जिनालय: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> जिन-मन्दिर । ये दो प्रकार के होते हैं― कृत्रिम और अकृत्रिम । मनुष्यों द्वारा निर्मित मन्दिर कृत्रिम होते हैं । अकृत्रिम चैत्यालय अनादि निधन और सदैव प्रकाशित होते हैं । ये देवों से पूजित होते हैं । इनमें मानस्तम्भों की रचना भी होती है । अपरनाम जिनायतन । महापुराण 5.190, हरिवंशपुराण 19.115</p> | <p> जिन-मन्दिर । ये दो प्रकार के होते हैं― कृत्रिम और अकृत्रिम । मनुष्यों द्वारा निर्मित मन्दिर कृत्रिम होते हैं । अकृत्रिम चैत्यालय अनादि निधन और सदैव प्रकाशित होते हैं । ये देवों से पूजित होते हैं । इनमें मानस्तम्भों की रचना भी होती है । अपरनाम जिनायतन । <span class="GRef"> महापुराण 5.190, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.115 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ जिनस्तुति शतक | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ जिनेंद्र बुद्धि | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ज]] | [[Category: ज]] |
Revision as of 21:41, 5 July 2020
जिन-मन्दिर । ये दो प्रकार के होते हैं― कृत्रिम और अकृत्रिम । मनुष्यों द्वारा निर्मित मन्दिर कृत्रिम होते हैं । अकृत्रिम चैत्यालय अनादि निधन और सदैव प्रकाशित होते हैं । ये देवों से पूजित होते हैं । इनमें मानस्तम्भों की रचना भी होती है । अपरनाम जिनायतन । महापुराण 5.190, हरिवंशपुराण 19.115