मद: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol> | |||
<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> सामान्य लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> सामान्य लक्षण</strong> </span><br /> | ||
नि.सा./ता.वृ./ | नि.सा./ता.वृ./112<span class="SanskritText"> अत्र मदशब्देन मदन: कामपरिणाम इत्यर्थः।</span> =<span class="HindiText">यहाँ मद शब्द का अर्थ मदन या काम परिणाम है। </span><br /> | ||
र.क.श्रा./ | र.क.श्रा./25 <span class="SanskritText">अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मया:।25। </span>= <span class="HindiText">ज्ञान आदि आठ प्रकार से अपना बड़प्पन मानने को गणधरादि ने मद कहा है। (अन.ध./2/87/213); (भा.पा./टी./157/299/20)।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> मद के आठ भेद</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> मद के आठ भेद</strong> </span><br /> | ||
मू.आ./ | मू.आ./53 <span class="SanskritText">विज्ञानमैश्वर्यं आज्ञा कुलबलतपोरूपजाति: मदा:।</span> = <span class="HindiText">विज्ञान, ऐश्वर्य, आज्ञा, कुल, बल, तप, रूप और जाति ये आठ मद हैं। (अन. ध./2/87/213); (द्र.सं./टी./41/168/8)।</span><br /> | ||
र.क.श्रा./ | र.क.श्रा./25 <span class="SanskritGatha">ज्ञानं पूजां कुलं जातिं बलमृद्धिं तपो वपु:। अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मया:।25। </span>= <span class="HindiText">ज्ञान, पूजा (प्रतिष्ठा), कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप, शरीर की सुन्दरता इन आठों को आश्रय करके गर्व करने को मद कहते हैं।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3">आठ मदों के लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3">आठ मदों के लक्षण</strong> </span><br /> | ||
मो.पा./टी./ | मो.पा./टी./27/322/4 <span class="SanskritText">मदा अष्ट–अहं ज्ञानवान् सकलशात्रज्ञो वर्ते। अहं मान्यो महामण्डलेश्वरा मत्पादसेवका:। कुलमपि मम पितृपक्षोऽतीवोज्ज्वल: कोऽपि ब्रह्महत्या ऋषिहत्यादिभिरदोषम्। जाति:–मम माता संघस्य पत्युर्दुहिता–शीलेन सुलोचना-सीता-अनन्तमती माता–चन्दनादिका वर्तते। बलं–अहं सहस्रभटो लक्षभट: कोटिभट:। ऋद्धि:–ममानेकलक्षकोटिगणनं धनमासीत् तदपि मया त्यक्तं अन्ये मुनयोऽधर्मर्णा: सन्तो दीक्षां जगृहु:। तप:–अहं सिंहनिष्क्रीडितविमानपंक्तिसर्वतोभद्र ... आदि महातपोविधिविधाता मम जन्मैवं तप: कुर्वतो गतं, एते तु यतयो: नित्यभोजनरता:। वपु:–मम रूपाग्रे कामदेवोऽपि दासत्वं करोतीत्यष्टमदा: । </span>= <span class="HindiText">मद आठ हैं–मैं ज्ञानवान् हूँ, सकलशास्त्रों का ज्ञाता हूँ यह <strong>ज्ञानमद</strong> है। मैं सर्वमान्य हूँ। राजा-महाराजा मेरी सेवा करते हैं यह <strong>पूजा आज्ञा या प्रतिष्ठा</strong> का मद है। मेरा पितृपक्ष अतीव उज्ज्वल है। उसमें ब्रह्महत्या या ऋषिहत्या आदि का भी दूषण आज तक नहीं लगा है। यह <strong>कुलमद</strong> है। मेरी माता का पक्ष बहुत ऊँचा है। वह संघपति की पुत्री है। शील में सुलोचना, सीता, अनन्तमति व चन्दना आदि सरीखी है। यह <strong>जातिमद</strong> है। मैं सहस्रभट, लक्षभट, कोटिभट हूँ यह <strong>बलमद</strong> है। मेरे पास अरबों रुपये की सम्पत्ति थी। उस सबको छोड़कर मैं मुनि हुआ हूँ। अन्य मुनियों ने अधर्मी होकर दीक्षा ग्रहण की है। यह <strong>ऋद्धि या ऐश्वर्य मद</strong> है। सिंहनिष्क्रीडित, विमानपंक्ति, सर्वतोभद्र आदि महातपों की विधि का विधाता हूँ। मेरा सारा जन्म तप करते-करते गया है। ये सर्व मुनि तो नित्य भोजन में रत रहते हैं। यह <strong>तप मद</strong> है। मेरे रूप के सामने कामदेव भी दासता करता है यह <strong>रूपमद</strong> है।</span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
