प्रकरणसम हेत्वाभास: Difference between revisions
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<p>न्या.सू./सू. व टी./ | <p>न्या.सू./सू. व टी./1/2/7/46 <span class="SanskritText">यस्मात्प्रकरणचिन्ता स निर्णयार्थमपदिष्टः प्रकरणसमः। 7। प्रज्ञापनं त्वनित्यः शब्दो नित्यधर्मानुपलब्धेरित्यनु-पलभ्यमान... सोऽयमहेतुरुभौ पक्षौ प्रवर्तयन्नन्यतरस्य निर्णयाय प्रकल्पते।</span> = <span class="HindiText">विचार के आश्रय अनिश्चित पक्ष और प्रतिपक्ष को प्रकरणसम कहते हैं। 7। जैसे - किसी ने कहा कि ‘शब्द अनित्य है, नित्यधर्म के ज्ञान न होने से’ यह प्रकरणसम है। इससे दो पक्षों में से किसी पक्ष का भी निर्णय नहीं हो सकता। ...जो दो धर्मों में एक का भी ज्ञान होता कि शब्द अनित्य है कि नित्य। तो यह विचार ही क्यों प्रवृत्त होता। (श्लो.वा.4/न्या./पु. 4/273/426/19)। </span><br /> | ||
न्या. दी./ | न्या. दी./3§40/87/6 <span class="SanskritText">प्रतिसाधनप्रतिरुद्धो हेतुः प्रकरणसमः। यथा... अनित्यं शब्दो नित्यधर्मरहितत्वात् इति। अत्र हि नित्यधर्मरहितत्वादिति हेतुः प्रतिसाधनेन प्रतिरुद्धः। किं तत्प्रतिसाधनम्। इति चेत्ः नित्यः शब्दोऽनित्यधर्मरहितत्वादिति नित्यत्वसाधनम्। तथा चासत्प्रतिपक्षत्वाभावात्प्रकरणसमत्वं नित्यधर्मरहितत्वादिति हेतोः। </span>= <span class="HindiText">विरोधी साधन जिसका मौजूद हो वह हेतु प्रकरणसम अथवा सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास है। जैसे शब्द अनित्य है, क्योंकि वह नित्य-धर्म रहित है यहाँ नित्यधर्म रहितत्व हेतु का प्रतिपक्षी साधन मौजूद है। वह प्रतिपक्षी साधन कौन है? शब्द नित्य है, क्योंकि वह अनित्य के धर्मों से रहित है इस प्रकार नित्यता का साधन करना उसका प्रतिपक्ष साधन है। अतः असत्प्रतिपक्षता के न होने से ‘नित्य धर्मरहितत्व’ हेतु प्रकरणसम हेत्वाभास है। </span></p> | ||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
न्या.सू./सू. व टी./1/2/7/46 यस्मात्प्रकरणचिन्ता स निर्णयार्थमपदिष्टः प्रकरणसमः। 7। प्रज्ञापनं त्वनित्यः शब्दो नित्यधर्मानुपलब्धेरित्यनु-पलभ्यमान... सोऽयमहेतुरुभौ पक्षौ प्रवर्तयन्नन्यतरस्य निर्णयाय प्रकल्पते। = विचार के आश्रय अनिश्चित पक्ष और प्रतिपक्ष को प्रकरणसम कहते हैं। 7। जैसे - किसी ने कहा कि ‘शब्द अनित्य है, नित्यधर्म के ज्ञान न होने से’ यह प्रकरणसम है। इससे दो पक्षों में से किसी पक्ष का भी निर्णय नहीं हो सकता। ...जो दो धर्मों में एक का भी ज्ञान होता कि शब्द अनित्य है कि नित्य। तो यह विचार ही क्यों प्रवृत्त होता। (श्लो.वा.4/न्या./पु. 4/273/426/19)।
न्या. दी./3§40/87/6 प्रतिसाधनप्रतिरुद्धो हेतुः प्रकरणसमः। यथा... अनित्यं शब्दो नित्यधर्मरहितत्वात् इति। अत्र हि नित्यधर्मरहितत्वादिति हेतुः प्रतिसाधनेन प्रतिरुद्धः। किं तत्प्रतिसाधनम्। इति चेत्ः नित्यः शब्दोऽनित्यधर्मरहितत्वादिति नित्यत्वसाधनम्। तथा चासत्प्रतिपक्षत्वाभावात्प्रकरणसमत्वं नित्यधर्मरहितत्वादिति हेतोः। = विरोधी साधन जिसका मौजूद हो वह हेतु प्रकरणसम अथवा सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास है। जैसे शब्द अनित्य है, क्योंकि वह नित्य-धर्म रहित है यहाँ नित्यधर्म रहितत्व हेतु का प्रतिपक्षी साधन मौजूद है। वह प्रतिपक्षी साधन कौन है? शब्द नित्य है, क्योंकि वह अनित्य के धर्मों से रहित है इस प्रकार नित्यता का साधन करना उसका प्रतिपक्ष साधन है। अतः असत्प्रतिपक्षता के न होने से ‘नित्य धर्मरहितत्व’ हेतु प्रकरणसम हेत्वाभास है।