प्रकीर्णक: Difference between revisions
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द्र.सं./टी./35/116/2 <span class="SanskritText">दिग्विदिगष्टकान्तरेषु पङ्क्तिरहितत्वेन पुष्पप्रकरवत्... यानि तिष्ठन्ति तेषां प्रकीर्णकसंज्ञा।</span> = <span class="HindiText">चारों दिशा और विदिशाओं के बीच में, पंक्ति के बिना, बिखरे हुए पुष्पों के समान... जो बिले हैं, उनकी ‘प्रकीर्णक’ संज्ञा है। </span></p> | |||
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<p id="1"> (1) अंगवाहश्रुत का अपर नाम । इसके चौदह भेद है—सामायिक, जिनस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार । कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निषद्य का इसमें आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सो पचहत्तर अक्षर, एक करोड़ तेरह हजार पांच सौ इक्कीस पद और पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.125-138, 50.124 </span></p> | |||
<p id="2">(2) लंका के प्रमदवन पर्वत पर स्थित सात वनों में एक वन । <span class="GRef"> पद्मपुराण 46. 143-146 </span></p> | |||
<p id="3">(3) अच्युत स्वर्ग के एक सौ तेईस विमान । <span class="GRef"> महापुराण 10.187 </span></p> | |||
<p id="4">(4) ताण्डव-नृत्य का एक भेद । इसमें नाचते हुए पुण्य वर्षा की जाती है । <span class="GRef"> महापुराण 14.114 </span></p> | |||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
त्रि.सा./475 सेढीणं विच्चाले पुप्फपइण्णय इव ट्ठियविमाणा। होंति पइण्णइणामा सेढिंदयहीणरासिसमा। 475। = श्रेणी बद्ध विमानों के अन्तराल में बिखेरे हुए पुष्पों की भाँति पंक्ति रहित जहाँ-तहाँ स्थित हों उन विमानों (वा बिलों) को प्रकीर्णक कहते हैं।....। 475। (त्रि.सा./166)।
द्र.सं./टी./35/116/2 दिग्विदिगष्टकान्तरेषु पङ्क्तिरहितत्वेन पुष्पप्रकरवत्... यानि तिष्ठन्ति तेषां प्रकीर्णकसंज्ञा। = चारों दिशा और विदिशाओं के बीच में, पंक्ति के बिना, बिखरे हुए पुष्पों के समान... जो बिले हैं, उनकी ‘प्रकीर्णक’ संज्ञा है।
पुराणकोष से
(1) अंगवाहश्रुत का अपर नाम । इसके चौदह भेद है—सामायिक, जिनस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार । कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निषद्य का इसमें आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सो पचहत्तर अक्षर, एक करोड़ तेरह हजार पांच सौ इक्कीस पद और पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । हरिवंशपुराण 10.125-138, 50.124
(2) लंका के प्रमदवन पर्वत पर स्थित सात वनों में एक वन । पद्मपुराण 46. 143-146
(3) अच्युत स्वर्ग के एक सौ तेईस विमान । महापुराण 10.187
(4) ताण्डव-नृत्य का एक भेद । इसमें नाचते हुए पुण्य वर्षा की जाती है । महापुराण 14.114