/सू.44-75/437-446); (रा.वा./3/6/7/168/18)।
सूत्र नं. |
गति विशेष |
सूत्र नं. |
प्रवेशकालीन गुण. |
निर्गमनकालीन गुण. |
|
नरक गति― |
|||
48 |
प्रथम |
44-46 |
1 |
1,2,4 |
|
|
47 |
4 |
4 |
49 |
1-6 |
49-51 |
1 |
1,2,4 |
52 |
7 |
49,52 |
1 |
1 |
|
तिर्यंच गति― |
|||
60 |
पं.ति. |
53-55 |
1 |
1,2,4 |
60 |
पं.ति.प. |
56-57 |
2 |
1,2,4 |
60 |
पं.ति.अप. |
57 |
4 |
4 |
61 |
पं.ति.योनिमति |
61-64 |
1 |
1,2,4 |
― |
पं.ति.योनिमति अप. |
पृ.444 |
1 |
1 |
|
मनुष्य गति― |
|||
66 |
मनुष्य सा. |
66-68 |
1 |
1,2,4 |
|
मनु.प. |
69-71 |
2 |
1,2,4 |
|
मनु.अप. |
72-74 |
4 |
1,2,4 |
61 |
मनुष्यणी |
61-63 |
1 |
1,2,4 |
64 |
2 |
1,4 |
||
|
देवगति― |
|||
61 |
भवनत्रिक |
61-63 |
1 |
1,2,4 |
|
देव देवियां सौधर्म की देवियां |
64 |
2 |
1,4 |
66 |
सौधर्म से ग्रैवेयक |
66-68 |
1 |
1,2,4 |
|
|
69-71 |
2 |
1,2,4 |
|
|
72-74 |
4 |
1,2,4 |
75 |
अनुदिश से सर्वार्थ. |
75 |
4 |
4 |
- गतिमार्गणा की अपेक्षा गति प्राप्ति
अर्थात्–कौन जीव किस गति से किस गुणस्थान सहित निकलकर किस गति में उत्पन्न होता है। (ष.खं.6/1,9-9/सूत्र76-202/437-484);
सूत्र नं. |
निर्गमन गति विशेष |
गुणस्थान |
प्राप्तव्य गति विशेष |
||||
सूत्र नं. |
नरक गति |
तिर्यंच गति |
मनुष्य गति |
देव गति |
|||
|
नरकगति―(रा.वा./3/6/7/168/23); (ह.पु./4/378); (त्रि.सा./203) |
||||||
92 |
1-6 |
1 |
76-85 |
× |
पं.सं.ग.पं.संख्या. |
ग.प.संख्या. |
× |
|
|
2 |
76-85 |
× |
पं.सं.ग.पं.संख्या. |
ग.प.संख्या. |
× |
|
|
3 |
मरण भाव (देखें मरण - 3) |
ग.प.संख्या. |
× |
||
|
|
4 |
88-91 |
× |
|
ग.प.संख्या. |
× |
93 |
7 |
1 |
94-99 |
× |
पं.सं.ग.पं.संख्या. |
× |
× |
(मू.आ./1156)–श्वापद, भुजंग, व्याघ्र, सिंह, सूकर, गीध आदि होते हैं, तथा–(ह.पु./4/378)–पुन: तीसरे भव में नरक जाता है। |
|||||||
|
तिर्यंच गति― |
||||||
101 |
सं.पं.प.संख्य. |
1 |
102-106 |
सर्व |
सर्व |
सर्व |
भवन से सहस्रार |
107 |
असं.पं.प. |
1 |
108-111 |
प्रथ. |
सर्व संख्य. |
सर्व संख्य. |
भवन से व्यन्तर |
112 |
पं.सं.असं.प.व अप. |
1 |
113-114 |
× |
सर्व संख्य. |
सर्व संख्य. |
× |
112 |
पृ.जल वन निगोद बा.सू.प.व अप. |
1 |
113-114 |
× |
सर्व संख्य. |
सर्व संख्य. |
× |
112 |
वन.बा.प्र.प.व अप. |
1 |
113-114 |
× |
सर्व संख्य. |
सर्व संख्य. |
× |
112 |
विकलत्रय |
1 |
113-114 |
× |
सर्व संख्य. |
सर्व संख्य. |
× |
115 |
तेज,वायु,बा.सू.प.व अप. |
1 |
116-117 |
× |
सर्व संख्य. |
× |
× |
118 |
सं.पं.प.संख्य. |
2 |
119-129 |
|
एके (पृ.जल,वन.प्र.बा.सू.) पं.सं.ग.प.संख्य. |
ग.प.संख्य. असंख्य. |
भवन से सहस्रार |
130 |
संख्य0 |
3 |
137 |
|
मरणाभाव |
(देखें मरण - 3) |
|
137 |
असंख्य0 |
3 |
137 |
|
मरणाभाव |
|
|
131 |
संख्य0 |
4-5 |
132-133 |
× |
× |
× |
