नागश्री: Difference between revisions
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―(पा.पु./सर्ग/श्लोक नं.) अग्निभूति ब्राह्मण की पुत्री थी। सोमभूति के साथ विवाही गयी (23/79-82)। मिथ्यात्व की तीव्रता वश। (23/88) एक बार मुनियों को विष मिश्रित आहार कराया। (23/103)। फलस्वरूप कुष्ठरोग हो गया और मरकर नरक में गयी। (24/2-6)। यह द्रोपदी का दूरवर्ती पूर्वभव है।–देखें [[ द्रौपदी ]]। | |||
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<p id="1"> (1) दुर्मर्षण की पुत्री, भवदेव की पत्नी । भवदेव उसे छोड़कर अपने बड़े भाई भगदत्त मुनि के उपदेश से मुनि हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 76.152-157 </span>देखें [[ नागवसु ]]</p> | |||
<p id="2">(2) भरतक्षेत्र में अंगदेव की चम्पापुरी के निवासी बाह्मण अग्निभूति और उसकी पत्नी अग्निला की छोटी पुत्री । यह धनश्री और मित्रश्री की छोटी बहिन थी । ये तीनों बहिनें क्रमश अपने ही नगर में फुफेरे भाई सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति से विवाही गयी थी । सोमदत्त ने धर्मरुचि मुनि को पड़गाहकर इसे आहार कराने के लिए कहा था । कुपित होकर इसने मुनि को विष मिश्रित आहार दिया । उसके इस कृत्य से तीनों भाई बहुत दु:खी हुए और संसार से विरक्त होकर वरुण गुरु के समीप दीक्षित हो गये । इसकी दोनों बहिनें भी आर्यिका हो गयी । पाप के कारण यह मरकर पाँचवें नरक में उत्पन्न हुई । इसके पश्चात् यह क्रमश: दृष्टिविष सर्प, चम्पापुरी में चाण्डाली, सुकुमारी और अन्त मे द्रौपदी हुई । <span class="GRef"> महापुराण 72.227-263, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 64.4-139, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 23.81-86, 103, 24.2-78 </span></p> | |||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == ―(पा.पु./सर्ग/श्लोक नं.) अग्निभूति ब्राह्मण की पुत्री थी। सोमभूति के साथ विवाही गयी (23/79-82)। मिथ्यात्व की तीव्रता वश। (23/88) एक बार मुनियों को विष मिश्रित आहार कराया। (23/103)। फलस्वरूप कुष्ठरोग हो गया और मरकर नरक में गयी। (24/2-6)। यह द्रोपदी का दूरवर्ती पूर्वभव है।–देखें द्रौपदी ।
पुराणकोष से
(1) दुर्मर्षण की पुत्री, भवदेव की पत्नी । भवदेव उसे छोड़कर अपने बड़े भाई भगदत्त मुनि के उपदेश से मुनि हो गया था । महापुराण 76.152-157 देखें नागवसु
(2) भरतक्षेत्र में अंगदेव की चम्पापुरी के निवासी बाह्मण अग्निभूति और उसकी पत्नी अग्निला की छोटी पुत्री । यह धनश्री और मित्रश्री की छोटी बहिन थी । ये तीनों बहिनें क्रमश अपने ही नगर में फुफेरे भाई सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति से विवाही गयी थी । सोमदत्त ने धर्मरुचि मुनि को पड़गाहकर इसे आहार कराने के लिए कहा था । कुपित होकर इसने मुनि को विष मिश्रित आहार दिया । उसके इस कृत्य से तीनों भाई बहुत दु:खी हुए और संसार से विरक्त होकर वरुण गुरु के समीप दीक्षित हो गये । इसकी दोनों बहिनें भी आर्यिका हो गयी । पाप के कारण यह मरकर पाँचवें नरक में उत्पन्न हुई । इसके पश्चात् यह क्रमश: दृष्टिविष सर्प, चम्पापुरी में चाण्डाली, सुकुमारी और अन्त मे द्रौपदी हुई । महापुराण 72.227-263, हरिवंशपुराण 64.4-139, पांडवपुराण 23.81-86, 103, 24.2-78