मल्लधारी देव: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| <ol> | ||
<li> नन्दि संघ के देशीयगण की नय कीर्तिशाखा में श्रीधरदेव के शिष्य तथा चन्द्रकीर्ति के गुरु थे। समय–वि. | <li> नन्दि संघ के देशीयगण की नय कीर्तिशाखा में श्रीधरदेव के शिष्य तथा चन्द्रकीर्ति के गुरु थे। समय–वि. 1075-1105(ई.1018-1048)–देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]। </li> | ||
<li> मल्लिषेण की उपाधि थी। (विशेष | <li> मल्लिषेण की उपाधि थी। (विशेष देखें [[ मल्लिषेण#2 | मल्लिषेण - 2]])। </li> | ||
<li> नियमसार की टीका के रचयिता पद्मप्रभ की उपाधि | <li> नियमसार की टीका के रचयिता पद्मप्रभ की उपाधि थी।–देखें [[ पद्मप्रभ#2 | पद्मप्रभ - 2]]। </li> | ||
<li> आ. बालचन्द्र की उपाधि थी।–देखें | <li> आ. बालचन्द्र की उपाधि थी।–देखें [[ बालचन्द्र ]]। </li> | ||
</ol | </ol> | ||
[[मल्ल | | <noinclude> | ||
[[ मल्ल | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:म]] | [[ मल्लयुद्ध | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: म]] |
Revision as of 21:45, 5 July 2020
- नन्दि संघ के देशीयगण की नय कीर्तिशाखा में श्रीधरदेव के शिष्य तथा चन्द्रकीर्ति के गुरु थे। समय–वि. 1075-1105(ई.1018-1048)–देखें इतिहास - 7.5।
- मल्लिषेण की उपाधि थी। (विशेष देखें मल्लिषेण - 2)।
- नियमसार की टीका के रचयिता पद्मप्रभ की उपाधि थी।–देखें पद्मप्रभ - 2।
- आ. बालचन्द्र की उपाधि थी।–देखें बालचन्द्र ।