लघीयस्त्रय: Difference between revisions
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| <p>आ. अकलंक भट्ट (ई. 620 - 680)। कृत न्यायविषयक 78 कारिका प्रमाण संस्कृत ग्रन्थ। इसमें छोटे-छोटे तीन प्रकरणों का संग्रह है - प्रमाण प्रवेश, नय प्रवेश व प्रवचन प्रवेश। वास्तव में ये तीनों प्रकरण ग्रन्थ थे, पीछे आचार्य अनन्तवीर्य (ई. 975-1025) ने इन तीनों का संग्रह करके उसका नाम लघीयस्त्रय रख दिया होगा ऐसा अनुमान है। इन तीनों प्रकरणों पर स्वयं आ. अकलंक भट्ट कृत एक विवृत्ति भी है। यह विवृत्ति भी श्लोक निबद्ध है। इस पर निम्न टीकाएँ लिखी गयी हैं−</p> | ||
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<li> आ. प्रभाचन्द्र (ई. | <li> आ. प्रभाचन्द्र (ई. 950-1020) कृत न्यायकुमुदचन्द्र; </li> | ||
<li> आ. अभयचन्द्र (ई. श. | <li> आ. अभयचन्द्र (ई. श. 13) कृत स्याद्वादभूषण। (ती./2/306)। </li> | ||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
आ. अकलंक भट्ट (ई. 620 - 680)। कृत न्यायविषयक 78 कारिका प्रमाण संस्कृत ग्रन्थ। इसमें छोटे-छोटे तीन प्रकरणों का संग्रह है - प्रमाण प्रवेश, नय प्रवेश व प्रवचन प्रवेश। वास्तव में ये तीनों प्रकरण ग्रन्थ थे, पीछे आचार्य अनन्तवीर्य (ई. 975-1025) ने इन तीनों का संग्रह करके उसका नाम लघीयस्त्रय रख दिया होगा ऐसा अनुमान है। इन तीनों प्रकरणों पर स्वयं आ. अकलंक भट्ट कृत एक विवृत्ति भी है। यह विवृत्ति भी श्लोक निबद्ध है। इस पर निम्न टीकाएँ लिखी गयी हैं−
- आ. प्रभाचन्द्र (ई. 950-1020) कृत न्यायकुमुदचन्द्र;
- आ. अभयचन्द्र (ई. श. 13) कृत स्याद्वादभूषण। (ती./2/306)।