नलदियार: Difference between revisions
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तामिल भाषा का 8000 पद्य प्रमाण एक ग्रन्थ था, जिसे ई0पू0365-355 में विशाखाचार्य तथा उनके 8000 शिष्यों ने एक रात में रचा था। इसके लिए यह दन्तकथा प्रसिद्ध है कि–बारह वर्षीय दुर्भिक्ष में जब आ.भद्रबाहु का संघ दक्षिण देश में चला गया तो पाण्डयनरेश का उन साधुओं के गुणों से बहुत स्नेह हो गया। दुर्भिक्ष समाप्त होने पर जब विशाखाचार्य पुन: उज्जैनी की ओर लौटने लगे तो पाण्डयनरेश ने उन्हें स्नेहवश रोकना चाहा। तब आचार्यप्रवर ने अपने दस दस शिष्यों को दस दस श्लोकों में अपने जीवन के अनुभव निबद्ध करने की आज्ञा दी। उनके 8000 शिष्य थे, जिन्होंने एक रात में ही अपने अनुभव गाथाओं में गूंथ दिये और सवेरा होते तक 8000 श्लोक प्रमाण एक ग्रन्थ तैयार हो गया। आचार्य इस ग्रन्थ को नदी किनारे छोड़कर विहार कर गये। राजा उनके विहार का समाचार जानकर बहुत बिगड़ा और क्रोधवश वे सब गाथाएं नदी में फिंकवा दी। परन्तु नदी का प्रवाह उलटा हो जाने के कारण उनमें से 400 पत्र किनारे पर आ लगे। क्रोध शान्त होने पर राजा ने वे पत्र इकट्ठे करा लिये, और इस प्रकार ग्रन्थ 8000 श्लोक से केवल 400 श्लोक प्रमाण रह गया। इसी ग्रन्थ का नाम पीछे नलदियार पड़ा। | |||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
तामिल भाषा का 8000 पद्य प्रमाण एक ग्रन्थ था, जिसे ई0पू0365-355 में विशाखाचार्य तथा उनके 8000 शिष्यों ने एक रात में रचा था। इसके लिए यह दन्तकथा प्रसिद्ध है कि–बारह वर्षीय दुर्भिक्ष में जब आ.भद्रबाहु का संघ दक्षिण देश में चला गया तो पाण्डयनरेश का उन साधुओं के गुणों से बहुत स्नेह हो गया। दुर्भिक्ष समाप्त होने पर जब विशाखाचार्य पुन: उज्जैनी की ओर लौटने लगे तो पाण्डयनरेश ने उन्हें स्नेहवश रोकना चाहा। तब आचार्यप्रवर ने अपने दस दस शिष्यों को दस दस श्लोकों में अपने जीवन के अनुभव निबद्ध करने की आज्ञा दी। उनके 8000 शिष्य थे, जिन्होंने एक रात में ही अपने अनुभव गाथाओं में गूंथ दिये और सवेरा होते तक 8000 श्लोक प्रमाण एक ग्रन्थ तैयार हो गया। आचार्य इस ग्रन्थ को नदी किनारे छोड़कर विहार कर गये। राजा उनके विहार का समाचार जानकर बहुत बिगड़ा और क्रोधवश वे सब गाथाएं नदी में फिंकवा दी। परन्तु नदी का प्रवाह उलटा हो जाने के कारण उनमें से 400 पत्र किनारे पर आ लगे। क्रोध शान्त होने पर राजा ने वे पत्र इकट्ठे करा लिये, और इस प्रकार ग्रन्थ 8000 श्लोक से केवल 400 श्लोक प्रमाण रह गया। इसी ग्रन्थ का नाम पीछे नलदियार पड़ा।