भवनवासी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> चतुर्णिकाय के देवों में प्रथम निकाय के देव । ये दस प्रकार के होते हैं― असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, द्वीपकुमार, सुपर्णकुमार, महोदधिकुमार, स्तनितकुमार और दिक्कुमार । जिनेन्द्र के जन्म की सूचना देने के लिए इन देवों के भवनों में बिना बनाये शंख बजते हैं । इन देवों में असुरकुमार देव नारकियों को परस्पर में लड़ाकर दुःख पहुँचाते हैं । ये देव रत्नप्रभा पृथिवी के पंकभाग में और शेष नौ प्रकार के भवनवासी देव खरभाग में रहते हैं । वहाँ असुरकुमारों के चौसठ लाख, नागकुमारों के चौरासी लाख, गरुड़कुमारों के बहत्तर लाख, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, मेघकुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और विद्युत्कुमार इन छ: कुमारों के छिहत्तर-छिहत्तर लाख तथा वायुकुमारों के छियानवे लाख, इस प्रकार इनके कुल सात करोड़ बहत्तर लाख भवन है । इन देवों के बीस इन्द्र और बीस ही प्रतीन्द्र होते हैं । उनके नाम ये हैं― 1. चमर 2. वैरोचन 3. भूतेश 4. धरणानन्द 5. वेणदेव 6. वेणुधारी 7. पूर्ण 8. अवशिष्ट 9. जलप्रभ 10. जलकान्ति 11. हरिषेण 12. हरिकान्त 13. अग्निशिखी 14. अग्निवाहन 15. अमितगति 16. अमितवाहन 17. घोष 18. महाघोष 19. वेलंजन और 20 प्रभंजन । पद्मपुराण 3.82, 159-162, 26.94, हरिवंशपुराण 4.50-51, 59-61, 38. 14, 17 वीरवर्द्धमान चरित्र 14. 54-57</p> | <p> चतुर्णिकाय के देवों में प्रथम निकाय के देव । ये दस प्रकार के होते हैं― असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, द्वीपकुमार, सुपर्णकुमार, महोदधिकुमार, स्तनितकुमार और दिक्कुमार । जिनेन्द्र के जन्म की सूचना देने के लिए इन देवों के भवनों में बिना बनाये शंख बजते हैं । इन देवों में असुरकुमार देव नारकियों को परस्पर में लड़ाकर दुःख पहुँचाते हैं । ये देव रत्नप्रभा पृथिवी के पंकभाग में और शेष नौ प्रकार के भवनवासी देव खरभाग में रहते हैं । वहाँ असुरकुमारों के चौसठ लाख, नागकुमारों के चौरासी लाख, गरुड़कुमारों के बहत्तर लाख, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, मेघकुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और विद्युत्कुमार इन छ: कुमारों के छिहत्तर-छिहत्तर लाख तथा वायुकुमारों के छियानवे लाख, इस प्रकार इनके कुल सात करोड़ बहत्तर लाख भवन है । इन देवों के बीस इन्द्र और बीस ही प्रतीन्द्र होते हैं । उनके नाम ये हैं― 1. चमर 2. वैरोचन 3. भूतेश 4. धरणानन्द 5. वेणदेव 6. वेणुधारी 7. पूर्ण 8. अवशिष्ट 9. जलप्रभ 10. जलकान्ति 11. हरिषेण 12. हरिकान्त 13. अग्निशिखी 14. अग्निवाहन 15. अमितगति 16. अमितवाहन 17. घोष 18. महाघोष 19. वेलंजन और 20 प्रभंजन । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.82, 159-162, 26.94, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.50-51, 59-61, 38. 14, 17 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14. 54-57 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ भवनभूमि | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ भवनश्रुत | अगला पृष्ठ ]] | [[ भवनश्रुत | अगला पृष्ठ ]] |
Revision as of 21:44, 5 July 2020
चतुर्णिकाय के देवों में प्रथम निकाय के देव । ये दस प्रकार के होते हैं― असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, द्वीपकुमार, सुपर्णकुमार, महोदधिकुमार, स्तनितकुमार और दिक्कुमार । जिनेन्द्र के जन्म की सूचना देने के लिए इन देवों के भवनों में बिना बनाये शंख बजते हैं । इन देवों में असुरकुमार देव नारकियों को परस्पर में लड़ाकर दुःख पहुँचाते हैं । ये देव रत्नप्रभा पृथिवी के पंकभाग में और शेष नौ प्रकार के भवनवासी देव खरभाग में रहते हैं । वहाँ असुरकुमारों के चौसठ लाख, नागकुमारों के चौरासी लाख, गरुड़कुमारों के बहत्तर लाख, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, मेघकुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और विद्युत्कुमार इन छ: कुमारों के छिहत्तर-छिहत्तर लाख तथा वायुकुमारों के छियानवे लाख, इस प्रकार इनके कुल सात करोड़ बहत्तर लाख भवन है । इन देवों के बीस इन्द्र और बीस ही प्रतीन्द्र होते हैं । उनके नाम ये हैं― 1. चमर 2. वैरोचन 3. भूतेश 4. धरणानन्द 5. वेणदेव 6. वेणुधारी 7. पूर्ण 8. अवशिष्ट 9. जलप्रभ 10. जलकान्ति 11. हरिषेण 12. हरिकान्त 13. अग्निशिखी 14. अग्निवाहन 15. अमितगति 16. अमितवाहन 17. घोष 18. महाघोष 19. वेलंजन और 20 प्रभंजन । पद्मपुराण 3.82, 159-162, 26.94, हरिवंशपुराण 4.50-51, 59-61, 38. 14, 17 वीरवर्द्धमान चरित्र 14. 54-57