सौ-अच्युत |
134 |
असंख्या0 |
1 |
135-136 |
× |
× |
× |
भवनत्रिक |
134 |
असंख्या0 |
2 |
135-136 |
× |
× |
× |
भवनत्रिक |
138 |
असंख्या0 |
4 |
139-140 |
× |
× |
× |
सौ0द्वि0 |
|
मनुष्यगति― |
|
|
|
|
|
|
141 |
संख्या0 |
1 |
142-146 |
सर्व |
सर्व |
सर्व |
ग्रैवेयक तक |
|
संख्या0प0 |
1 |
142-146 |
सर्व |
सर्व |
सर्व |
ग्रैवेयक तक |
147 |
संख्य0अप0 |
2 |
151-160 |
|
(एके (बा.पृ.जल,वन.प्र.प.) पं.स.ग.प. संख्य.व असंख्य. |
ग.प.संख्य. असंख्य. |
भवन से नव ग्रैवेयक तक |
161 |
संख्य0 |
3 |
162 |
― |
मरणाभाव |
(देखें मरण - 3)― |
|
163 |
संख्य0 |
4,6 |
164-165 |
× |
× |
× |
सौ.से सर्वार्थ. |
166 |
असंख्य0 |
1 |
167-168 |
× |
× |
× |
भवनत्रिक |
166 |
असंख्य0 |
2 |
167-168 |
× |
× |
× |
भवनत्रिक |
169 |
असंख्य0 |
3 |
169 |
― |
मरणाभाव |
(देखें मरण - 3)― |
|
170 |
असंख्य0 |
4 |
172-172 |
× |
× |
× |
सौ.द्वि. |
― |
कुमानुष |
― |
ति.प./4/2514-25-15–उपरोक्त असंख्यातवत्– |
||||
|
देवगति― |
||||||
190 |
भवनत्रिक |
|
178-183 |
× |
(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. |
ग.प.संख्य. |
× |
173 |
सौ.द्वि. |
1 |
178-183 |
× |
(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. |
ग.प.संख्य. |
× |
173 |
सौ.द्वि. |
2 |
178-183 |
× |
(एके (बा.पृ.जल,वन.) स.पं.ग.प. |
ग.प.संख्य. |
× |
184 |
सौ.द्वि. |
3 |
184 |
― |
मरणाभाव |
(देखें मरण - 3) |
|
185 |
सौ.द्वि. |
4 |
186-189 |
× |
× |
ग.प.संख्य. |
× |
191 |
सनत्कुमार से सहस्रार |
1 |
191 |
× |
पं.स.ग.प. संख्य. |
ग.प.संख्य. |
× |
191 |
सनत्कुमार से सहस्रार |
2 |
191 |
× |
पं.स.ग.प. संख्य. |
ग.प.संख्य. |
× |
191 |
सनत्कुमार से सहस्रार |
3 |
|
|
मरणाभाव |
(देखें मरण - 3)– |
|
191 |
सनत्कुमार से सहस्रार |
4 |
191 |
× |
पं.स.ग.प. संख्य. |
ग.प.संख्य. |
× |
192 |
आनत से नव ग्रैवेयक |
1 |
193-196 |
× |
× |
ग.प.संख्य. |
× |
|
आनत से नव ग्रैवेयक |
2 |
193-196 |
× |
× |
ग.प.संख्य. |
× |
197 |
आनत से नव ग्रैवेयक |
3 |
197 |
― |
मरणाभाव |
(देखें मरण - 3)– |
|
192 |
आनत से नव ग्रैवेयक |
4 |
193-196 |
× |
× |
ग.प.संख्य. |
× |
198 |
अनुदिश से सर्वार्थ सि. |
4 |
199-202 |
× |
× |
ग.प.संख्य. |
× |
- लेश्या की अपेक्षा गति प्राप्ति
अर्थात्–किस लेश्या से मरकर किस गति में उत्पन्न हो। (रा.वा./4/22/10/200/6) (गो.जी./मू./519-528/920-926)
निर्गमन लेश्यांश |
देवगति |
निर्गमन लेश्यांश |
नरकगति |
देव व तिर्यंच |
|
शुक्ल लेश्या– |
|
कृष्णलेश्या– |
|
उत्कृष्ट |
सर्वार्थ सिद्धि |
उत्कृष्ट |
7वीं पृ.के अप्रतिष्ठान इन्द्रक में |
|
मध्यम |
आनत से अपराजित |
|
|
|
जघन्य |
शुक्र से सहस्रार तक |
मध्यम |
छठी पृ.के प्रथम पटल से 7वीं के श्रेणी बद्ध तक |
भवनत्रिक यथायोग्य पांचों स्थावर |
|
पद्मलेश्या— |
|
|
|
