मंत्रकल्प: Difference between revisions
From जैनकोष
m (Vikasnd moved page मन्त्रकल्प to मन्त्रकल्प without leaving a redirect: RemoveZWNJChar) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> गर्भाधान आदि क्रियाओं के आरम्भ में वेदी के मध्य-भाग में जिनेन्द्र देव की प्रतिमा और तीन छत्र, तीन चक्र तथा तीन अग्नियाँ विराजमान करके यथाविधि उनकी पूजा करना । इसमें जल से भूमि शुद्ध करते समय ‘‘नीरजसे नमः’’, विध्नों की शान्ति के लिए ‘‘दर्पमथनाय नमः’’, गन्ध समर्पण करने के लिए ‘‘शीलगन्धाय नमः’’, पुष्प अर्पण करते समय ‘‘विमलाय नमः’’, अक्षत अर्पण करते समय ‘‘अक्षताय नमः’’, धूप अर्पण करते समय ‘‘श्रुतधूपाय नमः’’, दीपदान के समय ‘‘ज्ञानोद्योताय नम:’’ और नैवेद्य चढ़ाते समय ‘‘परमसिद्धाय नम:’’ मन्त्र बोले जाते हैं । महापुराण 40. 3-9</p> | <p> गर्भाधान आदि क्रियाओं के आरम्भ में वेदी के मध्य-भाग में जिनेन्द्र देव की प्रतिमा और तीन छत्र, तीन चक्र तथा तीन अग्नियाँ विराजमान करके यथाविधि उनकी पूजा करना । इसमें जल से भूमि शुद्ध करते समय ‘‘नीरजसे नमः’’, विध्नों की शान्ति के लिए ‘‘दर्पमथनाय नमः’’, गन्ध समर्पण करने के लिए ‘‘शीलगन्धाय नमः’’, पुष्प अर्पण करते समय ‘‘विमलाय नमः’’, अक्षत अर्पण करते समय ‘‘अक्षताय नमः’’, धूप अर्पण करते समय ‘‘श्रुतधूपाय नमः’’, दीपदान के समय ‘‘ज्ञानोद्योताय नम:’’ और नैवेद्य चढ़ाते समय ‘‘परमसिद्धाय नम:’’ मन्त्र बोले जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 40. 3-9 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ मन्ता | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ मन्त्रशक्ति | अगला पृष्ठ ]] | [[ मन्त्रशक्ति | अगला पृष्ठ ]] |
Revision as of 21:45, 5 July 2020
गर्भाधान आदि क्रियाओं के आरम्भ में वेदी के मध्य-भाग में जिनेन्द्र देव की प्रतिमा और तीन छत्र, तीन चक्र तथा तीन अग्नियाँ विराजमान करके यथाविधि उनकी पूजा करना । इसमें जल से भूमि शुद्ध करते समय ‘‘नीरजसे नमः’’, विध्नों की शान्ति के लिए ‘‘दर्पमथनाय नमः’’, गन्ध समर्पण करने के लिए ‘‘शीलगन्धाय नमः’’, पुष्प अर्पण करते समय ‘‘विमलाय नमः’’, अक्षत अर्पण करते समय ‘‘अक्षताय नमः’’, धूप अर्पण करते समय ‘‘श्रुतधूपाय नमः’’, दीपदान के समय ‘‘ज्ञानोद्योताय नम:’’ और नैवेद्य चढ़ाते समय ‘‘परमसिद्धाय नम:’’ मन्त्र बोले जाते हैं । महापुराण 40. 3-9