निबंधन: Difference between revisions
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<li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText"> | <li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText">निबन्धन</span></strong> <br>स.सि./1/26/133/7–<span class="SanskritText">निबन्धनं निबन्ध:।</span> =<span class="HindiText">निबन्धन शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है जोड़ना, सम्बन्ध करना। (</span>रा.वा./1/26/.../87/8)। ध.15/1/10 <span class="PrakritText">निबध्यते तदस्मिन्निति निबन्धनम्, जं दव्वं जाम्ह णिबद्धं तं णिबंधणं ति भणिदं होदि। </span>=<span class="HindiText">’निबध्यते तदस्मिन्निति निबन्धनम्’ इस निरुक्ति के अनुसार जो द्रव्य जिसमें सम्बद्ध है उसे निबन्धन कहा जाता है। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> द्रव्य क्षेत्रादि निबन्धन</strong> </span><br>ध.15/2/10 <span class="PrakritText">जं दव्वं जाणि दव्वाणि अस्सिदूण परिणमदि जस्स वा दव्वस्स सहावो दव्वंतरपडिबद्धो तं दव्वणिबंधणं। खेत्तणिबंधणं णाम गामणयरादीणि, पडिणियदखेत्ते तेसिं पडिबद्धत्तुवलंभादो। जो जम्हि काले पडिबद्धो अत्थो तक्कालणिबंधणं। तं जहा–चुअफुल्लाणि चेत्तमासणिक्द्धाणि ...तत्थेव तेसिमुवलंभादो। ...पंचरत्तियाओ णिबंधो त्ति वा। जं दव्वं भावस्स आलंबणमाहारो होदि तं भावणिबंधणं। जहा लोहस्स हिरण्णसुवण्णादीणि णिबंधणं, ताणि अस्सिऊण तदुप्पत्तिदंसणादो, उप्पण्णस्स वि लोहस्स तदावलंबणदंसणादो।</span> =<span class="HindiText">जो द्रव्य जिन द्रव्यों का आश्रय करके परिणमन करता है, अथवा जिस द्रव्य का स्वभाव द्रव्यान्तर से प्रतिबद्ध है वह द्रव्यनिबन्धन कहलाता है। ग्राम व नगर आदि क्षेत्रनिबन्धन हैं; क्योंकि, प्रतिनियत क्षेत्र में उनका सम्बन्ध पाया जाता है। जो अर्थ जिस काल में प्रतिबद्ध है वह काल निबन्धन कहा जाता है। यथा–आम्र वृक्ष के फूल चैत्र मास से सम्बद्ध हैं...क्योंकि वे इन्हीं मासों में पाये जाते हैं। अथवा पंचरात्रिक निबन्धन कालनिबन्धन है (?)। जो द्रव्य भाव का अवलंबन अर्थात् आधार होता है, वह भाव निबन्धन होता है। जैसे–लोभ के चांदी, सोना आदिक हैं; क्योंकि, उनका आश्रय करके लोभ की उत्पत्ति देखी जाती है, तथा उत्पन्न हुआ लोभ भी उनका आलम्बन देखा जाता है।</span></li> | ||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
- निबन्धन
स.सि./1/26/133/7–निबन्धनं निबन्ध:। =निबन्धन शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है जोड़ना, सम्बन्ध करना। (रा.वा./1/26/.../87/8)। ध.15/1/10 निबध्यते तदस्मिन्निति निबन्धनम्, जं दव्वं जाम्ह णिबद्धं तं णिबंधणं ति भणिदं होदि। =’निबध्यते तदस्मिन्निति निबन्धनम्’ इस निरुक्ति के अनुसार जो द्रव्य जिसमें सम्बद्ध है उसे निबन्धन कहा जाता है। - द्रव्य क्षेत्रादि निबन्धन
ध.15/2/10 जं दव्वं जाणि दव्वाणि अस्सिदूण परिणमदि जस्स वा दव्वस्स सहावो दव्वंतरपडिबद्धो तं दव्वणिबंधणं। खेत्तणिबंधणं णाम गामणयरादीणि, पडिणियदखेत्ते तेसिं पडिबद्धत्तुवलंभादो। जो जम्हि काले पडिबद्धो अत्थो तक्कालणिबंधणं। तं जहा–चुअफुल्लाणि चेत्तमासणिक्द्धाणि ...तत्थेव तेसिमुवलंभादो। ...पंचरत्तियाओ णिबंधो त्ति वा। जं दव्वं भावस्स आलंबणमाहारो होदि तं भावणिबंधणं। जहा लोहस्स हिरण्णसुवण्णादीणि णिबंधणं, ताणि अस्सिऊण तदुप्पत्तिदंसणादो, उप्पण्णस्स वि लोहस्स तदावलंबणदंसणादो। =जो द्रव्य जिन द्रव्यों का आश्रय करके परिणमन करता है, अथवा जिस द्रव्य का स्वभाव द्रव्यान्तर से प्रतिबद्ध है वह द्रव्यनिबन्धन कहलाता है। ग्राम व नगर आदि क्षेत्रनिबन्धन हैं; क्योंकि, प्रतिनियत क्षेत्र में उनका सम्बन्ध पाया जाता है। जो अर्थ जिस काल में प्रतिबद्ध है वह काल निबन्धन कहा जाता है। यथा–आम्र वृक्ष के फूल चैत्र मास से सम्बद्ध हैं...क्योंकि वे इन्हीं मासों में पाये जाते हैं। अथवा पंचरात्रिक निबन्धन कालनिबन्धन है (?)। जो द्रव्य भाव का अवलंबन अर्थात् आधार होता है, वह भाव निबन्धन होता है। जैसे–लोभ के चांदी, सोना आदिक हैं; क्योंकि, उनका आश्रय करके लोभ की उत्पत्ति देखी जाती है, तथा उत्पन्न हुआ लोभ भी उनका आलम्बन देखा जाता है।