उत्कृष्ट |
सहस्रार तक |
जघन्य |
5वीं पृ.के चरम पटल तक |
|
मध्यम |
ब्रह्म से शतार तक |
|
नीललेश्या– |
|
जघन्य |
सानत्कुमार माहेन्द्र तक |
उत्कृष्ट |
5वीं पृ.के द्विचरम पटल तक |
|
|
पीतलेश्या– |
मध्यम |
5वीं पृ.के तीसरे पटल से 3री पृ. के 2रे पटल तक |
यथायोग्य पांचों स्थावर |
उत्कृष्ट |
सानत्कुमार माहेन्द्र के चरम पटल तक |
जघन्य |
3री पृ. के 1ले पटल तक |
|
मध्यम |
सानत्कुमार माहेन्द्र के द्विचरम पटल तक तथा भवनत्रिक व यथायोग्य पांचों स्थावरों में |
|
कापोतलेश्या– |
|
उत्कृष्ट |
3री पृ.के चरम पटल में |
|
||
जघन्य |
सौधर्मद्विक के 1ले पटल तक |
मध्यम |
3री पृ.के द्विचरम पटल से 1ली पृ.के 3रे पटल तक |
भवनत्रिक यथायोग्य पांचों स्थावर |
|
|
जघन्य |
1ली पृ.के 1ले पटल तक |
|
- संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति
अर्थात्–किस संहनन से मरकर किस गति तक उत्पन्न होना सम्भव है। (गो.क./मू./29-31/24) (गो.क./जी.प्र./549/725/14)
संकेत–- वज्रऋषभनाराच;
- वज्रनाराच;
- नाराच;
- अर्धनाराच;
- कीलित;
- सृपाटिका।
संहनन |
प्राप्तव्य स्वर्ग |
संहनन |
विशेष |
प्राप्तव्य नरक पृ. |
1 |
पंच अनुत्तर तक |
1 |
मनु व मत्स्य |
7वीं पृ.तक |
1,2 |
नव अनुदिश तक |
1-4 |
स्त्री+उपरोक्त |
6ठी पृ. तक |
1,2,3 |
नव ग्रैवेयक तक |
1-5 |
सिंह+उपरोक्त सर्व |
5वीं पृ.तक |
1,2,3,4 |
अच्युत तक |
1-5 |
भुजंग+उपरोक्त सर्व |
4थीं पृ.तक |
1-5 |
सहस्रार तक |
1-6 |
पक्षी+उपरोक्त सभी |
3री पृ.तक |
1-6 |
सौधर्म से कापिष्ठ |
1-6 |
सरीसृप+उपरोक्त सभी |
2री पृ.तक |
1-6 |
असंज्ञी+उपरोक्त सभी |
1ली पृ.तक |
- शलाका पुरुषों की अपेक्षा गति प्राप्ति
अर्थात्–शलाका पुरुष कौन गति नियम से प्राप्त करते हैं–(ति.प./4/गा.नं.)।
1423―प्रतिनारायण |
=नरकगति। |
1436―नारायण |
=नरकगति। |
1436―बलदेव |
=स्वर्ग व मोक्ष। |
1442―रुद्र |
=नरकगति। |
1470―नारद |
=नरकगति। |
- नरकगति में पुन: पुनर्भव धारण की सीमा
ध./7/2,2,27/127/11 देव णेरइयाणं भोगभूमितिरिक्खमणुस्साणं च मुदाणं पुणो तत्थे वाणंतरमुप्पत्तीए अभावादो। =देव, नारकी, भोगभूमिज तिर्यंच और भोगभूमिज मनुष्य, इनके मरने पर पुन: उसी पर्याय में उत्पत्ति नहीं पायी जाती, क्योंकि, इसका अत्यन्त अभाव है। नोट–परन्तु बीच में एक-एक अन्य भव धारण करके पुन: उसी पर्याय में उत्पन्न होना सम्भव है। वह उत्कृष्ट कितनी बार होना सम्भव है, वही बात निम्न तालिका में बतायी जाती है।
प्रमाण–ति.प./2/286-287; रा.वा./3/6/7/168/12 वें (इसमें केवल अन्तर निरन्तर भव नहीं); ह.पु./4/371,375-377; त्रि.सा./205-206―
नरक |
कितनी बार |
उत्कृष्ट अन्तर |
प्रथम पृ. |
8 बार |
24 मुहूर्त |
द्वि.पृ. |
7 बार |
7 दिन |
तृ.पृ. |
6 बार |
1 पक्ष |
चतु.पृ. |
5 बार |
1 मास |
पंचम पृ. |
4 बार |
2 मास |
षष्ठ पृ. |
3 बार |
4 मास |
सप्तम पृ. |
2 बार |
6 मास |
पेज नं. 322 का चार्ट