भानु: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) एक नृप । यह कृष्ण के कुल की रक्षा करता था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50.130 </span></p> | |||
<p id="2">(2) कृष्ण और सत्यभामा का पुत्र । सूर्य के प्रभामण्डल के समान दैदीप्यमान होने से इसका यह नाम रखा गया था । यह अन्त में दीक्षा धारण कर मुनि हो गया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 44.1, 48.69 61.39 </span></p> | |||
<p id="3">(3) जरासन्ध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.31 </span></p> | |||
<p id="4">(4) मथुरा के राजा लब्धाभिमान का पुत्र और यवु का पिता । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.3 </span></p> | |||
<p id="5">(5) मथुरा का बारह करोड़ मुद्राओं का स्वामी एक श्रेष्ठी । यमुना इसकी स्त्री थी । इन दोनों के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन ये सात पुत्र तथा क्रमश: कालिन्दी, तिलका, कान्ता श्रीकान्ता, सुन्दरी, द्युति और चन्द्रकान्ता पुत्र-वधुएँ थी । इसने अभयनन्दी गुरु से तथा इसकी स्त्री यमुना ने जिनदत्ता आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र भी वरधर्म गुरु के समीप दीक्षित हो गये थे । आयु के अन्त में समाधिमरण करके यह सौधर्म स्वर्ग में एक सागर की आयु वाला त्रायस्त्रिंश जाति का उत्तम देव हुआ । इसका अपर नाम भानुदत्त था । <span class="GRef"> महापुराण 71.201-206, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.96-100, 124-130 </span></p> | |||
<p id="6">(6) जीवद्यशा के भाई और कंस के साले सुभानु का पुत्र । कंस ने यह घोषणा करायी थी कि नागशय्या पर चढ़कर एक हाथ से शंख बजाते हुए दूसरे हाथ से धनुष चढ़ाने वाले को वह अपनी पुत्री देगा । इस घोषणा को सुनकर यह अपने पिता के साथ मथुरा आया था । कृष्ण इसके साथ थे । कृष्ण ने इसे पास में खड़ा करके कंस के तीनों कार्य कर दिखाये और वह शीघ्र व्रज वापस आ गया । कुछ पहरेदारों ने कंस को यह बताया कि ये कार्य इसने किये हैं और कुछ ने यह बताया कि ये कार्य इसने नहीं किसी अन्य कुमार ने किये हैं । <span class="GRef"> महापुराण 70.447-456, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 35.75 </span></p> | |||
<p id="7">(7) भरतक्षेत्र के रत्नपुर नगर का कुरुवंशी एवं काश्यपगोत्री एक राजा । यह तीर्थंकर धर्मनाथ का पिता था । इसकी रानी का नाम सुप्रभा था । <span class="GRef"> महापुराण 61.13-14, 18, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 51 </span></p> | |||
<p id="8">(8) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह राजा भानुवर्मा का उत्तराधिकारी था । यह सीता के स्वयंवर में आया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.387, 394, 28.215 </span></p> | |||
<p id="9">(9) तीर्थंकर की माता द्वारा उसकी गर्भावस्था में देखे गये सोलह स्वप्नों में सातवाँ स्वप्न । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21. 12-14 </span></p> | |||
<p id="10">(10) चम्पा नगरी का राजा । इसकी पत्नी का नाम राधा था । इन दोनों के कोई सन्तान न थी । इन्हें बताया गया था कि यमुनातट पर उन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति होगी । इस कथन के अनुसार इन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति हुई थी । बालक ग्रहण करते समय रानी ने अपना कान खुजाया था । रानी की इस प्रवृत्ति को देखकर राजा ने बालक का नाम कर्ण रखा था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 7.279-297 </span></p> | |||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == कृष्ण का सत्यभामा रानी से पुत्र था। (ह.पु./44/1) अन्त में दीक्षा धारणकर मुनि हो गया था (ह.पु./61/39)।
पुराणकोष से
(1) एक नृप । यह कृष्ण के कुल की रक्षा करता था । हरिवंशपुराण 50.130
(2) कृष्ण और सत्यभामा का पुत्र । सूर्य के प्रभामण्डल के समान दैदीप्यमान होने से इसका यह नाम रखा गया था । यह अन्त में दीक्षा धारण कर मुनि हो गया था । हरिवंशपुराण 44.1, 48.69 61.39
(3) जरासन्ध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.31
(4) मथुरा के राजा लब्धाभिमान का पुत्र और यवु का पिता । हरिवंशपुराण 18.3
(5) मथुरा का बारह करोड़ मुद्राओं का स्वामी एक श्रेष्ठी । यमुना इसकी स्त्री थी । इन दोनों के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन ये सात पुत्र तथा क्रमश: कालिन्दी, तिलका, कान्ता श्रीकान्ता, सुन्दरी, द्युति और चन्द्रकान्ता पुत्र-वधुएँ थी । इसने अभयनन्दी गुरु से तथा इसकी स्त्री यमुना ने जिनदत्ता आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र भी वरधर्म गुरु के समीप दीक्षित हो गये थे । आयु के अन्त में समाधिमरण करके यह सौधर्म स्वर्ग में एक सागर की आयु वाला त्रायस्त्रिंश जाति का उत्तम देव हुआ । इसका अपर नाम भानुदत्त था । महापुराण 71.201-206, हरिवंशपुराण 33.96-100, 124-130
(6) जीवद्यशा के भाई और कंस के साले सुभानु का पुत्र । कंस ने यह घोषणा करायी थी कि नागशय्या पर चढ़कर एक हाथ से शंख बजाते हुए दूसरे हाथ से धनुष चढ़ाने वाले को वह अपनी पुत्री देगा । इस घोषणा को सुनकर यह अपने पिता के साथ मथुरा आया था । कृष्ण इसके साथ थे । कृष्ण ने इसे पास में खड़ा करके कंस के तीनों कार्य कर दिखाये और वह शीघ्र व्रज वापस आ गया । कुछ पहरेदारों ने कंस को यह बताया कि ये कार्य इसने किये हैं और कुछ ने यह बताया कि ये कार्य इसने नहीं किसी अन्य कुमार ने किये हैं । महापुराण 70.447-456, हरिवंशपुराण 35.75
(7) भरतक्षेत्र के रत्नपुर नगर का कुरुवंशी एवं काश्यपगोत्री एक राजा । यह तीर्थंकर धर्मनाथ का पिता था । इसकी रानी का नाम सुप्रभा था । महापुराण 61.13-14, 18, पद्मपुराण 20. 51
(8) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह राजा भानुवर्मा का उत्तराधिकारी था । यह सीता के स्वयंवर में आया था । पद्मपुराण 5.387, 394, 28.215
(9) तीर्थंकर की माता द्वारा उसकी गर्भावस्था में देखे गये सोलह स्वप्नों में सातवाँ स्वप्न । पद्मपुराण 21. 12-14
(10) चम्पा नगरी का राजा । इसकी पत्नी का नाम राधा था । इन दोनों के कोई सन्तान न थी । इन्हें बताया गया था कि यमुनातट पर उन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति होगी । इस कथन के अनुसार इन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति हुई थी । बालक ग्रहण करते समय रानी ने अपना कान खुजाया था । रानी की इस प्रवृत्ति को देखकर राजा ने बालक का नाम कर्ण रखा था । पांडवपुराण 7.279-297