प्रमोद: Difference between revisions
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भ.आ./वि./1396/1516/15 <span class="SanskritText">मुदिता नाम यतिगुणचिन्ता । यतयो हि विनीता, विरागा, विभया, विमाना, विरोषा, विलोभा इत्यादिका ।</span> = <span class="HindiText">यतियों के, गुणों का विचार करके उनके गुणों में हर्ष मानना यह प्रमोद भावना का लक्षण है । यतियों में नम्रता, वैराग्य, निर्भयता, अभिमानरहितपना, निर्दोषता और निर्लोभपना ये गुण रहते हैं । (ज्ञा./27/11-12) ।</span></p> | |||
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<p id="1">(1) संवेग और वैराग्य के लिए साधनभूत तथा अहिंसा के लिए आवश्यक मंत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ इन चार भावनाओं में द्वितीय भावना । इस भावना से गुणी जनों के गुणों को देखकर प्रसन्नता होती है । <span class="GRef"> महापुराण 20.65, 39.145 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.125 </span></p> | |||
<p id="2">(2) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह माया और पराक्रम से सहित बल और महाकान्ति का धारक था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.395-400 </span></p> | |||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
स.सि./7/11/349/7 वदनप्रसादादिभिरभिव्यज्यमानान्तर्भावितरागः प्रमोदः । = मुख की प्रसन्नता आदि के द्वारा भीतर भक्ति और अनुराग का व्यक्त होना प्रमोद है । (रा.वा./7/11/2538/16)।
भ.आ./वि./1396/1516/15 मुदिता नाम यतिगुणचिन्ता । यतयो हि विनीता, विरागा, विभया, विमाना, विरोषा, विलोभा इत्यादिका । = यतियों के, गुणों का विचार करके उनके गुणों में हर्ष मानना यह प्रमोद भावना का लक्षण है । यतियों में नम्रता, वैराग्य, निर्भयता, अभिमानरहितपना, निर्दोषता और निर्लोभपना ये गुण रहते हैं । (ज्ञा./27/11-12) ।
पुराणकोष से
(1) संवेग और वैराग्य के लिए साधनभूत तथा अहिंसा के लिए आवश्यक मंत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ इन चार भावनाओं में द्वितीय भावना । इस भावना से गुणी जनों के गुणों को देखकर प्रसन्नता होती है । महापुराण 20.65, 39.145 हरिवंशपुराण 58.125
(2) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह माया और पराक्रम से सहित बल और महाकान्ति का धारक था । पद्मपुराण 22.395-400