भद्रशाल: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> मेरु पर्वत का एक वन । मेरु पर्वत के चारों ओर स्थित यह वन तीन कोट और ध्वजाओं से भूषित चार | <p> मेरु पर्वत का एक वन । मेरु पर्वत के चारों ओर स्थित यह वन तीन कोट और ध्वजाओं से भूषित चार ध्वजाओं से शोभायमान है । यह मेरु की पूर्व-पश्चिम दिशा में नाना प्रकार के वृक्षों और लताओं से व्याप्त है । इसकी पूर्व-पश्चिम भाग की लम्बाई बाईस हजार योजन और दक्षिण-उत्तर भाग की चौड़ाई ढाई सौ योजन है । पूर्व-पश्चिम भाग में एक वेदिका है जो एक योजन ऊंची, एक कोस गहरी और दो कोस चौड़ी है । <span class="GRef"> महापुराण 5. 182, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 6.135, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.209, 236-238, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.109 </span></p> | ||
Line 5: | Line 5: | ||
[[ भद्रवाण | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ भद्रवाण | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ भद्रशाल वन | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: भ]] | [[Category: भ]] |
Revision as of 21:44, 5 July 2020
मेरु पर्वत का एक वन । मेरु पर्वत के चारों ओर स्थित यह वन तीन कोट और ध्वजाओं से भूषित चार ध्वजाओं से शोभायमान है । यह मेरु की पूर्व-पश्चिम दिशा में नाना प्रकार के वृक्षों और लताओं से व्याप्त है । इसकी पूर्व-पश्चिम भाग की लम्बाई बाईस हजार योजन और दक्षिण-उत्तर भाग की चौड़ाई ढाई सौ योजन है । पूर्व-पश्चिम भाग में एक वेदिका है जो एक योजन ऊंची, एक कोस गहरी और दो कोस चौड़ी है । महापुराण 5. 182, पद्मपुराण 6.135, हरिवंशपुराण 5.209, 236-238, वीरवर्द्धमान चरित्र 8.109