महाकाल: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) उज्जयिनी का एक वन । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33. 102 </span></p> | |||
<p id="2">(2) उज्जयिनी का एक श्मशान । मुनि वरधर्म ने यहाँ ध्यान किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33. 109-11 </span></p> | |||
<p id="3">(3) सातवां नरकभूमि के अप्रतिष्ठान इन्द्रक बिल की पश्चिम दिशा में स्थित महानरक । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.158 </span></p> | |||
<p id="4">(4) भरतेश की नौ निधियों में दूसरी निधि । इससे परीक्षकों द्वारा निर्णय करने योग्य पंचलौह आदि अनेक प्रकार के लोहों का सद्भाव रहता है । इसी निधि से उनके यहाँ असि, मषि आदि छ: कर्मों के साधनभूत द्रव्य और सम्पदाएं निरन्तर उत्पन्न की जाती थी । <span class="GRef"> महापुराण 37.73, 77, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11. 110, 115 </span></p> | |||
<p id="5">(5) मधुपिंगल का जीव― एक असुर देव । इसने वैरवश राजा मगर और सुलसा को यज्ञ में होम दिया था । इसने माया से अश्वमेघ, अजमेघ, गोमेघ और राजसूय यज्ञ भी करके दिखाये थे । <span class="GRef"> महापुराण 67.170-174, 212, 252, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17. 157, 23. 126, 141-142, 145-146 </span></p> | |||
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<p id="9">(9) एक व्यन्तर देव । यह इसी नाम की गुहा में रहता था । इसने वैर वश श्रीपाल को इस गुहा में गिराया था । <span class="GRef"> महापुराण 47.103-104 </span></p> | |||
<p id="10">(10) व्यन्तर देवों का सोलहवाँ इन्द्र और प्रतीन्द्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.61-62 </span></p> | |||
<p id="11">(11) छठा नारद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60-548 </span>देखें [[ नारद ]]</p> | |||
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Revision as of 21:45, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- पिशाच जातीय एक व्यन्तर–देखें पिशाच ।
- एक ग्रह–देखें ग्रह ।
- दक्षिण कालोद समुद्र का रक्षक देव–देखें व्यन्तर - 4।
- चक्रवर्ती की नव निधियों में से एक–देखें शलाका पुरुष - 2।
- षष्ट नारद–देखें शलाका पुरुष - 6।
पुराणकोष से
(1) उज्जयिनी का एक वन । हरिवंशपुराण 33. 102
(2) उज्जयिनी का एक श्मशान । मुनि वरधर्म ने यहाँ ध्यान किया था । हरिवंशपुराण 33. 109-11
(3) सातवां नरकभूमि के अप्रतिष्ठान इन्द्रक बिल की पश्चिम दिशा में स्थित महानरक । हरिवंशपुराण 4.158
(4) भरतेश की नौ निधियों में दूसरी निधि । इससे परीक्षकों द्वारा निर्णय करने योग्य पंचलौह आदि अनेक प्रकार के लोहों का सद्भाव रहता है । इसी निधि से उनके यहाँ असि, मषि आदि छ: कर्मों के साधनभूत द्रव्य और सम्पदाएं निरन्तर उत्पन्न की जाती थी । महापुराण 37.73, 77, हरिवंशपुराण 11. 110, 115
(5) मधुपिंगल का जीव― एक असुर देव । इसने वैरवश राजा मगर और सुलसा को यज्ञ में होम दिया था । इसने माया से अश्वमेघ, अजमेघ, गोमेघ और राजसूय यज्ञ भी करके दिखाये थे । महापुराण 67.170-174, 212, 252, हरिवंशपुराण 17. 157, 23. 126, 141-142, 145-146
(6) कालोदधि द्वीप का रक्षक देव । हरिवंशपुराण 5. 638
(7) काल गुफा का निवासी एक राक्षस । प्रद्युम्न ने इसे पराजित कर इससे वृषभ नाम का रथ तथा रत्नमय कवच प्राप्त किये थे । महापुराण 72.111
(8) एक गुहा । प्रद्युम्न ने तलवार, ढाल, छत्र तथा चमर इसी गुहा में प्राप्त किये थे । हरिवंशपुराण 47. 33
(9) एक व्यन्तर देव । यह इसी नाम की गुहा में रहता था । इसने वैर वश श्रीपाल को इस गुहा में गिराया था । महापुराण 47.103-104
(10) व्यन्तर देवों का सोलहवाँ इन्द्र और प्रतीन्द्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.61-62
(11) छठा नारद । हरिवंशपुराण 60-548 देखें नारद