[[मथुरा संघ | | <noinclude> | ||
[[ मथुरा संघ | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:म]] | [[ मदन | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: म]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<p> मान (घमण्ड) । यह सज्जाति, सुकुल, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप, बल तथा शिल्पचातुर्य इन आठों के आश्रय से उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> महापुराण 4.167, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 5.318, 119.30, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.73-74 </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ मथुरा संघ | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ मदन | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: म]] |
Revision as of 21:45, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- सामान्य लक्षण
नि.सा./ता.वृ./112 अत्र मदशब्देन मदन: कामपरिणाम इत्यर्थः। =यहाँ मद शब्द का अर्थ मदन या काम परिणाम है।
र.क.श्रा./25 अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मया:।25। = ज्ञान आदि आठ प्रकार से अपना बड़प्पन मानने को गणधरादि ने मद कहा है। (अन.ध./2/87/213); (भा.पा./टी./157/299/20)। - मद के आठ भेद
मू.आ./53 विज्ञानमैश्वर्यं आज्ञा कुलबलतपोरूपजाति: मदा:। = विज्ञान, ऐश्वर्य, आज्ञा, कुल, बल, तप, रूप और जाति ये आठ मद हैं। (अन. ध./2/87/213); (द्र.सं./टी./41/168/8)।
र.क.श्रा./25 ज्ञानं पूजां कुलं जातिं बलमृद्धिं तपो वपु:। अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मया:।25। = ज्ञान, पूजा (प्रतिष्ठा), कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप, शरीर की सुन्दरता इन आठों को आश्रय करके गर्व करने को मद कहते हैं। - आठ मदों के लक्षण
मो.पा./टी./27/322/4 मदा अष्ट–अहं ज्ञानवान् सकलशात्रज्ञो वर्ते। अहं मान्यो महामण्डलेश्वरा मत्पादसेवका:। कुलमपि मम पितृपक्षोऽतीवोज्ज्वल: कोऽपि ब्रह्महत्या ऋषिहत्यादिभिरदोषम्। जाति:–मम माता संघस्य पत्युर्दुहिता–शीलेन सुलोचना-सीता-अनन्तमती माता–चन्दनादिका वर्तते। बलं–अहं सहस्रभटो लक्षभट: कोटिभट:। ऋद्धि:–ममानेकलक्षकोटिगणनं धनमासीत् तदपि मया त्यक्तं अन्ये मुनयोऽधर्मर्णा: सन्तो दीक्षां जगृहु:। तप:–अहं सिंहनिष्क्रीडितविमानपंक्तिसर्वतोभद्र ... आदि महातपोविधिविधाता मम जन्मैवं तप: कुर्वतो गतं, एते तु यतयो: नित्यभोजनरता:। वपु:–मम रूपाग्रे कामदेवोऽपि दासत्वं करोतीत्यष्टमदा: । = मद आठ हैं–मैं ज्ञानवान् हूँ, सकलशास्त्रों का ज्ञाता हूँ यह ज्ञानमद है। मैं सर्वमान्य हूँ। राजा-महाराजा मेरी सेवा करते हैं यह पूजा आज्ञा या प्रतिष्ठा का मद है। मेरा पितृपक्ष अतीव उज्ज्वल है। उसमें ब्रह्महत्या या ऋषिहत्या आदि का भी दूषण आज तक नहीं लगा है। यह कुलमद है। मेरी माता का पक्ष बहुत ऊँचा है। वह संघपति की पुत्री है। शील में सुलोचना, सीता, अनन्तमति व चन्दना आदि सरीखी है। यह जातिमद है। मैं सहस्रभट, लक्षभट, कोटिभट हूँ यह बलमद है। मेरे पास अरबों रुपये की सम्पत्ति थी। उस सबको छोड़कर मैं मुनि हुआ हूँ। अन्य मुनियों ने अधर्मी होकर दीक्षा ग्रहण की है। यह ऋद्धि या ऐश्वर्य मद है। सिंहनिष्क्रीडित, विमानपंक्ति, सर्वतोभद्र आदि महातपों की विधि का विधाता हूँ। मेरा सारा जन्म तप करते-करते गया है। ये सर्व मुनि तो नित्य भोजन में रत रहते हैं। यह तप मद है। मेरे रूप के सामने कामदेव भी दासता करता है यह रूपमद है।
पुराणकोष से
मान (घमण्ड) । यह सज्जाति, सुकुल, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप, बल तथा शिल्पचातुर्य इन आठों के आश्रय से उत्पन्न होता है । महापुराण 4.167, पद्मपुराण 5.318, 119.30, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.73-74