देवदत्त: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) हरिवंश में हुए राजा अमर का पुत्र । हरिवंशपुराण 17.33</p> | <p id="1"> (1) हरिवंश में हुए राजा अमर का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.33 </span></p> | ||
<p id="2">(2) कृष्ण का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.71</p> | <p id="2">(2) कृष्ण का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.71 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अर्जुन का शंख । हरिवंशपुराण 51. 20, पांडवपुराण 21. 127</p> | <p id="3">(3) अर्जुन का शंख । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 51. 20, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 21. 127 </span></p> | ||
<p id="4">(4) जरासन्ध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.36</p> | <p id="4">(4) जरासन्ध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.36 </span></p> | ||
<p id="5">(5) वसुदेव और देवकी का पुत्र । यह युगल रूप में उत्पन्न हुआ था । इसने अन्त में मुनि-दीक्षा ग्रहण कर ली थी । महापुराण 71. 295 देखें [[ देवकी ]]</p> | <p id="5">(5) वसुदेव और देवकी का पुत्र । यह युगल रूप में उत्पन्न हुआ था । इसने अन्त में मुनि-दीक्षा ग्रहण कर ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 71. 295 </span>देखें [[ देवकी ]]</p> | ||
<p id="6">(6) विद्याधर कालसंवर को शिखा के नीचे अंगों को हिलाता हुआ प्राप्त एक शिशु (प्रद्युम्न) । विद्याधरी कांचनमाला के कहने पर विद्याधर ने इसे युवराज पद देकर उत्सव पूर्वक इस नाम से सम्बोधित किया था । महापुराण 72.54-60</p> | <p id="6">(6) विद्याधर कालसंवर को शिखा के नीचे अंगों को हिलाता हुआ प्राप्त एक शिशु (प्रद्युम्न) । विद्याधरी कांचनमाला के कहने पर विद्याधर ने इसे युवराज पद देकर उत्सव पूर्वक इस नाम से सम्बोधित किया था । <span class="GRef"> महापुराण 72.54-60 </span></p> | ||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
(1) हरिवंश में हुए राजा अमर का पुत्र । हरिवंशपुराण 17.33
(2) कृष्ण का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.71
(3) अर्जुन का शंख । हरिवंशपुराण 51. 20, पांडवपुराण 21. 127
(4) जरासन्ध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.36
(5) वसुदेव और देवकी का पुत्र । यह युगल रूप में उत्पन्न हुआ था । इसने अन्त में मुनि-दीक्षा ग्रहण कर ली थी । महापुराण 71. 295 देखें देवकी
(6) विद्याधर कालसंवर को शिखा के नीचे अंगों को हिलाता हुआ प्राप्त एक शिशु (प्रद्युम्न) । विद्याधरी कांचनमाला के कहने पर विद्याधर ने इसे युवराज पद देकर उत्सव पूर्वक इस नाम से सम्बोधित किया था । महापुराण 72.54-60