नंदिवर्द्धन: Difference between revisions
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<p id="2">(2) एक चारणऋद्धिधारी मुनि । महापुराण 71. 403 देखें [[ नन्दिभद्र ]]</p> | <p id="2">(2) एक चारणऋद्धिधारी मुनि । <span class="GRef"> महापुराण </span>71. 403 देखें [[ नन्दिभद्र ]]</p> | ||
<p id="3">(3) छत्रपुर नगर का राजा । महापुराण 74.242-243, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.134-146</p> | <p id="3">(3) छत्रपुर नगर का राजा । <span class="GRef"> महापुराण </span>74.242-243, <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.134-146 </span></p> | ||
<p id="4">(4) विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा मेघरथ और उसकी रानी प्रियमित्रा का पुत्र । महापुराण 63. 142-143, 147-148, पांडवपुराण 5.57</p> | <p id="4">(4) विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा मेघरथ और उसकी रानी प्रियमित्रा का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण </span>63. 142-143, 147-148, <span class="GRef"> पांडवपुराण 5.57 </span></p> | ||
<p id="5">(5) जम्बूद्वीप के मगधदेश का एक नगर । शालिग्राम के अग्निभूति और वायुभूति ने इस नगर के नन्दिघोष वन में सत्यक मुनि से वाद किया था । महापुराण 723-14</p> | <p id="5">(5) जम्बूद्वीप के मगधदेश का एक नगर । शालिग्राम के अग्निभूति और वायुभूति ने इस नगर के नन्दिघोष वन में सत्यक मुनि से वाद किया था । <span class="GRef"> महापुराण </span>723-14</p> | ||
<p id="6">(6) शशांकनगर का राजा । मृदुमति चोर ने इस नृप और इसकी रानी के बीच विषयों के सम्बन्ध में हुए वार्तालाप को सुनकर दीक्षा धारण कर ली थी । पद्मपुराण 85.133-137</p> | <p id="6">(6) शशांकनगर का राजा । मृदुमति चोर ने इस नृप और इसकी रानी के बीच विषयों के सम्बन्ध में हुए वार्तालाप को सुनकर दीक्षा धारण कर ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 85.133-137 </span></p> | ||
<p id="7">(7) पुष्कलावती नगरी के राजा नन्दिघोष और रानी वसुधा का पुत्र । यह गृहस्थधर्म धारण कर नमस्कार मंत्र की आराधना करते हुए एक करोड़ पूर्व तक महाभोगों को भोगता हुआ संन्यास के साथ शरीर छोड़कर पंचम स्वर्ग गया था । वहाँ से च्युत होकर इसी विदेहक्षेत्र में सुमेरु पर्वत के | <p id="7">(7) पुष्कलावती नगरी के राजा नन्दिघोष और रानी वसुधा का पुत्र । यह गृहस्थधर्म धारण कर नमस्कार मंत्र की आराधना करते हुए एक करोड़ पूर्व तक महाभोगों को भोगता हुआ संन्यास के साथ शरीर छोड़कर पंचम स्वर्ग गया था । वहाँ से च्युत होकर इसी विदेहक्षेत्र में सुमेरु पर्वत के पश्चिम की ओर विजयार्ध पर्वत पर स्थित शशिपुर नगर में राजा रत्नमाली और रानी विद्युल्लता का सूर्यंजय नाम का पुत्र हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 31.30-35 </span></p> | ||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
(1) श्रुत के पारगामी एक आचार्य । ये अवधिज्ञानी थे । इन्होंने अग्निभूति और वायुभूति को पूर्व जन्म में वे दोनों शृंगाल थे ऐसा कहा था । इससे वे दोनों कुपित हुए और उन्होंने निर्जन वन में प्रतिमायोग में इन्हें ध्यानस्थ देखकर वैरवश तलवार से मारना चाहा था किन्तु एक यक्ष ने मारने के पूर्व ही उन्हें कील कर उनके द्वारा किये उपसर्ग से इनकी रक्षा की थी । अग्निभूति और वायुभूति दोनों उनके माता-पिता के निवेदन करने पर इनका संकेत पाकर ही यक्ष द्वारा मुक्त हुए थे । महापुराण में यह उपसर्ग मुनि सत्यक के ऊपर किया गया कहा है । महापुराण 72.3-22, पद्मपुराण 109.37-123, हरिवंशपुराण 43. 104
(2) एक चारणऋद्धिधारी मुनि । महापुराण 71. 403 देखें नन्दिभद्र
(3) छत्रपुर नगर का राजा । महापुराण 74.242-243, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.134-146
(4) विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा मेघरथ और उसकी रानी प्रियमित्रा का पुत्र । महापुराण 63. 142-143, 147-148, पांडवपुराण 5.57
(5) जम्बूद्वीप के मगधदेश का एक नगर । शालिग्राम के अग्निभूति और वायुभूति ने इस नगर के नन्दिघोष वन में सत्यक मुनि से वाद किया था । महापुराण 723-14
(6) शशांकनगर का राजा । मृदुमति चोर ने इस नृप और इसकी रानी के बीच विषयों के सम्बन्ध में हुए वार्तालाप को सुनकर दीक्षा धारण कर ली थी । पद्मपुराण 85.133-137
(7) पुष्कलावती नगरी के राजा नन्दिघोष और रानी वसुधा का पुत्र । यह गृहस्थधर्म धारण कर नमस्कार मंत्र की आराधना करते हुए एक करोड़ पूर्व तक महाभोगों को भोगता हुआ संन्यास के साथ शरीर छोड़कर पंचम स्वर्ग गया था । वहाँ से च्युत होकर इसी विदेहक्षेत्र में सुमेरु पर्वत के पश्चिम की ओर विजयार्ध पर्वत पर स्थित शशिपुर नगर में राजा रत्नमाली और रानी विद्युल्लता का सूर्यंजय नाम का पुत्र हुआ । पद्मपुराण 31.30-35