पिहितास्रव: Difference between revisions
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<li> बुद्धकीर्ति (महात्मा बुद्ध) के गुरु थे। पार्श्वनाथ भगवान् की परम्परा में दिगम्बराचार्य थे। (द.सा./प्रशस्ति/ | <li>पद्मप्रभ भगवान् के पूर्व भव के गुरु (ह.पु./60/159) </li> | ||
</ol | <li> बुद्धकीर्ति (महात्मा बुद्ध) के गुरु थे। पार्श्वनाथ भगवान् की परम्परा में दिगम्बराचार्य थे। (द.सा./प्रशस्ति/26 पं. नाथूराम प्रेमी) इनके शिष्य बुद्धकीर्ति ने बौद्धधर्म चलाया था (द.सा./मू./6-7)। </li> | ||
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<p id="5">(5) पाण्डवों और बलराम के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पांडवपुराण 22.99 </span></p> | |||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- (ह.पु./27/8) एक दिगम्बर आचार्य;
- एक जैन मुनि (ह.पु./27/93)।
- पद्मप्रभ भगवान् के पूर्व भव के गुरु (ह.पु./60/159)
- बुद्धकीर्ति (महात्मा बुद्ध) के गुरु थे। पार्श्वनाथ भगवान् की परम्परा में दिगम्बराचार्य थे। (द.सा./प्रशस्ति/26 पं. नाथूराम प्रेमी) इनके शिष्य बुद्धकीर्ति ने बौद्धधर्म चलाया था (द.सा./मू./6-7)।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर पद्मप्रभ तथा सुपार्श्वनाथ के पूर्वभव के गुरु । पद्मपुराण 20.25-30, हरिवंशपुराण 60.159
(2) वैजयन्त तथा उनके दोनों पुत्र संजयन्त और जयन्त मुनियों के साथ वि हरिवंशपुराण णशील आचार्य । हरिवंशपुराण 27.5-8.93
(3) अयोध्या के राजा जयवर्मा और रानी सुप्रभा के अजितंजय नामक पुत्र । अगिनन्दन स्वामी की वन्दना करते हुए इनका पापास्रव रुक गया था । इसी से इसका नाम पिहितास्रव हो गया । मन्दिरस्थविर मुनि से ये दीक्षित होकर केवली हुए । चारणचरित वन के अम्बरतिलक पर्वत पर इन्होंने निर्नामा का उसके पूर्वभव की बात बताकर भविष्य सुधारने के लिए जिनेन्द्र गुणसम्पत्ति और श्रुतज्ञानव्रत करने का उपदेश दिया था । महापुराण 6.127-141, 202-203, 7.52,96 प्रभाकरी नगरी के राजा प्रीतिवर्धन ने भी इनको आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 8.202-203 सुसीमा नगर का राजा अपराजित भी इन्हीं से दीक्षित हुआ था । महापुराण 52.3, 13,59.244
(4) विजयभद्र प्रजापति ओर सहस्रायुध के दीक्षागुरु । महापुराण 62. 77, 154, 63.169
(5) पाण्डवों और बलराम के दीक्षागुरु । पांडवपुराण 22.99