पात्रकेसरी: Difference between revisions
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<li> आप ब्राह्माण कुल से थे। न्यायशास्त्र में पारंगत थे। आचार्य विद्यानन्दि की भाँति आप भी समन्तभद्र रचित देवागमस्तोत्र सुनने से ही जैनानुयायी हो गये थे। आपने त्रिलक्षण कदर्थन, तथा जिनेन्द्रगुणस्तुति (पात्रकेसरी स्तोत्र) ये दो ग्रन्थ लिखे। समय-पूज्यपाद के उत्तरवर्ती और अकलंकदेव से पूर्ववर्ती हैं - ई.श. | <ol> | ||
<li> श्लोकवार्तिककार आ. विद्यानन्दि (ई. | <li> आप ब्राह्माण कुल से थे। न्यायशास्त्र में पारंगत थे। आचार्य विद्यानन्दि की भाँति आप भी समन्तभद्र रचित देवागमस्तोत्र सुनने से ही जैनानुयायी हो गये थे। आपने त्रिलक्षण कदर्थन, तथा जिनेन्द्रगुणस्तुति (पात्रकेसरी स्तोत्र) ये दो ग्रन्थ लिखे। समय-पूज्यपाद के उत्तरवर्ती और अकलंकदेव से पूर्ववर्ती हैं - ई.श. 6 (देखें [[ इतिहास#7.1 | इतिहास - 7.1]]); (ती./2/238-240)। </li> | ||
</ol | <li> श्लोकवार्तिककार आ. विद्यानन्दि (ई.775-840) की उपाधि। (देखें [[ विद्यानन्दि ]])। (जैन हितैषी, पं. नाथूराम)। </li> | ||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- आप ब्राह्माण कुल से थे। न्यायशास्त्र में पारंगत थे। आचार्य विद्यानन्दि की भाँति आप भी समन्तभद्र रचित देवागमस्तोत्र सुनने से ही जैनानुयायी हो गये थे। आपने त्रिलक्षण कदर्थन, तथा जिनेन्द्रगुणस्तुति (पात्रकेसरी स्तोत्र) ये दो ग्रन्थ लिखे। समय-पूज्यपाद के उत्तरवर्ती और अकलंकदेव से पूर्ववर्ती हैं - ई.श. 6 (देखें इतिहास - 7.1); (ती./2/238-240)।
- श्लोकवार्तिककार आ. विद्यानन्दि (ई.775-840) की उपाधि। (देखें विद्यानन्दि )। (जैन हितैषी, पं. नाथूराम)।
पुराणकोष से
जिनसेन के पूर्ववर्ती एक आचार्य । महापुराण में कवि ने भट्टाकलंक और श्रीपाल के बाद इनका स्मरण किया है । महापुराण 1. 53