मदनांकुश: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> अयोध्या के राजा राम और उनकी रानी सीता का पुत्र । इसका जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्डरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन युगल रूप में हुआ था । अनंगलवण इसका भाई था । इसने उसके साथ शस्त्र और शास्त्र विद्याएँ सीखी थीं । वज्रजंघ ने इसके लिए राजा पृथु की पुत्री चाही थी किन्तु पृथु के न देने पर वज्रजंघ पृथु से युद्ध करने को तैयार हुआ ही था कि इसने युद्ध का कारण स्वयं को जानकर वज्रजंघ को रोकते हुए अपने भाई को साथ लेकर पृथु से युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया । इसके पश्चात् पृथु ने वैभव सहित अपनी कन्या इसे देने का निश्चय किया था । इसने पृथु को अपना सारथी बनाकर लक्ष्मण से युद्ध किया था । इस युद्ध में इसने सापेक्षभाव से युद्ध किया था जबकि लक्ष्मण ने निरपेक्ष भाव से । लक्ष्मण ने इसके ऊपर चक्र भी चलाया था किन्तु यह चक्र से प्रभावित नहीं हुआ था । पश्चात् सिद्धार्थ क्षुल्लक से गुप्त भेद ज्ञातकर राम और लक्ष्मण इससे आकर मिल गये थे । कांचनस्थान के राजा कांचनरथ को पुत्री चन्द्रभाग्या ने इसे वरा था । लक्ष्मण के मरण से इसे वैराग्य-भाव जागा था । मृत्यु बिना जाने निमिष मात्र में आक्रमण कर देती है ऐसा ज्ञात कर पुन: गर्भवास न करना पड़े इस | <p> अयोध्या के राजा राम और उनकी रानी सीता का पुत्र । इसका जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्डरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन युगल रूप में हुआ था । अनंगलवण इसका भाई था । इसने उसके साथ शस्त्र और शास्त्र विद्याएँ सीखी थीं । वज्रजंघ ने इसके लिए राजा पृथु की पुत्री चाही थी किन्तु पृथु के न देने पर वज्रजंघ पृथु से युद्ध करने को तैयार हुआ ही था कि इसने युद्ध का कारण स्वयं को जानकर वज्रजंघ को रोकते हुए अपने भाई को साथ लेकर पृथु से युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया । इसके पश्चात् पृथु ने वैभव सहित अपनी कन्या इसे देने का निश्चय किया था । इसने पृथु को अपना सारथी बनाकर लक्ष्मण से युद्ध किया था । इस युद्ध में इसने सापेक्षभाव से युद्ध किया था जबकि लक्ष्मण ने निरपेक्ष भाव से । लक्ष्मण ने इसके ऊपर चक्र भी चलाया था किन्तु यह चक्र से प्रभावित नहीं हुआ था । पश्चात् सिद्धार्थ क्षुल्लक से गुप्त भेद ज्ञातकर राम और लक्ष्मण इससे आकर मिल गये थे । कांचनस्थान के राजा कांचनरथ को पुत्री चन्द्रभाग्या ने इसे वरा था । लक्ष्मण के मरण से इसे वैराग्य-भाव जागा था । मृत्यु बिना जाने निमिष मात्र में आक्रमण कर देती है ऐसा ज्ञात कर पुन: गर्भवास न करना पड़े इस उद्देश्य से इसने अपने भाई के साथ अमृतस्वर से दीक्षा ले ली थी । सीता के पूछने पर केवली ने कहा था कि यह अक्षय पद प्राप्त करेगा । इसका दूसरा नाम कुश था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 100. 17-21, 32-48, 101. 1-90, 102. 183-184, 103.2, 16, 27-30, 43-48, 110.1, 19, 115.54-59, 123.82 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ मदना | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ मदनाशिनी | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] |
Revision as of 21:45, 5 July 2020
अयोध्या के राजा राम और उनकी रानी सीता का पुत्र । इसका जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्डरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन युगल रूप में हुआ था । अनंगलवण इसका भाई था । इसने उसके साथ शस्त्र और शास्त्र विद्याएँ सीखी थीं । वज्रजंघ ने इसके लिए राजा पृथु की पुत्री चाही थी किन्तु पृथु के न देने पर वज्रजंघ पृथु से युद्ध करने को तैयार हुआ ही था कि इसने युद्ध का कारण स्वयं को जानकर वज्रजंघ को रोकते हुए अपने भाई को साथ लेकर पृथु से युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया । इसके पश्चात् पृथु ने वैभव सहित अपनी कन्या इसे देने का निश्चय किया था । इसने पृथु को अपना सारथी बनाकर लक्ष्मण से युद्ध किया था । इस युद्ध में इसने सापेक्षभाव से युद्ध किया था जबकि लक्ष्मण ने निरपेक्ष भाव से । लक्ष्मण ने इसके ऊपर चक्र भी चलाया था किन्तु यह चक्र से प्रभावित नहीं हुआ था । पश्चात् सिद्धार्थ क्षुल्लक से गुप्त भेद ज्ञातकर राम और लक्ष्मण इससे आकर मिल गये थे । कांचनस्थान के राजा कांचनरथ को पुत्री चन्द्रभाग्या ने इसे वरा था । लक्ष्मण के मरण से इसे वैराग्य-भाव जागा था । मृत्यु बिना जाने निमिष मात्र में आक्रमण कर देती है ऐसा ज्ञात कर पुन: गर्भवास न करना पड़े इस उद्देश्य से इसने अपने भाई के साथ अमृतस्वर से दीक्षा ले ली थी । सीता के पूछने पर केवली ने कहा था कि यह अक्षय पद प्राप्त करेगा । इसका दूसरा नाम कुश था । पद्मपुराण 100. 17-21, 32-48, 101. 1-90, 102. 183-184, 103.2, 16, 27-30, 43-48, 110.1, 19, 115.54-59, 123.82